टिप टिप बरसा पानी...
टिप टिप बरसा पानी...
आसमान पर बादल छाए हुए थे। बिजली चमक रही थी। लग रहा था जोरों की बारिश होगी। दिन में भी काला अँधेरा छाया हुआ था। ऐसे मौसम को देखकर कोई पुरानी याद ताजा करना मानों उसी माहौल में लौट जाना।
रोमिल अपने कझिन के घर शादी की तैयारियों में मदद करने गई हुई थी। उस दिन भी ऐसी ही पहाड़तोड़ बारिश हो रही थी, मुसलाधार से भी जोरदार। सारा आलम तहसनहस करने को बेकाबू हो उठने वाली वो बरसात कभी नहीं भूला पायेंगे लोग। ऐसा सोचते हुए भी रोमिल की आँखें बोझिल हुए जा रही थी।
रोमिल के लिए भी वो नज़ारा कुछ हद तक डरावना सा ही था। ख़ुदको शाबाशी देती हुई मन ही मन बुदबुदा रही थी कि, सुबह की बस पकड़कर सहीसलामत यहाँ पहुँच गई। वरना बीच मझधार किस किससे मदद माँगती फिरती। और मदद किसी ऐसे इंसान से मिलती जो घर के बदले कहीं ओर ही ठिकाने पे पहुँचा देता तो!! डर के मारे रोमिल के हाथ पैर फूलने लगे।
और तो और,
उसका दिल जोरों से शोरगुल करने लगा। तभी आंटी ने उसे पुकारा तो वो भीतर चली गई। तभी बारिश ने भी अपना रुख़ बदला। मानों उसीके जाने का इंतज़ार कर रुकी हो। और बारिश की गति मद्धम होने लगी।
लोगों का भी यहाँ वहाँ भागना लाज़मी ही था। बरसाती लेकर आज घर से न निकलने वाले ख़ुदको जरूर कोसते होंगें। और छत्री या रेनकोट पहनकर नन्हें मुन्ने बच्चे भी माँ पापा की उँगली थामे भागदौड़ में फैमली रेस की भाँति हिस्सा ले रहे थे।
रोमिल को वो बरसात की हसीन शाम अपने बचपन की याद ताज़ा करा गई। रैनबॉ वाली बरसाती खरीदवाने की उसकी बचपन की जिद्द ने पूरे घर में झलझला ला दिया था। और पैसे कम पड़ने पर भी पापा ने उसे वो ही बरसाती दिलवा दी थी। ऑवर टाइम कर करके उन एक्स्ट्रा पैसों की भरपाई हो पाई थी।
बारिश की बूंदों की टिप टिप आवाज़ ने रोमिल को अतीत से वर्तमान में लाकर खड़ा कर दिया। तो उसका ध्यान राह चलते राहगीरों पर गया।
रिमझिम बरसती बारिश अचानक तेज होने लगी। तेज बारिश से बचने के लिए कई राहगीरों ने आसपास के पेड़ों का आसरा लिया। तो कुछ ने घरों की बाहर की ओर फैली हुई छत और छज्जे को अपना आधारस्तम्भ मान आश्रय लिया।
वैसे ही एक नौजवान ने अपनी हीरो होंडा बाइक को वटवृक्ष के साये में आसरा दिया। और बाइक से उतरकर खुद भी वहीं सिर ढके आसपास खड़ा रहा। खुद राइड करने से काफी हद तक वो भीग ही चुका था। फिर भी शायद तेज हवा के साथ गिर रही मूसलाधार बरसात की मार से बचने के लिए ही स्टेच्यू बन वृक्षासन में खड़ा था वो।
रोमिल की नज़र बारिश की बूंदों से तरबतर उस नौजवान पर पड़ी। जो अपने कपड़ों से बरसाती बूंदों को झटकने में व्यस्त था। फिर एक बार बिजली चमकी। और रोमिल का उसे एकटूक देखना, और उसी समय उस नौजवान की नज़र का भी खिड़की में खड़ी रोमिल पर अनायास पड़ना। योगानुयोग ही था या ईश्वर का कोई संकेत!
