काठ की हांडी
काठ की हांडी
आज बहुत दिनों बाद सभी मजदूर एक ही जगह कैंटीन में एकत्रित थे। सब के बीच एक दरार थी वो खाई बनाई जा चुकी थी। समस्त कामगार यूनियन की एकता ध्वस्त हो चुकी थी।
हिन्दू, मुस्लिम, दलित सवर्ण नामक वायरस सबके ही दिलों पर आक्रमण कर चुका था। सभी लोग एक दूसरे को अविश्वास से देखने लगे थे।
पता नही कौन प्रशासन का चमचा और चाटुकार हो और खुद की तरक्की के लिए उनको गिराता हुआ निकल जाए।
अश्विन सलीम को और रामदीन सुधीर को देखकर मुँह फेर लेते।
उधर उच्च अधिकारी और मालिक अपनी सफलता पर फूले न समा रहे थे। बांटो और राज करो की नीति अंततोगत्वा सफल रही थी।
कई दिनों से अंदरूनी खबरे लीक होकर मजदूर यूनियन तक पहुंच रही थी कि किसी ने उनकी कंपनी का अधिग्रहण कर लिया है। उस विदेशी कंपनी के पास आधुनिकतम मशीनें और यहां तक कि यंत्रचालित मानव यानी कि रोबोट भी हैं।
छंटनी की खबर भी जोरों पर थी। सभी के दिलों में जन्मी आशंका निर्मूल न थी। ऐसा एक यूनियन नेता ने गुपचुप हो रही अधिकारियों की बैठक से पता किया था।
सब हंस रहे थे कि ये खाई डालकर वो अपने उद्देश्य में सफल रहे थे। छोटे झुंड से वो निपट लेंगे।सन्न रह गया था वो युवा मजदूर नेता।
यही वजह थी उनके कैंटीन में इकठ्ठा होने की। तभी एक का ध्यान कैंटीन में लगे सी सी टी वी कैमरों की तरफ गया,और अचानक ही उनके बीच गर्मागर्मी और वाकयुध्द जैसे द्रश्य नज़र आने लगे।
कुछ लोग लड़ते-भिड़ते बाहर निकले, और बाहर के खुले वातावरण में कहीं और मिलना तय हुआ।
आज वो सब दूर स्थित एक ढाबे में थे जहां उस युवा मजदूर ने अधिकारियों की बैठक में सुना हुआ सच सबको बताया।
सभी को अपनी गलती पर पश्चाताप था और अब पुनः वो जाति सम्प्रदाय छोड़ अपने संयुक्त हितों के बारे में विमर्श करते हुए हड़ताल का निर्णय ले चुके थे।
ये हड़ताली एक जुलूस के रूप में अधिकारियों के चैम्बर की ओर प्रस्थान कर रहे थे।
नेतृत्व कर रहे थे अश्विन, सलीम, रामदीन और सुधीर, मजदूर एकता जिंदाबाद के नारों के साथ--
अवाक थे उच्च अधिकारी। सच है काठ की हांड़ी बार-बार नही चढ़ती।