Sandeep Murarka

Drama Inspirational Others

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Sandeep Murarka

Drama Inspirational Others

पद्मश्री गुलाबो सपेरा, कला

पद्मश्री गुलाबो सपेरा, कला

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जीवन परिचय - राजस्थान की एक घुमक्कड़ जाति है कालबेलिया, जो शहर या गांव के बाहर तंबू लगाकर रहती है। एक स्थान पर ये लोग ज्यादा नहीँ टिकते थे। राजस्थान की इसी ट्राइबल जाति में पैदा हुई थी गुलाबो सपेरा।

गुलाबो के जन्म की कहानी भी बड़ी विचित्र है। गुलाबो के पिता साँपो का खेल दिखाने शहर की ओर गए हुए थे। गुलाबो की माँ को प्रसव पीड़ा हुई। कालबेलिया औरतों ने प्रसव करवाया, शाम को 5 बजे के आसपास लड़की पैदा हुई। पहले ही तीन भाई तीन बहन मौजूद थे, अब एक और लड़की। उस जमाने में लड़की पैदा करना भी गुनाह था। गुलाबो की माँ बेसुध थी। उनकी नवजात लड़की छीन ली गई और रेत में दफना दी गई। गुलाबो की मौसी अंधेरा होने का इंतजार करने लगी और रात 11 बजे जाकर नवजात शिशु को निकाल लाई। ताकि गुलाबो की माँ एक बार अपनी बच्ची को गले लगाकर रो सके। पाँच घंटे रेत में दबा नवजात बच्चा भी कहीं जीवित रह सकता है भला। मौसी ने शिशु को लाकर माँ की गोद में डाल दिया। माँ फफककर रो पड़ी और गोद में पड़ी बच्ची भी। दैवीय कृपा से बच्ची जीवित थी। दूसरे दिन पिता वापस लौट आए। चूँकि बच्ची धनतेरस के दिन पैदा हुई थी सो उसका नाम रखा गया 'धनवंती'।

पिता अपनी बेटी से बहुत प्यार करते और डरते कि कबीले की औरतें इसे पुनः मारने का प्रयास ना करें। वे साँपो का खेल दिखाने जहाँ भी जाया करते , धनवंतरी को साथ ले जाया करते। साँपो का खेल देखने के बाद श्रध्दालु उन्हें दूध पिलाया करते। जो दूध बच जाता, उसे धनवंती को पिला दिया जाता। इसप्रकार साँपो का बचा हुआ दूध बड़ी होने लगी धनवंतरी।

सड़कों पर साँप का खेल चलता रहता वहीँ चादर पर शिशु धनवंती सोयी रहती, कभी कभार संपेरे पिता उसके ऊपर साँप डाल दिया करते। दर्शकों को बड़ा आनन्द आता। पैसे अच्छे मिलने लगे। साँपो के साथ खेलते खेलते बड़ी होने लगी धनवंती।

साल भर की हुई थी धनवंती कि उसकी तबीयत बहुत बिगड़ गई, इतनी कि वैद्य ने जवाब दे दिया। उस समय उनलोगों का तंबू जहाँ बना हुआ था, वहीँ समीप ही एक मजार थी। पिता धनवंती को बहुत प्यार करते थे, उसे गोद में लेकर दौड़े, मजार के समक्ष भूमि पर लिटा दिया और रोते रोते प्रार्थना करने लगे। थोड़ी ही देर में मजार पर चढ़ा हुआ एक गुलाब फूल बच्ची धनवंती के ऊपर गिरा और वह आँखे खोल अपने पिता को पुकारने लगी। आश्चर्यचकित पिता धनवंती व उस गुलाब फूल को लेकर अपने तंबू में लौट आए और अपनी बेटी को नया नाम दिया 'गुलाबो'।

गुलाबो पढ़ नहीँ पाई। 1986 में चौदह वर्ष की उम्र में ही इनका विवाह हो गया। इनकी पाँच संतान हैँ दो पुत्र दिनेश और भवानी एवं तीन पुत्रियाँ हैँ राखी, हेमा एवं रूपा।