दोनों की नजरें एकदूजे में खो सी गई। झील सी आँखों में नौजवान डूबता जा रहा था। 'आह! कितनी खूबसूरत है वो ऑंखें! काश, ये नज़ारा जिंदगीभर के लिए देखने को मिल जाता तो, कितना अच्छा होता!'
नौजवान के मन की मुराद रोमिल के दिल तक दस्तक देने लगी। उसे भी वो नौजवान पहली ही नजर में भा गया था। पर अन्जान शहर और उस पर कझिन की शादी वाला घर। किसीको पता चल गया तो कझिन को छोड़ उसकी ही शादी के बेंड बजने लगेंगें। फिर हो चुकी उसके सपनों की ऊंची उड़ान!!
रोमिल ने दूसरे ही पल ख़ुदको आश्वस्त किया और वो वहाँ से भीतर चली गई। नौजवान की ओर बिना देखें।
नौजवान को झील सी आँखों वाली कन्या को पल दो पल में खो देने का ग़म तो बहोत हुआ। पर, वो भी सोचने लगा कि, पराए शहर में यूँ मुलाकात होना ही कोई करिश्मे से कम न था। ऊपर से किसीने देख लिया तो लेने के देने पड़ जायेंगे। खुद तो यहाँ दोस्त की शादी में बाराती बनकर आया था। तो वो ही काम निबटाकर चलता बन यार। कहीं दोस्त के घरवालों को पता चल गया तो, तौबा तौबा, खैर नहीं श्यामल तेरी। निकल यहाँ से।
अपनेआप से बुदबुदाते हुए वो नौजवान श्यामल रोमिल के घर के पास वाले वटवृक्ष का साथ छोड़ आगे निकल गया।
और,
आंटी का काम निबटाकर खिड़की पर लौटी रोमिल का गुलाब सा खिला चहेरा एकदम से मुरझा गया। खिड़की के बाहर खड़ा वो नौजवान उसे कहीं नजर नहीं आया। और होशोहवाश खोती रोमिल घर के बाहर दौड़ आयीं। मानों उसका कोई अपना ही बरसात में बर्फ सा पिघल गया हो।
बारिश अब भी रिमझिम रिमझिम बरस ही रही थी। बारिश की फ़िक्र न करते हुए रोमिल नुक्कड़ तक देख आयीं। पर वो कहीं नजर न आया।
झील सी आँखों वाली रोमिल को अपने पीछे भागते देख श्यामल का एक मन तो उसे गले लगाने का कर रहा था। पर दूसरे ही पल उसे अपने अस्तित्व का एहसास हो चला। और वो इमली के पेड़ की झाड़ियों में ख़ुदको छुपाए खड़ा रहा।
बीच बीच में बारिश भी कुछ ज्यादा ही तेज हो चली थी। वटवृक्ष का आसरा छोड़ श्यामल पछताने लगा था, कि इमली के पेड़ के नीचे पानी से अपनेआप को बचा नहीं पा रहा था। पर और कोई चारा भी तो नहीं था उसके पास। उसने इधर उधर नजर दौड़ाई, ये देखने को की वो खिड़की वाली लड़की गई या नहीं!
