तुमि आमाके बिए कोरबे?
तुमि आमाके बिए कोरबे?
मोहुआ और माधव की दोस्ती बचपन की दोस्ती थी कि किशोरावस्था तक आते-आते आकर्षण में बदल गई थी।
मिठाई की शौकीन महुआ और पकोड़े का शौकीन माधव।
लेकिन इनकी दोस्ती भी गजब की थी। दोनों बिना कुछ बोले ही एक दूसरे के मन की बात समझ जाते थे। उनकी इसी अंडरस्टैंडिंग को देखकर जब माता-पिता ने दोनों की शादी तय कर दी उस वक्त वह चुप रही लेकिन बाद में वह अपने मोटापे को लेकर बहुत सचेत हो गई।
पहले जब माध्यम से मोटी मोटी कहकर चिढ़ाता था तब बुरा नहीं लगता था लेकिन अब तो दोनों की शादी होने वाली थी। इसलिए महुआ अब अपने आप को माधव से छुपाने लगी।
अगले दिन में सगाई का कार्यक्रम था और..
आज महुआ जब माधव के सामने आई तो उसने बड़ा सा दुपट्टा ऐसे ओढ़ रखा था,जैसे कि खुद को छुपा रही हो और इधर भावी जमाता के स्वागत और सत्कार में बैनर्जी बाबू ने नौकरों को भेजकर तरह तरह की मिठाइयाँ मंगवा दी थी।
और.... इधर घर की रसोई से विनोदनी जी ने नारियल के लड्डू और रंगीन मिहिदाना का हलवा भिजवाया था जिसे देखते ही महुआ के मुँह में पानी आ गया था। पर इतनी मिठाईयों में से उसने एक टुकड़ा भी मुँह में नहीं रखा था।
आज महुआ अपने स्वभाव और अपने व्यवहार के विपरीत व्यवहार कर रही थी जिसे देखकर आज माधव का माथा और भी घूम गया था।
माधव एक साँस में कई सारे सवाल पूछ बैठा।
महुआ, मेरी तरफ़ देखो, तुम्हें मैं तो पसंद हूँ ना?
तुमि आमाके बिए कोरबे ?
तुम मुझसे विवाह करना चाहती हो या नहीं?
तुम इतनी उदास और बुझी बुझी सी क्यों हो?
तुम कुछ मीठा खाती क्यों नहीं?
तुम्हें यह मिठाइयां तो इतनी पसंद है फिर तुमने किसी भी मिठाई को हाथ क्यों नहीं लगाया?"
"
थोड़ी देर माधव को एकटक देखती रही महुआ और बोली,
"मुझे शिकायत अपने आप से है। मैं क्यों इतना मीठा खाती हूँ। अब मैं ज़्यादा मिठाई नहीं खाउंगी।और जो मिठाई खा लिया और भी मोटी हो गई तो कैसी अजीब दिखूँगी। दुल्हन इतनी मोटी थोड़े ना होती है?और जो शुभोदृष्टि से पहले पीढ़ा पर बैठते ही पीढ़ा टूट गया तो.....?
सब हसेंगे मेरी बदनामी होगी। तब तुम्हें भी कहां अच्छा लगेगा यह सब? भला मोटी दुल्हन किसको अच्छी लगती है?
कहकर महुआ इतना रोने लगी जैसे काफी दिनों से उसने अपनी रुलाई रोक रखी हो।
सुनकर माधव हतप्रभ...अवाक्.....!
यह क्या कह रही थी महुआ?
एकदम से माधव के मन में यह सवाल कौँध गया था। इस बेचारी ने ऐसा कैसे सोच लिया?
और यह पगली खुद को मिठाई से दूर करके खुश कैसे रह सकती है और यह सब बातें उसके दिमाग में किसने भरी?
फिर माधव ने भावुक होकर महुआ को बड़े प्यार से समझाया,
"प्रेम बाह्य स्वरूप नहीं देखता बस हृदय का जुड़ाव देखता है। सूरदास जी तो जन्मांध थे और उन्होंने अपने मन की आँखों से और पूर्ण हृदय से श्री कृष्ण से प्रेम किया था और उनकी भक्ति की थी!"
महुआ चेहरे पर बड़ा ही कौतुहल लाकर माधव की बात सुन रही थी।
उसे यूँ अपनी ओर ताकता हुआ पाकर माधव ने मिठाई की तशतरी से एक रसगुल्ला उठाकर उसके मुँह में खिला दिया और उसके माथे पर एक चुम्बन अंकित करते हुए बोला,
"अच्छे से खाओ पियो... तुम जैसी हो, मुझे पसंद हो और बेहद प्रिय भी!"
"
सुनकर महुआ बहुत खुश हो गई और उसने पहली बार मिठाई का एक टुकड़ा उठाकर माधव को खिलाया। आज तक तो उसके हिस्से की मिठाई भी छीनकर खा जाती थी पर.... अब खुद भी खाएगी और अपने प्रिय बालसखा को भी खिलाएगी।
अब उनदोनों का सबकुछ साझा जो था।
अब एक महीने बाद उनके विवाह का दिन.....
महुआ ने तो विवाह के तुरंत बाद सबसे पहले मिठाई का ही एक बड़ा सा टुकड़ा मुँह में रखा और कहा,
*लो.....अब तो हो गई है मेरी शादी,
और मिल गई जी भरकर खाने की आजादी *
अब तो मैं और चाहे कितनी भी मोटी हो जाऊँ,
क्या फर्क पड़ता है... है ना माधव....?
उसने प्यार से माधव को देखा तो माधव ने आगे बढ़कर गले लगा लिया।
दो प्रेमी युगल ज़ब दिल से एक हो गए थे तो...
एक दूसरे के शरीर की कमियों को भी तो अपनाना ही था।
सच...
प्रेम रूप नहीं देखता ,बल्कि प्रेम देखता है ह्रदय और आत्म समर्पण। जो माधव और महुआ में हमेशा से था तभी तो प्रेम सबसे आगे रह गया और शारीरिक रूप और आकार गौन होकर रह गया।
प्रेम तो हमेशा से सबसे सुंदर होता है और पूज्य भी।
हृदय से हृदय से अनुबंध है सच्चा प्रेम।
और इससे भी सुंदर है प्रेम का अनुबंध और पावन परिणय.
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©®V. Aaradhyaa