Rashmi Sinha

Children

3  

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दादी की कहानी

दादी की कहानी

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नन्ही नव्या दादी से जिद कर रही थी, दादी कहानी सुनाओ न?

  अच्छा रुको सुनाती हूँ, एक राजा था---

फिर? नव्या के कान चौकन्ने हुए, फिर? दादी की बात अधूरी रह गई।

नव्या---, ये उसके भाई आशी की आवाज़ थी, जो टी वी के आगे जमा हुआ था, और पिकाचू को पूरी तन्मयता से देख रहा था।बीच- बीच मे हंसता और ताली भी बजाता जा रहा था। नव्या, देख तो तेरा डोरेमोन आ गया। दादी,मैं देख कर आऊं प्लीज--

   हाँ, जाओ, दादी की सहर्ष इजाजत थी।

पर दो ही मिनट के अंदर नव्या फिर हाजिर. तो दादी, राजा था---,फिर?

दादी मुस्कुराई, तो वो जंगल में एकदिन शिकार खेलने गया।अपने तीर धनुष साथ लेकर, और जब उनका तीर निशाने पर लग जाता था तो सब खुश होते।और हिरण, शेर? वो भी खुश होते?

नहीं बुद्धू, वो तो मर जाते दादी ने बताया। अरे!

  नव्या का चेहरा उदास हो गया।

फिर उनके दरबारी उस शिकार को महल में लेकर आते। हिरण की खाल निकाल कर टांगी जाती और शेर की खाल में भूसा भर कर दरबार मे रखते। सब लोग प्रसन्न होते राजा बहादुर है---

    नहीं, राजा बहादुर नहीं था, ये आशी की आवाज थी, जो दादी की कहानी सुनने का लोभ न छोड़ पाया था। दादी का हाथ हिलाकर कहानी सुनाना, चेहरे के हाव-भाव उसे दादी के कमरे तक खींच लाये थे हाँ भैया! गंदा राजा----है न दादी!!

    बहुत गंदा राजा, दादी ने भी मुँह बनाते हुए कहा।कोई खुद को बहादुर सुनने के लिए भला जानवरों को मारता है? 

   आशी, नव्या, तुम दोनों भी अपनी खुशी के लिए किसी का दिल नहीं दुखाना। हम नहीं दुखायेंगे, दोनों ने समवेत स्वर में कहा।

  दादी बोली शाबाश अब आगे सुनो, एक दिन राजा अपने महल की छत पर खड़ा था, उसे एक लड़की दिखी----कौन? रानी दिखी आशी ने उत्साह से पूछा। अरे सुनो तो वो रानी नही थी पर खूब सुंदर--गोरी, गोरी--- नव्या की तरह , कह वो हंसी--सच दादी, और नव्या ने दादी के गले मे अपनी नन्ही-नन्ही बाहें डाल दी। आशी- और मैं ?

अरे मेरा आशी भी तो राजा की तरह सुंदर है--

  हाँ दादी! आशी हंसा--

तो सुनो! राजा की मम्मी भी राजा के पास खड़ी थी। और उस लड़की को देखकर खुश होते हुए राजा को देख रही थी।

  वो उस लड़की को जानती थी। वो दरबार के एक मंत्री की बेटी थी। पर--- राजा ,रानी का नाम क्या था? 

ओफ्फो! बहुत पूछते हो तुमलोग ,दादी गुस्सा हुई

और फिर सोचते हुए बताया, राजा का नाम देवेंद्र और उस लड़की का नाम शची. अरे वाह!

   फिर राजा की मम्मी ने उस मंत्री से बात की और राजा की उस लड़की से धूमधाम से शादी हो गई। रानी बन गई--- आशी और नव्या ने ताली बजाई।

   अच्छा सो जाओ दोनों, कल सुनाती हूँ।

दोनों ही नींद में थे, सो गए, दादी भी सो गई। पर अगले दिन दोनों फिर दादी के पास। दादी हंसी,

      उसे अच्छा लग रहा था, उसकी कहानी ने दोनों बच्चों को टी वी के सामने से हटा दिया था।

   फिर दोनों खुशी से रहने लगे, पर रानी --

मतलब शची दिन भर खाली बैठी रहती गेम खेलती , अच्छे अच्छे पकवान खाती। उसके सर धोने से लेकर, मालिश करने का काम भी दासियाँ करती थीं। खाना भी रसोइए ही बनाते थे। और जब उसे खाना पसंद नहीं आता तो वो रसोइए पर चिल्लाती और उसे खूब डाँटती। और दासियों पर भी गुस्सा करती।

  दादी गुस्से में मुँह बना-बना कर, कहानी जारी रख रही थी। जैसे मैं मम्मी का बनाया खाना ,पसंद न आने पर छोड़ देती हूँ? कुछ सोचते हुए नव्या ने कहा। हां! उदास होकर दादी ने कहा, मम्मा मेहनत से बनाती है न? तो उसे बुरा लगता होगा।

  और रसोइया और दासी लोग भी डांट खाकर चुपके से रोते थे----अरे! आशी और नव्या के चेहरे पर हैरानी थी।

फिर एक दिन राजा की मम्मी ने प्यार से राजा को समझाया। और उन दोनों को एक उपाय भी बताया। कान में?

हां कान में तो राजा गरीबों जैसे कपड़े पहनकर अपने राज्य में घूमता, और सब के दुख अपनी आंखों से देखकर आता। और रानी भी चुपके, चुपके सब दासियों और रसोइयों की बातें सुनती।

  राजा और रानी को अपनी गलती समझ आ गई और वो लोग सबकी मदद करने लगे, और गुस्सा भी नहीं करते थे।

और?? दोनों के चेहरों पर कौतूहल था।

  दादी मुस्कुराई, और राजा ने शिकार करना भी छोड़ दिया। सब लोग खुश रहने लगे।

अच्छा आशी ,नव्या बताओ तो तुम लोगों ने क्या सीखा? किसी को दुखी करके खुश नहीं होना चाहिए, ये आशी था----

और मैं भी मम्मी को परेशान नहीं करूँगी, खाना भी नहीं छोड़ूंगी, नव्या ने बिस्तर पर कूदते हुए बताया। शाबास बच्चों, दादी की कहानी पूरी हुई।



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