Ranjeet Jha

Abstract

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Ranjeet Jha

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ठहरो जरा सोचो

ठहरो जरा सोचो

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पिछले कई दिनों से मृदुल एम.आई. बैंड के लिए जिद कर रहा थाI मुझे मेरा बचपन याद आ गयाI उस समय हमारे गाँव में टी.वी. नया-नया आया थाI बात 89 की हैI मेरे पड़ोस में नया टी.वी. आया थाI हमलोग उनके यहाँ रामायण-महाभारत देखने जाते थेI लोगों के पास पैसे कम थे गाँव में कम लोगो के पास टी.वी. होता थाI मैंने भी दादी से कहा -"दादी अपने घर में भी टी.वी. खरीद लोI"

पापा की सैलरी कम थी और हमलोग टी.वी. खरीदने के लिए सपने में भी नहीं सोच सकते थेI खाना-पीना कॉपी किताब का खर्च पूरा करना मुश्किल थाI लगभग 11-12 साल बाद जब मैं काम करने लगा तब मैं अपने इस शौक को पूरा कर पाया वो भी 200 रुपये प्रति महिना जमा करके लगभग दो सालो मेंI

आजकल हम अपने बच्चों के उचित-अनुचित मांगो को पूरा करने में इस कदर लग जाते हैंI चाहे पैसे हो या न हो चाहे इसके लिए गले के फंदे में क्रेडिट कार्ड का एक और गांठ भले लग जायेI


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