योगदान - गुलाबो तीन वर्ष की उम्र से ही गले में साँप लपेटे सड़कों पर नाचने लगी थी। बीन, पूंगी और डफली की धुन पर उसका लचीला शरीर थिरकने लगता था। राजस्थान में प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के समय पुष्कर मेला का आयोजन होता है, जिसमें बड़ी संख्या में देशी विदेशी पर्यटक आते हैँ। मेले में गुलाबो के समुदाय के लोग भी इस आस से पहुंचते कि कुछ अतिरिक्त आमदनी हो जाएगी। गुलाबो 8 वर्ष की उम्र से पुष्कर मेला में जाने लगी और बीन की धुन पर अपनी नृत्य करती। सिक्कों के साथ साथ नोट भी उछलते।

वर्ष 1985 में पुष्कर मेले में घूमते हुए राजस्थान पर्यटन विभाग के अधिकारी हिम्मत सिंह एवं सांस्कृतिक कार्यकर्ता सह विख्यात लेखिका तृप्ति पाण्डे एक गोलाकार भीड़ के पास पहुंचे। झांककर देखा कि वहाँ कुछ संपेरे साँपो को नचा रहे थे, उन्ही साँपो के बीच नाच रही थी तेरह वर्षीय लड़की। दोनोँ की दृष्टि कालबेलिया नृत्य कर रही गुलाबो पर पड़ी और वे देखते ही रह गए। नृत्य समाप्त होने पर तृप्ति ने गुलाबो के पिता से कहा कि आपकी लड़की के शरीर में मानो हड्डी ही नहीँ है। इतना लचीलापन और इतनी शानदार प्रस्तुति। इस कलाकार का स्थान सड़कों पर नहीँ मंच पर है।

कुछ ही दिनोँ बाद दिल्ली में एक कार्यक्रम आयोजित था। राजस्थान पर्यटन विभाग की ओर से गुलाबो को दिल्ली लाया गया। जहाँ गुलाबो ने पहली बार मंच पर अपनी कला का प्रदर्शन किया। एक ऐसा प्रदर्शन जिसमें दर्शकों से उसे सिक्के नहीँ मिले, उसे मिली तालियों की गड़गड़ाहट।

उसी दर्शक दीर्घा में उपस्थित थे विख्यात क्यूरेटर पद्म भूषण राजीव सेठी , जो बड़े शांत भाव से उस ट्राइबल कलाकार की कला को देख रहे थे। उनके दिमाग में यूएसए में चल रहे फेस्टिवल ऑफ इण्डिया को और यादगार बनाने की योजना चल रही थी। जून 1985 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी भी उस आयोजन में शरीक होने वाले थे। राजीव सेठी कालबेलिया नृत्य से प्रभावित हुए ना रह सके और इसी के साथ तय हो गया गुलाबो की यूएसए यात्रा का कार्यक्रम। परन्तु सफलता इतनी आसानी से नहीँ आती, गुलाबो दिल्ली में ही थी, उसके घर से खबर आई कि उसके पिता का निधन हो गया है। गुलाबो जयपुर के लिए रवाना हुई। शाम को अपने घर पहुँची। अपने पिता के शव के अन्तिम दर्शन किए। दूसरे दिन पिता की अंत्येष्टि थी और दूसरे ही दिन गुलाबो की यूएसए फ्लाईट। निर्णय कठिन था। किन्तु आँखो में आँसू लिए पिता की यादों और उनके चरणों के स्पर्श को अपने हृदय में अंकित कर गुलाबो रात दो बजे जयपुर से दिल्ली की ओर निकल पड़ी। इधर जयपुर में पिता के शव की आग ठण्डी नहीँ हुई थी, उधर वाशिंगटन में घूँघट से अपने आंसुओ को छिपाए गुलाबो थिरक रही थी। ऐसे शुरू हुआ मेलों में नाचने वाली गुलाबो का अंतरराष्ट्रीय स्तर की नृत्यांगना बनने का सफर।

अपने ही लिखे गानों को खुद ही गाने वाली और अपने ही गीतों पर नृत्य करने वाली गुलाबो ने ऐसी ख्याति पाई कि आज तक डेनमार्क ,ब्राजील, यू एस ए, जापान इत्यादि 165 देशों में उनके कार्यक्रम आयोजित हो चुके हैँ।