रोमिल का हृदय उसके आपे में न था। उसे अब भी ये लग रहा था कि, वो नौजवान यहीं कहीं आसपास ही होना चाहिए। वरना उसका दिल उसे यूँ बार बार दस्तक न देता। रोमिल रिमझिम बारिश को तेज होता देख पेड़ की कोरी छाँव ढूँढ़ने में रही। और तभी एक ट्रक ने उसे जोर की टक्कर मारी। वो लड़खड़ाते हुए इमली के पेड़ के चबूतरे पर जा गिरी।
अचानक उसकी और नौजवान की नजर मिली। पता नहीं कितनी देर तक वे दोनों एक दूसरे को बूत बने देखते रहे। दोनों बारिश में पूरे भीग चूके थे। ऊपर से रोमिल की कनपटी से रक्तधार बहने लगी। कुछ देर बाद वो बेहोश हो गई।श्यामल ने रोमिल को उठाने की बहोत कोशिश की। पर ट्रक की टक्कर से लगी मार से बेहोश हुई वो लड़की के लिए वो क्या करें? किसे बुलाये? वो कुछ समझ नहीं पा रहा था।
अचानक से उसे गली के दूसरे छोर पर जहाँ उसको पहली बार देखा था, वो ही उसका घर होगा। ये सोचकर वो उसे वहीं लेकर जाने लगा। बाइक पर उस बेहोश लड़की को बिठाकर ले जाना मुश्किल हो चला था। पुकारने के लिए उसे रोमिल का नाम भी तो नहीं पता था! फिर भी वो रोमिल के गालों पर थपकियाँ लगाता हुआ उसे उठाने की कोशिश में था। ताकि वो कॉमा में न चली जाए।श्यामल आधे घंटे पूर्व ईश्वर से इसी लड़की का जीवनभर का साथ माँग रहा था। अब जबकि वो उसके इतने करीब थी तो उसे घबराहट हो रही थी। और फ़िक्र भी, की कहीं वो मिलने से पूर्व ही हमेशा के लिए उससे अलविदा न हो जाये।
उसी उधेड़बुन में रोमिल का घर भी आ गया। श्यामल ने घर के ऑंगन में से ही भीतर की ओर आवाज़ लगाई। छत पर गिरती बारिश की टपटप की आवाज में श्यामल की पुकार भीतर रहते किसीके कानों तक न पहुँच पाई.रोमिल के सिर से बहते खून को देख श्यामल ने आव देखा न ताव और वो घर के भीतर घुस गया।
ऑंगन पार करके बरामदे में पहुँचने पर भी उसे कोई नजर नहीं आया। तो वो और भी घबराने लगा। तभी दूसरी मंज़िल से रोमिल के नाम की पुकार उसे सुनाई दी। उसने भी ऊपर देखा और रोमिल की ओर इशारा करते हुए सारा वाक़्या कहने की कोशिश की।पर रोमिल को किसी अन्जान आदमी की बाहों में देख उसके अंकल का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया। दूसरी मंज़िल से उतरते हुए उन्होंने सभी को आवाज़ दे देकर नीचे बुला लिया।
दूसरे ही पल सबके सब नीचे आ गए। आंटी ने रोमिल को अपने पति की सहायता से सोफे पर लेटाया। और सुषी ने फैमली डॉ. को बुलवा लिया। किर्तना अपनी माँ की हिदायत सुन किचन से पानी ले आई। और फिल्मी स्टाइल में रोमिल के चहरे पर स्प्रिंकल करने लगी। छुटकी फर्स्ट एड बॉक्स ले आई। और रोमिल दीदी के ज़ख़्म को रुई के फांहे से डरते हुए पोंछने लगी।कुछ ही मिनटों में डॉ. भी आ गए। रोमिल को घायल देख इशारों में ही अंकल आंटी से क्या हुआ? कैसे हुआ? पूछने लगा। मानों रोमिल उसकी ही कुछ खास लगती हो।रोमिल के घरवालों की सभी की नज़र एकसाथ में उस नौजवान पर पड़ी। जो उसे उठाकर घर ले आया था।
