दावत
दावत
नई शादी हुई थी आभा की और वो नए संसार में खुश---
हालाँकि उसे बहुत बार लगता कि प्रतीक से उसका स्वभाव बहुत अलग है। 26 वर्ष की आयु में विवाह हुआ था। सहेलियों और रिश्तों की बहनों की शादी से ये अनुभव तो बटोर ही चुकी थी कि शादी मीठा-मीठा गप्प, कडुआ, कडुआ थू का नाम नहीं है।
अनुभव कहता था कि विवाह में एडजस्टमेंट करना ही पड़ता है और ये एडजस्टमेंट लड़कियों के हिस्से कुछ अधिक ही आते हैं। वह प्राण-पण से तालमेल बिठाने की कोशिश करती आई थी, सर पर पल्लू रखने से आधुनिक दिखने तक---
मुंबई में प्रतीक का जॉब था, और रिहाइश एक बेडरूम वाले छोटे से घर मे।
प्रतीक पीता है, वो ये भी जानती थी, उसे भी इसमें कोई आपत्ति नहीं थी। आधुनिकता की ओर बढ़ रहे समाज का फ़ैशन था ये और वास्तविकता में वो खुद भी बियर पीने में उसका साथ दे देती।
आज प्रतीक ने बॉस और 2, 3 संगी साथियों को बुलाया था डिनर पर, आभा की पाक कुशलता का ठप्पा लगवाने----
वो भी दावत का मेनू तैयार कर, शाम से ही जुटी थी, ताकि उन लोगों के आने से पहले खाना तैयार हो। ठीक ऐसा ही हुआ था, खाना बनाकर वो स्वयं भी तैयार थी। समय पर वो लोग आए थे, और एक नजर में तीनों ही नहीं भाए थे उसे, पर हंसकर ही स्वागत किया था।
कुछ अधिक ही मजाक कर रहे थे सब, और वो चाय सर्व करने के बहाने किचन में आ गई थी।
चाय की ट्रे लेकर कमरे में घुसने ही वाली थी कि प्रतीक की आवाज़ सुनाई दी थी, सर मैं पान लेने के बहाने जाऊंगा आप देख लेना, एक दबी हुई हंसी----
धड़कने बढ़ चुकी थी आभा की, चुपचाप दबे कदमों से लौटी थी, और पीछे का दरवाजा खोल कर पहले दबे कदमों फिर तेज दौड़ लगा दी थी उसने---
दिल धड़क रहा था तेजी से पर वो गलियों और सड़कों का सहारा लेकर भागती ही जा रही थी
निरुद्देश्य-----
एक नए उद्देश्य की तलाश में।