Sandeep Murarka

Classics Inspirational

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Sandeep Murarka

Classics Inspirational

टाना भगत

टाना भगत

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जन्म : सितम्बर 1888

जन्म स्थान: चिंगरी नवाटोली गांव, विशुनपुर, गुमला, झारखण्ड

निधन: 1915

मृत्यु स्थल : विशुनपुर, गुमला

पिता : कोदल उरांव

माता : लिबरी

जीवन परिचय - टाना भगत के नाम से लोकप्रिय जतरा भगत उर्फ जतरा उरांव का जन्म झारखंड के गुमला जिला के बिशनुपुर थाना के चिंगरी नवाटोली गांव में हुआ था। हेराग गाँव के तुरिया उराँव को गुरु बनाया और उनसे झाड़ फूँक की सच्चाई सीखी । अंधविश्वास में उलझे ट्राइबल्स को ओझा भूत भूतनी का भय दिखलाते थे । टाना भगत जानते थे कि यदि सीधे सीधे ट्राइबल समुदाय को अंग्रेजों का विरोध करने के लिए कहेंगे तो , य़ा तो ट्राइबल्स डरेंगे य़ा अंग्रेजों के कारिन्दे जमींदार इन्हें प्रताड़ित करेंगे । सो इन्होंने प्रचारित किया कि वे ईश्वरीय सत्ता धर्मेश से सीधे सम्पर्क में हैं और धर्मेश ने कहा है कि भूत भूतनी हमारे अंदर नहीं हैं बल्कि अंग्रेजों और जमींदारों के रूप में हमारी धरती पर आ बसे हैं । इन्हें टान कर यानी खींच कर बाहर करना है , इनका राज खत्म करना है ।

"टन-टन टाना, टाना बाबा टाना, भूत-भूतनी के टाना

टाना बाबा टाना, कोना-कुची भूत-भूतनी के टाना

टाना बाबा टाना, लुकल-छिपल भूत-भूतनी के टाना"

अर्थात, ओ पिता ! ओ माता ! देश की जान लेने वाले, ट्राइबल्स को लूटने-मारने वाले सभी तरह के भूत-भूतनियों को खींच कर देश से बाहर करने में हमारी मदद करो ।

टाना जतरा भगत का विवाह भी हुआ था, उपलब्ध दस्तावेजो के अनुसार इनके एक पुत्र का नाम देशा था ।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान - टाना भगत ने 1912 में ब्रिटिश राज और जमींदारों के खिलाफ अहिंसक असहयोग का आंदोलन प्रारम्भ किया । जतरा टाना भगत के नेतृत्व में उराँव जनजाति के लोगों ने संकल्प लिया कि वो ज़मींदारों के खेतो में मज़दूरी नहीं करेंगे और अंग़्रेज़ी हुकूमत को लगान नहीं देंगे । इसके लिए उन्होने प्रचारित किया कि 'सारी जमीन ईश्वर की है, इसलिए उस पर लगान कैसा ?' टाना भगत ट्राइबल समुदाय में विद्रोह की आग भड़काने में कामयाब हुए, गांव गांव सभाएँ होने लगी , ट्राइबल महिलाएँ एवं पुरुष लगान के विरोध में उठ खड़े हुए, खेतो में जोताई बन्द होने लगी, इस विद्रोह की गूँज दूर तक गई । अंग्रेजो ने जाल बिछाकर 21 अप्रेल 1914 को टाना भगत को गिरफ्तार कर लिया, ब्रिटिश सरकार का विरोध करने का आरोप लगाकर उन्हें सजा सुना दी गई । टाना 2 जून 1915 को रिहा हुए । उन्होने अंग्रेजों के विरुद्ध जो विद्रोह का बिगुल फूंका उसे 'टाना आन्दोलन' के नाम से जाना जाता है । टाना आन्दोलन झारखण्ड के गुमला पलामू से होते हुए छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले तक फैल गया था । नतीजन अंग्रेजों ने टाना समुदाय की भूमि छीनकर नीलाम करना प्रारम्भ कर दिया ।