अंकल ने अपने गुस्से पर काबू पाते हुए श्यामल से सीआईडी की तरह पूछताछ शुरू कर दी। बाकी सारे भी एक एक करके पूछने लगे। श्यामल को बोलने का मौक़ा ही नहीं मिला। उस पर उसके मोबाईल फोन ने भी अपना वजूद जाहिर करते हुए रिंगटोन बजाने लगा।मोबाईल फोन की रिंगटोन सुनकर सभी लोग चौंक गए। रोमिल से दूर होने के विचार मात्र से श्यामल का दिल बैठा जा रहा था। और दूसरी ओर उसके दूल्हे दोस्त का फोन बजे जा रहा था।
"एक मिनट!" कहता श्यामल रोमिल से ओझल हुआ।
"हल्लो, आवाज नहीं आ रही है तुम्हारी!" कहते हुए श्यामल बरामदे तक पहुँच गया। "नेटवर्क प्रॉब्लम है क्या?" छुटकी ने श्यामल को पूछते हुए खिड़की की ओर जाने का इशारा किया।
छुटकी को हाथ ऊपर की ओर करते हुए इशारे से ही थेंक्स कहता श्यामल खिड़की पर गया। अपने दूल्हे दोस्त को घटित जजतना का पूरा ब्यौरा सुनाकर यहाँ आने की रिक्वेस्ट भी की।अपने दूल्हे दोस्त से बतियाते हुए श्यामल रोमिल के पास लौट आया।डॉ. ने ड्रेसिंग कर दिया था। और अब सभी श्यामल से वारदात सुनने को बेताब दिखाई देने लगे।श्यामल ने ट्रक के द्वारा टक्कर का सारा वाक़्या और उसके पहले की उन दोनों की नजर मिलने भर का नज़ारा भी स्पष्ट कर दिया।श्यामल का शुक्रियादा करते हुए हर कोई उसे कुर्सी पर बैठने और उसकी आवभगत करने में लग गए।
किर्तना के मोबाईल फोन की रिंगटोन बजने लगी। अपने फियांसे की कॉल देख किर्तना चौंकी ही थी। उससे ज़्यादा बाकी सभी को आश्चर्यचकित हुआ देख किर्तना मोबाइल पकड़े यूँही खड़ी रह गई।श्यामल को किर्तना को देख एक पल के लिए तो यूँ लगा कि, उसने इसे कहीं तो देखा था। पर कहाँ? और अगर देखा भी हो तो उसका अब क्या करना था? और तो और रोमिल की नाजुक हालत को लेकर परेशान होना छोड़ वो इस लड़की के प्रति क्यों शंकित हुए जा रहा था!!
श्यामल ने सबकी नजर बचाकर ख़ुदको एक थप्पड़ जड़ दिया। छुटकी ने उसे देख लिया। अजनबी ने अपनेआप को क्यों थप्पड़ रसीद किया होगा! ये उसकी समझ में बिल्कुल भी न आया।
और जब कभी भी और जो भी समझना उसे मुश्किल होता तो, वो रोमिल दीदी से पूछ लेती थी। पर अभी तो दीदी ही बेहोश पड़ी थी।
'किससे पूछे?' मन ही मन बुदबुदाती छुटकी श्यामल से भिड़ गई। खिड़की की ओर श्यामल को खींचते हुए छुटकी ने धीमे स्वर में उसे पूछ ही लिया -
"हाय हैंडसम! आपका नाम क्या है? और ये अपने अपनेआप को ही थप्पड़ क्यों रसीद किया? कहीं आपने ही तो रोमिल दीदी को टक्कर नहीं मारी थी!"
दस बारह साल की लड़की का यूँ बेतकल्लुफी में उसे पूछना श्यामल को भा गया। उससे भी बढ़कर बड़े बुजुर्गवार की भाँति इंक्वायरी करने की हिम्मत भी कमाल लगी उसे। श्यामल ने भी मुस्काते हुए छुटकी को उल्टा सवाल पूछा -
"हाय ब्यूटीफुल! वॉट्स योर नेम? और मेरी जासूसी करने को किसने फीस दी तुम्हें? बोलो, बोलो।"
"उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे!"
"अरे वाह, मैडम! जासूसी आप करो, क्वेश्चंस आप पूछो। और चोर हमें पुकारो। ये कहाँ का न्याय हुए भला!"
"तो, सीधे सवाल का सीधा सा जवाब दे दो। कौन हो, कहाँ से आये हो, और मेरी दीदी को घूर क्यों रहे थे?"
