कर सेवा, खा मेवा
कर सेवा, खा मेवा
इस बार दूसरी बार, एक ईमानदार प्रत्याशी, कामता प्रसाद जी चुनाव में खड़े हुए थे।पिछले चुनावों में भी जनता का सहयोग ही उनका मनोबल बढ़ाये हुए था, पर कोई भी पार्टी उनको, उनके ईमानदार प्रयासों के बावजूद टिकट देने को तैयार न थी।
टिकट वितरण भी, प्रत्याशी के द्वारा चुनाव में कितना खर्च किया जा सकता है और वो पार्टी फण्ड में कितना देगा, उस पर निर्भर था। कामता प्रसाद के पास ये दोनों ही योग्यताएं नही थीं।
निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में खड़े होने पर पिछले चुनाव में उनकी जमानत जब्त हो चुकी थी।
जनता थी कि फिर उनको सामने लाने पर तुली थी। कुछ आशा और कुछ निराशा के साथ उन्होंने फिर धड़कते दिल के साथ नामांकन करवा दिया था।
परिणाम वही ढाक के तीन पात। इस बार जमानत तो नही जब्त हुई थी पर हारे बुरी तरह थे।
सांत्वना देने वाले सांत्वना दे रहे थे, और चले जा रहे थे। तभी पत्नी का हाथ कंधे पर महसूस हुआ,
" परेशान क्यों होते हो जी?" 'आखिर आप जनता की सेवा ही तो करना चाहते हैं?'
हां! एक धीमी सी आवाज़ में उत्तर आया था, कामता प्रसाद जी का।
" ठीक है! हम लोग मिलकर, एक गैर सरकारी सेवा संस्थान खोलेंगे,और अपनी हर इच्छा पूरी करेंगे सेवा की" । पत्नी कुसुम के प्रस्ताव ने कामता जी के आंखों की चमक बढ़ा दी थी।
किंतने ही अरमान थे उनके, गांव में प्रौढ़ शिक्षा,निशुल्क चिकित्सा, बच्चों का स्कूल, महिलाओं को सिलाई मशीन , स्वरोजगार----
" ये कुसुम तो कमाल की निकली", स्वगत उक्ति थी ये,वो उठे मुस्कुराते हुए, । गांव वालों को अपनी योजना बताई और ऐसे खुला "के पी. सेवा संस्थान"। सब ने अपनी सामर्थ्य से बढ़कर धन, जमीन, उपलब्ध कराई। सबसे पहले प्रौढ़ शिक्षा की नींव पड़ी।
बहुत खुश थे अब के.पी.। तभी उस इलाके के विधायक प्रवीण विशारद उनसे मिलने आये और अपनी ओर से सम्पूर्ण सरकारी सहायता दिलाने का वचन भी दिया।
इसके बाद भी प्रवीण जी मद्धिम आवाज में जाने क्या क्या समझाते जा रहे थे के पी को और वो सहमति में सर हिलाते जा रहे थे।
चमक उठा था उनका एन. जी. ओ, सरकारी अनुदान, और विधायक निधि का सहयोग पाकर। अब गांव में बच्चों का भी स्कूल था और महिलाओं को रोजगार भी और जगह-जगह विधायक जी के नाम के उदघाटन के पत्थर भी।
के पी जी का मकान कोठी में बदल चुका था। ऐसे में ही वो एक दिन सुबह-सुबह सिल्क के कुर्ते पायजामे में दिखे थे गाँव के प्रधान जी को टहलते हुए। मुँह में पान, प्रसन्न मुखमुद्रा----
"क्या बात है के पी जी आप तो पहचाने ही नही जा रहे"? ,
" ओवरहॉलिंग""? " अब जल में रहकर मगर से बैर भी तो नही कर सकता", हंसे थे वो, और इस हंसी में प्रधान जी की भी हंसी भी शामिल थी।सेवा की थी,-----, मेवा तो मिलना ही था