नृत्य संगीत में वैश्विक पहचान बनाने वाली गुलाबो ने प्रसिद्ध फ्रांसीसी संगीतकार थियरी ’टिटी’ रॉबिन के साथ एसोसिएट होकर कई कार्यक्रम किए। वर्ष 2002 उनदोनों का एक सयुंक्त 14-ट्रैक एल्बम 'राखी' काफी लोकप्रिय हुआ। थियरी रॉबिन और वेरोनिक गुइलियन द्वारा फ्रेंच में गुलाबो पर एक पुस्तक 'डांसेस गिताने डू राजस्थान' भी लिखी गई है।

विख्यात तो गुलाबो 1985 में हुई, जब पहली बार उनका कार्यक्रम दिल्ली एवं यूएसए में हुआ। उसके पूर्व 1983 में एक हॉलीवुड मूवी की शूटिंग राजस्थान में हो रही थी, उसमें इनका नृत्य शामिल हुआ। उसके बाद कई हिन्दी फिल्मों में इन्होंने नृत्य किए। गुलामी, बंटवारा, क्षत्रिय इत्यादि, विशेषकर निर्देशक जे। पी। दत्ता की फिल्मों में गुलाबो अवश्य दिखा करती थी। वर्ष 2013 में राजस्थान की फिल्म भंवरी का जाल एवं 2014 में राजु राठौड़ की सफलता में भी गुलाबो का योगदान है।

संजय दत्त और सलमान खान की मेजबानी में कलर्स टीवी के रियलिटी शो बिग बॉस सीजन 5 में शक्ति कपूर, जूही परमार, महक चहल जैसे फिल्म कलाकारों के साथ गुलाबो सपेरा ने भाग लिया। वर्ष 2011 में आयोजित इस लोकप्रिय टीवी शो में वे 14 दिनोँ तक रहीं।

गुलाबो का मानना है कि स्टेज ही उसके लिए मन्दिर है और दर्शक ही भगवान। वह कहतीं हैँ कि पूरे समर्पित भाव से नृत्य करें, इतनी तन्मयता से नृत्य करें कि यदि नृत्य के बीच में चाहे साउंड सिस्टम बन्द हो जाए या गीत की आवाज आनी बन्द हो जाए, पूरा होने तक नृत्य नहीँ रुकना चाहिए। उनकी इन्हीं विशेषताओं के कारण जयपुर की महारानी गायत्री देवी उन्हें पुत्री तुल्य स्नेह दिया करती। एक बार जैसलमेर में महारानी गायत्री देवी द्वारा आयोजित एक समारोह में गुलाबो बतौर अतिथि आमंत्रित थी। लोगों ने उन्हें नृत्य के लिए आग्रह किया। रात 10 बजे जो नृत्य प्रारम्भ हुआ वो सुबह 5 बजे तक चला। दर्शक डिनर करना भूल गए, ऐसी अदाकारा है गुलाबो सपेरा।

विश्व फलक पर कालबेलिया नृत्य की पहचान स्थापित करने वाली गुलाबो सपेरा नई पीढ़ी की छात्राओं को प्रशिक्षण दे रहीं हैँ। देश विदेश में विशेष कर जयपुर और डेनमार्क में इनके द्वारा प्रशिक्षण शिविर आयोजित किए जाते हैँ। आजकल गुलाबो पुष्कर में डांस एकेडमी की स्थापना में भी सक्रिय हैँ। गुलाबो सपेरा ने जयपुर में एक एनजीओ ' गुलाबो सपेरा नृत्य एवं संगीत संस्थान ' की भी स्थापना की है, जो राजस्थान सोसायटी एक्ट में पंजीकृत है, पंजीकरण संख्या 28/जयपुर/2006-07 दिनांक 13।04।2006 है।

गुलाबी शहर जयपुर में रहने वाली गुलाबो नृत्य करते समय 16 किलो राजस्थान के पारम्परिक चाँदी के जेवर और काले कपड़े पहनती है। इस ड्रेस की भी अपनी एक कहानी है। गुलाबो ने अपने जीवन में पहली फिल्म सात वर्ष की आयु में देखी 'आशा'। फिल्म देखकर लौटने के बाद गुलाबो के मन मस्तिष्क में रीना रॉय का लोकप्रिय गीत 'शीशा हो ये दिल हो' और उनकी काली ड्रेस छा गई। जो आगे चलकर उनका पसंदीदा लिबास बन गया।


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