श्यामल के जवाबों को सुनने से पहले ही छुटकी ने अपने होने वाले जीजाजी को हड़बड़ाहट में घर में आते देखा। तो वो श्यामल का पीछा छोड़ जीजाजी के पास दौड़ी चली गई।
"जीजाजी! आप और यहाँ! किसीने देख लिया तो शामत आ जायेगी। आप जल्दी से लौट जाओ। मैं दीदी से कहकर आपको फोन करने लगाती हूँ। प्लिज़ आप अभी यहाँ से चले जाइये।" छुटकी ने एक ही सांस में सब कह डाला।
श्यामल एक नजर छुटकी को तो दूसरी नजर अपने दूल्हे दोस्त को देख आश्चर्यचकित हो गया। उसे यकायक किर्तना को कहाँ देखा था वो याद आ गया। और वो अपने दोस्त सुरजीत की ओर मुड़कर उसे थेंक्स कहने लगा।छुटकी और अजनबी को रोमिल वाले कमरे में न देख आंटी बरामदे की ओर बढ़ी थी। अपने जवांई को सुरजीत को देख उनका भी माथा ठनका। चहेरे के हावभाव बदलने लगे। अपने पति को बुलाये या बेटी को ये उलझन में उनसे कुछ न बोल गया। और बूत बने वो वहीं ठिठक गए।सुरजीत ने आगे बढ़कर अपनी होनेवाली सासूमाँ का ढाँढ़स बँधाया। श्यामल की पहचान कराकर खुदके वहाँ आने का मक़सद ज़ाहिर किया। तब तक घर के बाकी सारे भी वहाँ पर आ पहुँचे।अंकल जी ने दामाद को देख आगबबूला होना चाहा। पर अपनी पत्नी की हिदायतों को याद करते हुए शक़्ल पर बारह बजाने न दिए।और दामाद जी से सारा वाक़्या समझ लिया। श्यामल से नए सिरे से पहचान बनाई। और सब रोमिल को देखने भीतर गए।
रोमिल भी स्वस्थ दिख रही थी। उठने की उसकी कोशिशों को अंकल आंटी ने नाकाम करते हुए लेटे रहने को कहा।और सब दामाद जी की आवभगत में जुट गए।सुरजीत ने श्यामल से इशारों इशारों में बहोत सी बातें पूछ ली और बहोत कुछ जान भी लिया।
डॉ. कमलेश्वर की निगाहें भी सुरजीत और श्यामल के आँखों की बोली को समझने में थी। कि तभी रोमिल ने अपने से होकर सबकी माफ़ी माँगी।
"बेटा, तुम्हारें पापा मम्मी कल आयेंगे ही ना। तब इस बारे में बात करेंगें। फिलहाल तुम आराम करो।"कहते हुए अंकल का इशारा समझते ही बारी बारी से सब कमरें से बाहर निकलने लगे।श्यामल और रोमिल की नजर एक और बार टकराई।रोमिल ने नजरें झुकाकर श्यामल को थेंक्स कहा। और श्यामल ने भी उसका रिप्लाय मुस्कुराहट बिखेरते हुए दिया।
श्यामल की मुस्कान देख रोमिल का रोम रोम जी उठा। अपने पापा मम्मी का अब उसे बेसब्री से इंतजार था।
दूसरे दिन दोपहर ढलते ही उसने अपने पापा मम्मी की फिक्रमंद गूँज हवेली में गूँजती हुई सुनी। पापा मम्मी से मिलने को बेताब रोमिल पापा की राउडी आवाज सुन घबरा गई। अब तक बंधा हुआ ढाढस जवाब देने लगा था।
पापा को अपने करीब पाकर रोमिल की झुकी हुई निगाहें उठ न पाई। बेटी के बोझिल चहेरे को देख मन ही मन मुस्काते पिता ने झूठमूठ का क्रोध जाहिर किया। और बहोत कुछ आँखों ही आँखों में सुना डाला।
रोमिल की नीली ऑंखें डबडबाती चली गई। वो तो ग़नीमत था कि, ऐन वक्त पर मम्मी ने एंट्री मारी। और अपनी लाड़ली बेटी को पापा की झूठमूठ की लड़ाई से बचा लिया।
किर्तना की शादी की धूम में रोमिल और श्यामल का एकदूजे के लिए सॉफ्ट कॉर्नर रखना औरों के मन से अछूता न रहा। घर के कामकाज में जहाँ जहाँ रोमिल की जरूरत महसूस होती, श्यामल प्रकट हो जाता। क्या टेलीपेथी थी उन दो नए उभरते दो प्रेमियों के दरम्यां!
