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Rubita Arora

Abstract Inspirational

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Rubita Arora

Abstract Inspirational

त्योहार अपनों के संग#रंगबरसे

त्योहार अपनों के संग#रंगबरसे

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नन्ही पलक ने बडी उत्सुकता से अपने पापा से पूछा,पापा!! हम होली मनाने दादा-दादी के पास कब जा रहे है ? बिटिया को समझाते हुए अनुज बोला, नहीं बेटा!! हम इस बार होली मनाने दादा-दादी के पास नहीं जा रहे हैं।पलक गुस्सा होते हुए, पापा!! हर बार तो हम वहीं जाते है, कितना मजा आता है वहाँ सबके साथ, फिर इस बार क्यों नहीं जा सकते ? रीमा और अजय के पास पलक के सवाल का कोई जवाब न था। छुट्टी न मिलने का बहाना बना जैसे-तैसे पलक को रीमा ने मनाया।बेचारी मन मसोस कर सोने चली गई।लेकिन अजय को रह रहकर पुरानी बातें याद आने लगी।कैसे पूरा परिवार हमेशा मिलकर त्योहार मनाता और होली पर तो कहना ही क्या।भैया ने सबको कह रखा था उन्हें सबसे पहले रंग अजय ही लगाएगा।उससे पहले किसी को रंग लगाने की इजाजत नहीं थी।पिता जी भी दोनों भाइयों से इकट्ठा तिलक लगवाते और फिर दोनों भाई मिलकर खूब धमाल मचाते।सबकुछ कितना अच्छा चल रहा था लेकिन पिछली बार छुट्टियों में जब अजय परिवार सहित मां-पापा से मिलने गया तो भैया के दोनों बच्चे अनुज और सिया के साथ पलक का झगड़ा हो गया। अनुज ने पलक के मुँह पर जबरदस्त थप्पड़ मारा।रोती हुई पलक को देखकर रीमा की भी आँखें भर आई। अजय से यह सब देखा न गया।गुस्से में आकर बिना कारण जाने अनुज पर बरस पडा।भैया ने बस इतना कहा, अजय तुम्हें पूरी बात जाने बिना इस तरह गुस्सा नहीं करना चाहिए।लेकिन अजय की बडे भैया और भाभी से भी कहासुनी हो गई। मां-पापा ने किसी को कुछ नहीं कहा और फिर अजय परिवार सहित गुस्से में समान उठाकर वापस चला आया।उसके बाद से कभी किसी ने फोन करके बात करने की कोशिश नहीं की।आज रीमा ने किसी तरह पलक को होली यही रहकर मनाने के लिए मना तो लिया लेकिन उसके चेहरे की उदासी उन्हें परेशान किए जा रही थी।खुद भी ठंडे दिमाग से सोचा तो अपनी गलती का भी अहसास हुआ।बात उतनी बडी नहीं थी जितनी बना दी गई और फिर आपसी सहमति से तो किसी भी मुद्दे का हल निकाला जा सकता है।खैर अब सिवाय पछतावे के और किया क्या जा सकता था।

तभी फोन की घंटी बजी।अजय ने फोन उठाया तो उधर से बाबूजी बोले, बेटा!! होली मनाने कब आ रहे हो? हम सब तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं।अजय बोला,पापा!! कल सुबह ही निकल लेंगे और दोपहर तक आपके पास पँहुच जायेंगे हम।अब सबकुछ भूल अजय और रीमा नन्ही पलक को साथ लेकर निकल पड़े।पलक का चेहरा खुशी से खिल उठा और उसे देखकर दोनों पति-पत्नी भी खुश थे।घर पँहुचते ही पलक भागकर दादा-दादी से मिली और फिर अनुज और सिया के साथ मिलकर होली खेलने मे मस्त हो गई तीनों बच्चों को पुरानी कोई बात याद नहीं थी।इतने में भैया भी आ गये।देखते ही अजय बोला, ये क्या भैया?? आपने अभी तक रंग नहीं लगाया।भैया बोले, पगले!! तुझसे पहले भला कोई और रंग लगा सकता है मेरे।फिर दोनों भाइयों मिलकर पहले पापा के तिलक लगाया और खुशी-खुशी त्योहार मनाने लगे।रीमा भी भाभी के साथ मिलकर रसोई में खाने की तैयारी करने लगी।पूरे परिवार ने मिलकर त्योहार मनाया मानो कभी कुछ हुआ ही न हो।

अगले दिन अजय वापस आने के लिए तैयार हो रहा था तो पिताजी बोले, बेटा!! मेरी बात का मान रखते हुए त्योहार सबके साथ मनाकर तुमने मुझे बहुत बडी खुशी दी है। सच बताऊँ, ये त्योहार आपसी गिले शिकवे भूलाकर प्यार से आगे बढ़ने का साधन है।हमारे जीवन में परिवर्तन लाते हुए नए उल्लास का संचार करते हैं। रोजाना जीवन में आने वाली परेशानियों को भूलाकर मन मे नई उमंगें जन्म लेती हैं और ऐसे में अपनों का साथ होना सोने पर सुहागा है।बस बेटा, आगे भी अपनों की छोटी-मोटी बातों को दिल पर न लगाकर यूंही प्यार से इकट्ठे खुशियां मनाना। ईश्वर तुम सबका प्यार यूं ही बनाए रखें बस यही दुआ है मेरी।भैया ने भी आकर अजय को गले लगा लिया ।सचमुच जहां प्यार है वहां थोड़े बहुत मन-मुटाव होना स्वाभाविक है लेकिन इन्हेंं भूलाकर आगे बढकर अपनों के साथ खुशियां मनाना ही जिंदगी है।


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