ठूँठ
ठूँठ
आजकल समाज का मौसम बड़ा गर्म है, आबो-हवा की भी तबियत बड़ी नासाज़ चल रही है क्यूंकि वो भी बड़े ही उलझन में थे कि न जाने कब उन्हें किसी पंथ या संप्रदाय में बाँटकर अलग कर दिया जाए! ऐसे ही किसी निग्रही परिस्थिति से निस्पृहीत होकर एक चौराहे पर ठूँठ खड़ा हुआ था! चौराहा था एक ग्रामीण परिवेश का (गाँव का नाम नहीं बताऊंगा वरना उसका भी पंथ सुनिश्चित कर दिया जाएगा!) और चौराहे पर ठूँठ की उपस्थिति ग्रामीण परिवेश में प्रचलित तथाकथित भूत-प्रेतों को उस ठूँठ से जोड़ दिया गया था! इसी प्रचलित भय-कथाओं के कारण किसी भी व्यक्ति की हिम्मत नहीं हुई उस ठूँठ को चौराहे से हटाने की! कुछ ग्रामीणों का कहना था कि वहां उस पेड़ पर रात को उन्होनें नर-मुंड लटकते देखे हैं और कुछ का कहना था कि वहां उन्होनें चुड़ैलों को किसी धुन (किन्हीं का कहना ये भी था कि नृत्य किसी चलचित्र के एक सुप्रसिद्ध आईटम-नंबर पर किया गया था, हाँ भाई चुड़ैलें भी अब मोर्डनाइज़ हो गयीं हैं !
ख़ैर विषयांतर नहीं होता हूँ!) पर नृत्य करते देखा था !
तो कुल मिलाकर बात ये थी कि इस अकारण भय की वजह से उस पेड़ की स्थिति वहीँ की वहीँ रही! तो इसी गाँव में दो सियासतदां रहते थे एक जो एक तरफ के थे और दुसरे दूसरी तरफ के थे और दोनों अलग-अलग पंथों का पालन किया करते थे !
गाँववालों को अमन पसंद था इसलिए इन दोनों में कोई प्रधान की कुर्सी पर बैठ नहीं पा रहा था! इसी बात का दोनों को गुरेज़ था कि चाहकर भी वो कुर्सी दोनों के हाथ से कोसों दूर थी! दोनों को उस ईमानदार प्रधान का पद पे रहना बिल्कुल नहीं सुहा रहा था! एक बार चुनावों से चाँद महीने पहले दोनों ने मिलने की ज़ेहमत उठाई और बा"भाईसाहब! उस प्रधान का पद पे रहना हमारे लिए खतरे से खाली नहीं है और अगर वो रहा तो हमारी सियासी ज़मीन हमारे हाथ से निकल जायेगी और हम कहीं के नहीं रह जाएंगे!""हाँ भाई जान! बात तो आपकी बिल्कुल दुरुस्त है, उसका रहना मतलब हम लोगों की सियासत का दफ़्न हो जाना !"
"मेरे पास एक तरीक़ा है, सुनिए....."रात बीत गयी और अगली सुबह गाँव उठा तो पता चला कि एक पंथ विशेष के इबादतग़ाह के बाहर ऐसे पशु का शव डाला गया जो उनके लिए हेय था और दुसरे की पूजागृह के बाहर ऐसे पशु के शरीर की हिस्से डाले गए जो उनके लिए पूज्य था ! एक खबर फैली पूरे गाँव में चाँद मिनटों में की दोनों पुनीत जगहों पे ये माँस के लोथड़े विपक्षी पक्ष ने फेंके हैं! इसी बात का फायदा दोनों नेताओं ने उठाया और दोनों पक्षों को विधिवत रूप से भड़का दिया गया और दोनों पक्ष जब पूरे भड़क गए तो उस पेड़ के निकट जाकर वो इकट्ठे हो गए! जब प्रधान को इस बात का पता चला तो वो भागकर चौराहे पे पहुँचे और दोनों ही पक्ष को समझाने की ज़ेहमत करने लगे !