दूसरी ओर छुटकी अपनी रोमिल दीदी से श्यामल के साथ के पहले अनुभव कप शेर करवाने में कामयाब होने लगी। और रोमिल के मम्मी पापा ने दिया हुआ काम भी बखूबी पूरा होने लगा।
शादी के संगीत संध्या वाले दिन रोमिल छुटकी से अपनी आपबीती कहे जा रही थी। और उसे अंदाज़ा भी न था कि, कोई उसकी बातें रेकॉर्ड भी कर रहा था।
जैसेकि,
लेकिन मुझे इस बात का एहसास ही नहीं रहा कि वो मुझे एकटूक घूरे जा रहा था। और ना मुझे खयाल आया कि मेरी अधखुली निगाहें भी उसीको देखने के लिए तरसने लगी थी। कनखियों से उसे देखते ही रहने का मन क्यों हुए जा रहा था, ये हलचल समझ ही न पाई मैं।
ये सिलसिला और आगे बढ़ते हुए तब देखा जबकि,
डॉ. के इन्जेक्शन लगाने तक मेरे सिरहाने खड़े श्यामल का हाथ अन्जाने में ही मुझसे कसता चला गया। और बेशुद्धि में भी मुझे उस पर इतना विश्वास कैसे हो गया छुटकी!? नहीं जानती मैं। बिल्कुल भी नहीं जानती।
रोमिल के दिल की बातें और करियर के बीच की उसकी अनसुलझी कश्मकश जानकर रोमिल की मम्मी ने अपने पति से और भाई साहब से इस मामले में गुफ़्तगू करने की ठान ली।
नतीजन,
पल दो पल में सारा मामला सबकी समझ में आने लगा। फुसफुसाहट शुरू हो गई। रोमिल और श्यामल उस बात से बिल्कुल भी अन्जान थे कि, घरवाले उन्हें रिश्ते में बांधने की तजवीज में थे।
तभी,
रोमिल के पापा को कल वाला वाक्य5 याद आया। जबकि वे स्टेशन पर अकेले खड़े थे किसीके लिवाने के इंतज़ार में। और देर् तक खड़े रहने की आदत न होने पर खुद ही शादी वाले घर की ओर बढ़ने लगे।
घर आते ही आगबबूला हो उठे थे -
"अरे भई, कोई हमें स्टेशन लेने क्यों नहीं आया? भूल गए क्या अपने बड़े बुजुर्गों को क्यों? क्या ज़माना आ गया है अब तो! तुम्हारी जगह हम होते तो दौड़े चले आते तुम्हें लेवाने के वास्ते। और ना बन पाता तो अपनी लाडो रोमिल को ही गाड़ी समेत भेज देते स्टेशन। वो भी घंटे भर पहले, क्या समझें!"
रोमिल और सुष के पापा एक्सप्रेस ट्रेन से भुनभुनाते भीतर चले आये।
रोमिल को सोफे पे लेटा देख उनका सारा गुस्सा काफ़ूर हो गया। उसी क्रुद्ध आवाज़ ने अब फ़िक्र का लहज़ा पकड़ लिया। और फ़िक्र होने का दावा करते झल्लाने लगे।
"एक ही घटना को बार बार दोहराने से क्या मतलब रोमिल के पापा! अब बेटी रोमिल के बारे में आगे क्या सोचना चाहिए। बस उस विषय में बात करो।"
रोमिल के पापा का सपना था कि, उनकी बड़ी बेटी रोमिल फैशन डिजाइनर बनें और छोटी सुष इंटीरियर डिजाइनर। और उस ओर रोमिल ने भी अपने ठोस क़दम उसी ओर आगेकूच कर चुकी थी। वो भी मेरिट में आते स्कॉलरशिप के बलबूते पर।
आखरी सेमिस्टर बाकी था। मंज़िल पर पहुँचने के लिए कुछ हफ्ते ही शेष थे। इस दौरान शादी की जल्दबाज़ी करना लक्ष्य से मुँह मोड़ने के समान होता।
रोमिल के पापा को चुप्पी साधे हुए देख किर्तना के पेरेंट्स भी कुछ नहीं कह पाते।
