Vijay Kumar Vishwakarma

Inspirational Others Children

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Vijay Kumar Vishwakarma

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ट्रिन-ट्रिन

ट्रिन-ट्रिन

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सड़क में सरपट दौड़ते, धुआं उगलते वाहनों की रेलमपेल लाॅकडाउन के कारण बंद थी। मगर जैसे ही अनलाॅक की राहत मिलनी प्रारंभ हुई, एक बार फिर रास्तों में वाहनों की कतार नजर आने लगी। वाहनों के बेहूदे और कर्कश हार्न की आवाजें शोर में तब्दील होने लगीं।

उस शोर शराबे में साइकिल की ट्रिन-ट्रिन सुनना किसी अचम्भे से कम नही था। लेकिन आज सड़क से गुजरती कुछ साईकिलों की घंटी की आवाज पर सहसा ही ध्यान चला गया। दरअसल सुबह ही मोहल्ले के सबसे हुष्ट पुष्ट नागरिक विभूति जी बता रहे थे कि 3 जून यानि आज विश्व साईकिल दिवस है इसलिए आज से ही सभी मोहल्ले वासियों को भी साईकिल चलाने का संकल्प लेना चाहिए।

विभूति जी की बात पर एतराज जताते हुए उनके साथ खड़े राघव जी कहने लगे - "जमाना चांद और मंगल पर जा रहा है ... और आप रिवर्स गियर में उन्नीसवीं सदी की तरफ लौटने की बात कह रहे हैं।"

विभूति जी ने मुस्कुराते हुए कहा - "भई नया चले नौ दिन .... पुराना सौ दिन .... अब आप अपने फटफटिया से चांद या मंगल ग्रह पर तो जा सकते नहीं .... बस यहीं सड़कों पर धुएँ और शोर का प्रदूषण मचायेंगे .... लेकिन कब तक .... पेट्रोल तो सेंचुरी लगा ही चुका है .... एक दिन खरीदने की क्षमता से भी बाहर निकल जायेगा .... और फिर आखिरकार चुक जायेगा .... तब ?"

राघव जी कहने लगे - "तो उसका भी विकल्प है न ... इलेक्ट्रिसिटी व्हीकल है .... सौर उर्जा है .... और आगे .... वैज्ञानिक रोज कुछ न कुछ खोज ही रहे हैं ....।"

विभूति जी ने अपने मास्क की तरफ इशारा करते हुए कहा - "तब तक हम इतना प्रदूषण फैला चुके होंगे कि .... बिना महामारी के ही मास्क पहन कर और आक्सीजन सिलेण्डर साथ लेकर चलना पड़ेगा।"

राघव जी एक पल के लिए कुछ सोचने पर विवश हो गये। तभी उनके तोंद पर एक हल्की सी चपत लगाते हुए विभूति जी बोले - "पेट में ये घड़ा बांध कर कब तक वाहनों में घूमेंगे राघव जी .... कभी साईकिल चला कर देखिए .... पेट सपाट न हो जाए तो कहिएगा ?"

राघव जी झेंपते हुए बोले - "अरे वो क्या है कि .... लाॅकडाउन के कारण चौबीसों घंटे घर में पड़े रहने के कारण जरा सा पेट बाहर निकल आया .... अब जैसे ही जिम खुलेगा .... सब दुरूस्त हो जायेगा।"

विभूति जी मुस्कुराये और फिर उनसे विदा लेते हुए कहे - "अच्छा चलता हूँ .... आप अपने हैं इसलिए यही कहूँगा ....जिम ... अस्पताल ... जांच पड़ताल ....दवाईयाँ ..... इन सब के बेतहाशा खर्च से ये दो पहिए की मामूली साईकिल किसी कवच की तरह रक्षा करती है .... फिर चाहे लहर दूसरी हो या तीसरी।"

राघव जी उन्हें आगे बढ़ता देख अपने पेट पर हाथ फेरने लगे। तभी उनके बगल से एक साईकिल सवार गुजरा। उसने साईकिल की घंटी बजाया, ट्रिन-ट्रिन। राघव जी को घंटी की आवाज मनभावन लगने लगी।


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