Rashmi Sinha

Crime

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Rashmi Sinha

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प्रतिशोध

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जी धक धक कर रहा था आशा का, समय काटना मुश्किल था। क्या करूँ? चलो एक पेंटिंग ही बनाती हूँ, अपना ही पोर्ट्रेट---

   तस्वीर बनाते-बनाते ही कल का घटनाक्रम आंखों के आगे घूम रहा था, बार-बार नजर मोबाइल की ओर उठ रही थी। उसे लग रहा था लड़कियों और औरतों का सिक्स्थ सेंस बहुत स्ट्रॉन्ग होता है। खतरे को सूंघ लेती हैं।

पर खतरे को सूंघ कर भी वो क्या कर पाई थी? उस दिन जब वो बॉस के केबिन में गई तो उन्होंने उसे शेल्फ से एक फ़ाइल उठाने को कहा था, वो फ़ाइल निकाल ही रही थी कि पीठ पीछे किसी के होने का अहसास हुआ था।

     वो मुड़ती, इससे पहले ही उसे हल्का सा धक्का दिया जा चुका था और शेल्फ पूरी घूम चुकी थी। पीछे का कमरा साफ नजर आ रहा था, करीने से सजा, डबल बेड पड़ा हुआ।

     किसी काम न आया था उसका विरोध। रोती आशा को कोहली जी दिलासा ही देते जा रहे थे। वो उससे प्यार करते हैं। वो इस घटना का किसी से जिक्र न करे। नौकरी का भी तो सवाल है।

    खुद को संयत करके ही वो घर पहुंची थी।

एक हफ्ते की छुट्टी की एप्लीकेशन भेज कर दो दिनों तक रोती रही थी।

किसी से नहीं कहा था, पर अंदर का तूफान शांत होने का नाम नहीं ले रहा था।

किताबें उसका शौक था, उसमें भी कब मन लग रहा था। सुबह पार्क में टहलने भी गई, ठंडी हवा भी गर्म लू सी लगी थी। वापस आकर फिर एक किताब उठाई थी।

   उसमें किसी कैदी का जिक्र था, जिसे पानी का इंजेक्शन देकर कहा गया ये जहर का इंजेक्शन है,

सिर्फ 2 मिनट लगेंगे तुम्हे मरने में----

आश्चर्यचकित रह गए थे डॉक्टर और आस-पास खड़े लोग।

दो मिनट के अंदर ही वो कैदी मर चुका था।

भय-----

और जांच में उसके शरीर मे सचमुच जहर पाया गया। क्या हुआ होगा?

पर आशा के लिए पढ़ना वरदान साबित हुआ था।

वो उछल पड़ी। 7 दिनों की छुट्टी के बाद उसने ऑफिस जॉइन कर लिया था।

    बॉस उसे देख कर मुस्कुराए, गुड गर्ल! भूल जाओ सब कुछ। मैं सचमुच तुम्हे चाहने लगा हूँ।

मुस्कुराई थी वो प्रत्युत्तर में, और पूछा था, क्या मैं आपके साथ एक कप चाय पी सकती हूँ?

 "क्यों नही", बेल बजाकर उन्होंने चपरासी से दो कप चाय लाने को कहा था।

चाय के बीच, हल्की फुल्की बातों का दौर और फिर वो अपनी सीट पर आकर काम मे लग गई थी।

  दो दिन आशा उनके साथ चाय पीती रही और तीसरे दिन चाय पीने के बाद कमरे से निकलते हुए उसने मुड़ कर कहा, 'सर! उम्मीद है आप मुझे माफ़ कर देंगे।

"पर किया क्या है, तुमने?

सर, चपरासी को अपनी तरफ मिलाना आसान था।

500/- में मान गया, मैंने आपकी चाय में जहर मिला दिया है।

     अभी समय है, रिस्टवाच पर नजर डालते हुए उसने कहा, आप हॉस्पिटल जा सकते हैं। कह कर एक विषैली मुस्कान मुस्कुराते हुए केबिन से निकल आई थी।

  हड़बड़ाते हुए कोहली साहब उठे थे। कार में बैठ कर ड्राइवर को जल्दी हॉस्पिटल चलने का निर्देश देकर वो पिछली सीट पर लेट गए थे बेचैन----

      बार-बार सीने को हाथ से दबाते जा रहे थे।

उनकी बेचैनी देख ड्राइवर ने कार की स्पीड बढ़ा दी थी।

     इधर आशा के घर पर अचानक उसका मोबाइल बजा था। पेंटिंग बनाती आशा ने लपक कर फ़ोन उठाया था। संदीप था उसका कलीग--

  "बॉस नही रहे, सीवियर हार्ट अटैक था" देखते ही डॉक्टर ने मृत घोषित कर दिया।

मुड़ कर पेंटिंग की तरफ देखा था आशा ने, पेंटिंग में उसका पोर्ट्रेट मुस्कुरा रहा था।

आशा को पता चल चुका था आशा हिम्मती है, वो हारती नहीं।



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