टॉम बॉय
टॉम बॉय
प्रवाल, खाना लग गया, खिड़की के पास खड़े प्रवाल को मां ने आवाज़ देकर, बुलाया, पर वो वहीं खड़ा, अंधेरे में शून्य को ताकता रहा। दूसरी आवाज़ पर कहा, मां प्लीज, मुझे भूख नही है,
कल खा लूंगा।
जैसी तेरी मर्ज़ी----
गले से खाना उतरता भी कैसे? टॉम बॉय जो विदा हो गई थी।
5,6 वर्ष का ही रहा होगा, जब उसका परिवार यहां रहने आया था। बगल के आंटी अंकल की एक ही बेटी थी शेफाली,
टॉम बॉय तो उसका ही दिया नाम था।
चंचल, खुराफ़ाती, चिल्ला-चिल्ला कर लड़ने वाली, उससे मात्र एक वर्ष छोटी, शेफाली से उसकी दोस्ती ऐसी थी, तुम्ही से मोहब्बत, तुम्ही से लड़ाई----, उसे देखे बिना भी चैन नही, और सामने पड़ने पर लड़ना।
छोटी- छोटी निक्कर टी शर्ट पहने ,शेफाली उसे भाती, उसकी चोटी कैसे खींचता लड़ाई के समय, लड़कों की तरह कटे बाल जो थे उसके। बचपन मे तो उसे अच्छे लगते, पर किशोरावस्था तक पहुंचते पहुंचते कभी -कभी वह उसके द्वारा पहने गए कपड़ों पर चिल्ला देता----
क्या हर समय कैपरी, निक्कर, शार्ट स्कर्ट कुछ ढंग का नही पहन सकती टॉम बॉय ?
अपने काम से काम रखो, बड़े आये मेरी ड्रेस पर उंगली उठाने वाले--- वह मुँह बिचका कर कहती।
कभी-कभी वह आंटी से भी कहता, आंटी आप इसे समझाती क्यों नही। ऊट पटाँग कपड़े पहने रहती है, टॉम बॉय
पर आंटी उसकी बात पर मुस्कुरा देती। जाने दे प्रवाल। हम लोग किस ढंग से पले, हमेशा हमारे पिताजी सड़क पर आंखें नीची कर चलने की हिदायत देते।
अब जब तक हमलोगों के पास है, जिसमे उसकी खुशी
विचार और संस्कार तो अच्छे हैं , मेरी प्यारी बेटी---
रक्षा बंधन, भाई दूज आता तो टॉम बॉय उसे टीका करने से साफ इंकार कर देती। मुझे नही चाहिये किसी की रक्षा वक्षा, मैं खुद कर सकती हूँ अपनी रक्षा। ये मेरा दोस्त है दोस्त ही रहेगा।
प्रवाल अब खिड़की से हट कर बिस्तर पर लेट चुका था। पर यादों का सिलसिला था कि खत्म ही नही हो रहा था। सचमुच उसकी दोस्त ही तो थी, कितने काम कर देती थी। और घूमने, तफरी करने भी तो बाइक से दोनो साथ ही जाते, पर वह उसकी बाइक पर बैठने से साफ मना कर देती।
रहने दे, कहीं पटक देगा रास्ते मे----, मेरे पास अपनी है।
जब वो थोड़े लंबे निकर और शर्ट पहन कर आती, तो फिर उसका मुंह बन जाता, तूने फिर-----
चुप कर असल मे तू है ही लफंगा---, जीन्स कैपरी, आदि पहनने वाली लड़कियों को छेड़ता होगा, तभी तो मेरे साथ निकलने में घबड़ाता है, कहीं कोई मुझे न छेड़ दे--
तू जा, मुझे तेरे साथ नही जाना लफंगे---, शेफाली का गुस्सा सातवें आसमान पर होता।
तब वह सॉरी कह कर उसे मना लेता, चल महारानी, ऐसे ही चल
सोचते सोचते, प्रवाल की आंख लग गई।
सुबह ही आंटी, अंकल के यहां से बुलावा आया। शेफाली का कोई भाई तो है नही, तू ही चौथ का सामान लेकर चला जा।
अंकल की कार लेता जा और शेफाली को विदा कर ला।
निर्देशानुसार विदाई की सामग्री लेकर वह उसके ससुराल पहुंचा।
सारे रिश्तेदार अभी मौजूद थे, गली में घर, अजीब सा माहौल,
हर कमरे में गद्दे पड़े हुए थे।
कोई समानता नही थी, दोनो परिवारों के स्तर में। एक पल के लिए प्रवाल वहां का माहौल देख कर घबरा गया।
थोड़ी ही देर में शेफाली आ गई। साड़ी, मांग में सिंदूर, मेहँदी, हाथ भर भर चूड़ियां-----
सांवला रंग जो चमकता था, क्लांत सा लग रहा था। सर पर पल्लू
जो संभल नही रह था-----
आंख उठाकर उसे देखा, फिर आंखें झुका ली।
कार में भी घर तक मौन पसरा रहा, कोई कुछ न बोला।
वो जाते ही मां के गले लग गई, दोनो की आंखें भीगी थीं। फिर आंटी बोली मैं चाय नाश्ता लेकर आती हूँ, तुम दोनो बैठ कर बात करो।
प्रवाल खिड़की पर ही खड़ा था। बिना गर्दन मोडे बोला, शेफाली जाओ कपड़े चेंज करके आओ, कैसी देहाती सी लग रही हो---
कहते कहते गला रुंध सा गया।
ओहो! शेफाली!! टॉम बॉय नही?और लफंगा रोता भी है--- कह कर शेफाली मुड़कर तेजी से अंदर चल दी।
15,20 मिनट बाद, उसे अहसास हुआ कोई उसके पीछे था।
तब तक वह अपनी जेब से गॉगल्स निकल चुका था।
गर्दन घुमाई तो टी शर्ट और कैपरी पहने टॉम बॉय सामने थी
देख तो ये गॉगल्स कैसे लग रहे हैं टॉम बॉय?
ये बात!मैं जानती थी तुम कुछ ऐसी ही हरकत करोगे। ये देखो मेरे वाले। अविएटर्स लगाये टॉम बॉय सामने आकर खड़ी हो गई।
एक समवेत ठहाका वातावरण में गूंज गया।
चल मैं आज तुझे अपनी बाइक पर गोलगप्पे खिला कर लेता हूँ, गिराऊंगा नही, प्रॉमिस---
चलो--- तुम भी क्या याद करोगे-----