टाना आन्दोलन की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि देश आजाद होते ही 30 दिसम्बर 1947 को भारत के गवर्नर जनरल ने टाना भगतों की अंग्रेजों द्वारा 1913 से 1942 के बीच छीनी गई उनकी जमीन पर कब्जा बहाल करने हेतू एक्ट पर हस्ताक्षर किए जिसे 'राँची जिला ताना भगत रैयत कृषि भूमि पुनर्स्थापना अधिनियम, 1947' के नाम से जाना जाता है । यह एक्ट बिहार के असाधाराण गजट मे 23 जनवरी 1948 को प्रकाशित हुआ । अब टाना भगत समुदाय को यह उम्मीद जगी कि उन्हें उनकी क़ुर्बानी का फल ज़रूर मिलेगा और उनकी ज़मीनें वापस हो जाएंगी ,

मगर सूत्र बताते हैं कि विभिन्न जिलॉ मे टाना भगतों की लगभग 2486 एकड़ ज़मीन आज भी उन्हें वापस नहीं मिल पाई हैं और इस संबंध में 703 मामले झारखंड की विभिन्न अदालतों में चल रहे हैं ।

टाना भगत शराब बन्दी और शाकाहार के पक्षधर थे ।

'टाना आन्दोलन' ने आगे चलकर पंथ का रूप ले लिया , रीति-रिवाजों में भिन्नता के कारण टाना भगतों की कई शाखाएं पनप गयीं। उनकी प्रमुख शाखा को सादा भगत कहा जाता है। इसके अलावे बाछीदान भगत, करमा भगत, लोदरी भगत, नवा भगत, नारायण भगत, गौरक्षणी भगत आदि कई शाखाएं हैं। 

जेल से रिहा होने के बाद टाना भगत की मुलाकात

महात्मा गांधी से हुई, टाना गांधीजी से इतने प्रभावित हुए कि सादी ज़िंदगी जीने का संकल्प लिया , जिस पर आज भी क़ायम हैं । गांधीजी से मिलने के बाद टाना भगत खादी का ही कपड़ा पहनना, स्वयं चरखा चला कर सूत काटने, सर पर गाँधी टोपी लगाने , कंधे पर छोटे डंडे में तिरंगा झंडा रखना शुरू कर दिये। टाना आन्दोलन पूर्णत: गांधीमय हो गया। आज भी टाना समुदाय के हर घर मे तुलसी का चौरा और लहराता हुआ तिरंगा झण्डा अवश्य मिलेगा । टाना समुदाय तिरंगे को ही देवता मानते हैं और प्रतिदिन इसकी पूजा करते हैँ ।

टाना जतरा भगत के निधन के बाद भी टाना आन्दोलन समाप्त नहीं हुआ बल्कि आगे बढ़ा और इसे आगे बढ़ाया उनके अनुयायियों ने , ट्राइबल महिला लिथो उराँव , माया उराँव, शिबू उराँव व टाना भगतों ने । बेड़ो प्रखण्ड में उनके मूर्ति स्थल पर हरिवंश टाना भगत समेत 74 स्वतंत्रता सेनानी टाना भगतों के नाम के पत्थर पर अंकित हैँ । कांग्रेस के इतिहास में भी दर्ज है कि 1922 में कांग्रेस के गया सम्मेलन और 1923 के नागपुर सत्याग्रह में बड़ी संख्या में टाना भगत शामिल हुए थे। 1940 में रामगढ़ कांग्रेस में टाना भगतों ने महात्मा गांधी को 400 रुपए की रकम भेट की थी।

टाना आन्दोलन का मूल मंत्र -

धरती हमारी। ये जंगल-पहाड़ हमारे। अपना होगा राज। किसी का हुकुम नहीं। और ना ही कोई टैक्स-लगान या मालिकान। 

सम्मान - टाना जतरा भगत के पैतृक गाँव विशुनपुर गुमला मे उनका स्मारक बना हुआ हैं और एक विशाल प्रतिमा स्थापित हैं । बेड़ो प्रखण्ड के खकसी टोली गांव में भी टाना जतरा की मूर्ति स्थापित हैं । वर्ष 1966 में बिहार में टाना भगत वेलफ़ेयर बोर्ड की स्थापना हुई थी, हालाँकि उसका पुर्नगठन नहीं हो पाया । गुमला के पुग्गु में जतरा टाना भगत हाई स्कूल संचालित हो रही हैं । राँची के चान्हो प्रखण्ड में सोनचीपी में संचालित आवासीय विधालय का नामकरण टाना भगत के नाम पर हैं । टाना भगतों का संगठन 'अखिल भारतीय टाना भगत विकास परिषद' काफी सक्रिय हैं ।


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