आज मैं देवी क्यों नहीं?
आज मैं देवी क्यों नहीं?
राशी ने आज कन्या भोजन के लिए कॉलोनी की सभी छोटी-छोटी बच्चियों को बुलाया था, बड़े आदर के साथ सभी के पैर धुलाए लाल टीका लगाया, खीर पूड़ी अपने हाथों से खिला ही रही थी तभी कमरे से उसकी छोटी बेटी रोते हुए आकर राशी से लिपट गई।
अरे..."ये क्या कर दिया गुनगुन ? तुमने तो पूरी पूजा को ही अपवित्र कर दिया" गुस्से में चिल्लाते हुए दादी ने राशी से गुनगुन को खींच कर अलग कर दिया।
दादी प्लीज मुझे भी अपनी फ्रेन्ड्स के साथ खाना खाने दो न, मचलते हुए गुनगुन ने जिद की। "अब तुम कन्या नहीं रहीं न ही देवी" कहते हुए दादी ने गुनगुन को उसके कमरे में वापस बंद कर दिया। राशी, ये सब देखकर बैचेन हो रही थी, वो गुनगुन के पास गई और उसे गले से लगा लिया।
गुनगुन ने बड़ी मासूमियत से पूछा "माँ ! कल तक तो मैं देवी थी, आप दादी सब मुझे प्यार करते थे मेरे पैर छूते थे, आज मैं क्यों देवी नहीं??
यह प्रश्न राशी को कचोटने लगा, उसने हिम्मत की और दादी के खिलाफ जाकर गुनगुन के पैर धुलाए, टीका, खीर पुड़ी, उपहार, सब कुछ। और कन्याओं की तरह ही गुनगुन के साथ व्यवहार किया ।
दादी ये देखकर आग बबूला हो गई राशी से कहा "अब वो कन्या नहीं है।"
राशी ने बड़े गर्वित स्वर में कहा ..." मेरे लिए वो हमेशा कन्या रहेगी, देवी रहेगी, पूज्यनीय रहेगी। मेरे घर की लक्ष्मी है गुनगुन, मैं उसका तिरस्कार कभी नहीं कर सकती। प्राकृतिक रूप से प्रजनन योग्य होने से कोई बेटी तिरस्कृत कैसे हो सकती है, इस रूप में तो वह और भी पूज्यनीय हुई"... सुनते ही दादी कसमसाते हुए अपने कमरे की ओर चल दी।
राशी के शब्दों ने गुनगुन के चेहरे की चमक लौटा दी थी।