"किर्तना की शादी के बाद सोचते हैं। लेकिन, फिलहाल कोई इस बारे में कुछ भी नहीं बोलेगा।"
रोमिल के पापा प्रजवल राठी ने अपने बहनोई और दीदी से कहा। रोमिल की मम्मी प्राजक्ता को भी अपने पति का यूँ करियर ओरिएंटल होने जचा नहीं। पर फिलहाल शादी का माहौल खराब करना भी ठीक न था। ऐसा सोच वो भी चुप रही।
किर्तना की हल्दी, संगीत और शादी के जलसे में काफी धूम मची रही।श्यामल ने भी जमकर डान्स किया। और लड़की वालों की रस्मों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।सुरजीत और किर्तना भी श्यामल और रोमिल के लिए संजीदगी से सोचते हुए हेल्प भी कर रहे थे।
विदाई समारोह भी निकट आने लगा। किर्तना को उदास होते देख सुरजीत ने कनखियों से उसे देखते हुए मसखरेपन में एक सुझाव दिया -
"पापा जी, मम्मी जी को कहिए कि, बेटी विदा होकर ससुराल नहीं जा रही। बेटा विदा होकर अपने ससुराल विच रहने आ रहा है।"
किर्तना के मम्मी पापा दोनों भौचक्के से रह गए। और फिर तो ठहाकों की बौछार गिरने लगी।किर्तना भी रोना भूल चुकी थी।रोमिल के पास जाकर किर्तना ने धीमे से कुछ कहा और रोमिल की रोटी सूरत खिलखिलाने लगी।रोमिल और किर्तना को हँसता देख दोनों के पेरेंट्स बेफिक्र से हो गए।हफ्तेभर बाद पगफेरे के लिए आई हुई किर्तना कि किलकारियाँ सुन प्रजवल राठी ने श्यामल के पेरेंट्स से मीटिंग तय की।
लड़की वाले होते हुए भी रोमिल की पढ़ाई और नौकरी के बारे में सारे शक और गुमाँ क्लियर करके शादी एक साल बाद करने का तय किया गया। तब तक दोनों सिर्फ फोन पर बात कर सकेंगे। करियर पर फोकस करके अपनी अपनी लाइफ में सेटल होकर दिखायेंगे। अपने पेरेंट्स की उम्मीदों पर खरा उतरेंगे।
प्रजवल राठी की बातें सुनकर श्यामल के पेरेंट्स ने भी हामी भर दी। और श्यामल का खुली आँखों से देखा हुआ ख़्वाब पूरा होने को था।रोमिल और श्यामल ने अपने अपने फील्ड में नाम कमाया। मेरिट में अव्वल आकर रोमिल को फॉरेन कंपनी में जॉब ऑफर हुई।
औरउधर श्यामल भी फेब्रिक कलर्स इंडस्ट्री में एज़ ए डिरेक्टर अपॉइंट हुआ।तय किये वक्त में दोनों ने अपने अपने मुकाम हाँसिल करके दिखाए।
किर्तना और सुरजीत की हेल्प से रोमिल और श्यामल ने भी पेरेंट्स के वचनानुसार डिस्टन्स मेंटेन किया था।बस,कभीकभार किर्तना और सुरजीत की मिलीभगत से दोनों विडीयो कॉलिंग कर पाते थे।किर्तना के एक्सपीरियंस ने रोमिल का काम आसान कर दिया। दूसरी ओर, सुरजीत ने भी श्यामल की मैरिड लाइफ से जुड़ी बातों में हेल्प कर दी।
रोमिल और श्यामल अपनी पहली शादी में भी अजनबीयत महसूस करने से बच गए। सारी रस्मों से पहले से ही वाकिफ़ हो वैसा ही उनका व्यवहार रहा।और, आख़िरकार, रोमिल की झील सी नीली आँखों में डूबे रहने का जीवनभर का मौक़ा श्यामल को मिल ही गया।लोकड़ाऊन में भी उनकी रेलगाड़ी स्मूदली चलती रही। बिना रोकटोक के। सुष का कहना था कि, जहाँ प्यार हो, राहें आसान होंगी ही।