इतने में कहीं से एक पत्थर लहराया और भीड़ पिल पड़ी और जमकर खूँरेंज़ी हुई!लाल लहू इंसान का बहकर उस इंसान तक पहुँचा मगर समझ नहीं आ रहा था कि वो किसका था क्यूंकि कई अंजानी लाशों में एक जाना पहचाना चेहरा उन प्रधान का भी था !
चंद महीने बाद प्रधान के चुनाव पुलिस की निगरानी में हुए और प्रधान एक नेता बना और उप-प्रधान दूसरा इस समझौते के साथ कि आधी अवधि बीतने के बाद उप-प्रधान प्रधान बनेगा और प्रधान बनेगा ! इस समझते के अगले ही दिन उस ठूँठ पर नवपल्लवों का प्रफुल्लन हुआ! शायद ये पेड़ नहीं था शायद सियासत थी जैसे ही लहू का आस्वादन इस ठूँठ ने किया वैसे ही इसमें नवजीवन का प्रसार हुआ ! अभी तो इसमें चंद पत्ते आये हैं अभी ये हरे-भरे होने का इंतज़ार कर रहा है और शायद गाँव वाले सही ही थे कि चौराहे के ठूँठ पर भूत रहते हैं जो जिस्म और रूह खोर होते हैं!तचीत ऐसी रही:
"भाईसाहब ! उस प्रधान का पद पे रहना हमारे लिए खतरे से खाली नहीं है और अगर वो रहा तो हमारी सियासी ज़मीन हमारे हाथ से निकल जायेगी और हम कहीं के नहीं रह जाएंगे!" "हाँ भाई जान! बात तो आपकी बिल्कुल दुरुस्त है, उसका रहना मतलब हम लोगों की सियासत का दफ़्न हो जाना !" "मेरे पास एक तरीक़ा है, सुनिए....."रात बीत गयी और अगली सुबह गाँव उठा तो पता चला कि एक पंथ विशेष के इबादतग़ाह के बाहर ऐसे पशु का शव डाला गया जो उनके लिए हेय था।
और दुसरे की पूजागृह के बाहर ऐसे पशु के शरीर की हिस्से डाले गए जो उनके लिए पूज्य था ! एक खबर फैली पूरे गाँव में चाँद मिनटों में की दोनों पुनीत जगहों पे ये माँस के लोथड़े विपक्षी पक्ष ने फेंके हैं ! इसी बात का फायदा दोनों नेताओं ने उठाया और दोनों पक्षों को विधिवत रूप से भड़का दिया गया और दोनों पक्ष जब पूरे भड़क गए तो उस पेड़ के निकट जाकर वो इकट्ठे हो गए! जब प्रधान को इस बात का पता चला तो वो भागकर चौराहे पे पहुँचे और दोनों ही पक्ष को समझाने की ज़ेहमत करने लगे !
इतने में कहीं से एक पत्थर लहराया और भीड़ पिल पड़ी और जमकर खूँरेंज़ी हुई!लाल लहू इंसान का बहकर उस इंसान तक पहुँचा मगर समझ नहीं आ रहा था कि वो किसका था क्यूंकि कई अंजानी लाशों में एक जाना पहचाना चेहरा उन प्रधान का भी था! चंद महीने बाद प्रधान के चुनाव पुलिस की निगरानी में हुए और प्रधान एक नेता बना और उप-प्रधान दूसरा इस समझौते के साथ कि आधी अवधि बीतने के बाद उप-प्रधान प्रधान बनेगा और प्रधान बनेगा! इस समझते के अगले ही दिन उस ठूँठ पर नवपल्लवों का प्रफुल्लन हुआ! शायद ये पेड़ नहीं था शायद सियासत थी जैसे ही लहू का आस्वादन इस ठूँठ ने किया वैसे ही इसमें नवजीवन का प्रसार हुआ ! अभी तो इसमें चंद पत्ते आये हैं अभी ये हरे-भरे होने का इंतज़ार कर रहा है और शायद गाँव वाले सही ही थे कि चौराहे के ठूँठ पर भूत रहते हैं जो जिस्म और रूह खोर होते हैं !