Sandeep Murarka

Inspirational

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Sandeep Murarka

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हूल नायिका फूलो झानो, झारखंड

हूल नायिका फूलो झानो, झारखंड

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हूल नायिका फूलो- झानो 

जन्म : वर्ष 1832 के आस पास

जन्म स्थान: गाँव भोगनाडीह, प्रखंड बरहेट, जिला साहेबगंज, झारखंड 

निधन : वर्ष 1855

मृत्यु स्थल : गाँव संग्रामपुर, जिला पाकुड़, झारखंड

पिता : चुन्नी मांझी 


जीवन परिचय - फूलो मुर्मू एवं झानो मुर्मू हूल क्रांति के प्रणेता शहीद सिदो कान्हू की बहने थीं. इनका जन्म साहेबगंज अनुमंडल के भोगनाडीह गाँव के आदिवासी संताल परिवार में हुआ था. झारखंड के आदिवासियों ने अंग्रेजों के खिलाफ जिस दिन विद्रोह किया था, उस दिन को 'हूल क्रांति दिवस' के रूप में मनाया जाता है. इस युद्ध में करीब 20 हजार आदिवासियों ने अपनी जान दे दी थी. इस

संताल विद्रोह के मुख्य सूत्रधार थे 6 भाई बहन - सिदो मुर्मू, कान्हू मुर्मू ,चाँद मुर्मू ,भैरव मुर्मू , फुलो मुर्मू एवं झानो मुर्मू . 


स्वतंत्रता संग्राम में योगदान - हालांकि आजादी की पहली लड़ाई का लिपिबद्ध इतिहास वर्ष 1857 से शुरु होता है़, लेकिन उसके पहले झारखंड के आदिवासी वीरों ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ कई बार विद्रोह का झंडा बुलंद किया था. 30 जून, 1855 को सिदो और कान्हू के नेतृत्व में साहेबगंज जिले के भगनाडीह गांव से जो विद्रोह शुरू हुआ था, उसमें सिदो ने नारा दिया था - 'करो या मरो, अंग्रेजों हमारी माटी छोड़ो'. 


सिदो-कान्हू ने 1855 मे ब्रिटिश सत्ता, साहुकारों व जमींदारो के खिलाफ जिस विद्रोह की शुरूआत की थी, उसे 'संताल विद्रोह या हूल आंदोलन' के नाम से जाना जाता है. उस लड़ाई में आदिवासी महिलाओं की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता. बच्चों को स्कूलों में पढ़ाया जाने वाला स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास तब तक अधूरा है़, जब तक उसमें आदिवासी शहीद महिलाओं की क्रांतिकारी भूमिका के अध्याय को ना जोड़ा जाए. 


झारखंड के छोटानागपुर की शोधकर्ता वासवी कीरो ने अपनी बुकलेट उलगुलान की ओरथेन (क्रांति की महिला) में उन नायिकाओं का नाम दर्ज किया है, जो स्वतंत्रता आंदोलन में शहीद हो गई थीं. वर्ष 1855-56 के संताल विद्रोह में फूलो और झानो मुर्मू, बिरसा मुंडा उलगुलान 1890-1900 में बंकी मुंडा, मंझिया मुंडा और दुन्दंगा मुंडा की पत्नियां माकी, थीगी, नेगी, लिंबू, साली और चंपी और पत्नियां, टाना भगत आंदोलन 1914 में देवमणि उर्फ बंदानी और तेरहवीं चौदहवीं सदी के रोहतासगढ़ प्रतिरोध में उरांव आदिवासी वीरांगना सिनगी दई व कैली दई के नाम चर्चित हैं. 


हूल आंदोलन को सफल बनाने के लिए सिदो कान्हू ने आस पास के हरेक गाँव के आदिवासियों का आहवान किया था. वे पैगाम के तौर पर पारंपरिक 'सखुआ डाली' (साल पत्तों की टहनी) भेजा करते थे. गाँव गाँव में घूमकर 

उनकी वीर बहनें फूलो- झानो यह निमंत्रण पहुंचाया करती थीं. वे घोड़ों पर बैठकर जाया करती थीं, इसी दरम्यान यदि कोई अंग्रेज सैनिक या उनका कारिंदा रास्ते में मिल गया, तो वीरांगना फूलो झानो उसको पकड़ लेती और घोड़े से बाँध कर गाँव ले आती. उनके इस जज्बे को देख कर अन्य आदिवासी युवतियों को भी विद्रोह की प्रेरणा मिली और वे हूल आंदोलन से जुड़ती चली गईं. 


वर्ष 1855 में पाकुड़ जिले के संग्रामपुर नामक स्थान पर सिदो कान्हू की आदिवासी सेना के साथ अंग्रेजों का भीषण युद्ध हुआ. वीर आदिवासियों के पास जोश और उत्साह भरपूर था, परंतु उनके पास केवल पारंपरिक हथियार थे. जबकि अंग्रेजों की सेना के पास उस जमाने की नवीनतम तकनीक के हथियार थे. उन बंदूक और तोप के गोलों के समक्ष तीर धनुष, हँसुआ, भाला, कुल्हाड़ी लिए आदिवासी सेना कितने दिन टिक पाती, अंततः भारी संख्या में आदिवासी लड़ाके मारे गए. दिनांक 9 जुलाई 1855 को सिदो कान्हू के छोटे भाई चाँद और भैरव भी मारे गए. 


यह लड़ाई पहाड़ी क्षेत्र में चल रही थी. आदिवासी लड़ाके एक ओर पहाड़ों और जंगलों से परिचित थे, दूसरी ओर गुरिल्ला युध्द में निपुण. अतएव अंग्रेजों ने रणनीति के तहत आदिवासी सेना को नीचे मैदानी इलाके में उतरने पर मजबूर कर दिया. आदिवासी उनकी रणनीति को समझ नहीं पाए और जैसे ही वे लोग नीचे उतरे, अंग्रेजों ने घेराबंदी बनाकर गोलाबारी शुरु कर दी. चारों ओर आदिवासी लड़ाकों की लाशें पड़ी थी, आसमान में चील कौवों का जमघट लगा था. बचे खुचे आदिवासी भी ड़र कर भाग खड़े हुए. परंतु चार आँखे सूरज ढलने का इंतजार करने लगीं. वे रोना तो चाहती थी अपने भाइयों की मौत पर, अपनी सेना की हार पर, संताल विद्रोह की समाप्ति पर. किंतु ना तो वे रोई, ना उनके आंसू टपके, बल्कि उनके हाथ कुल्हाड़ी पर कस गए, उसके बाद उन्होंने जो किया उसे लिखे बिना आजादी के इतिहास को पूर्ण नहीं किया जा सकता. 


नीचे मैदानी क्षेत्र में युध्द स्थल के पीछे अंग्रेजों के शिविर बने हुए थे. वीर फूलो झानो गोलीबारी की परवाह ना कर हाथों में कुल्हाड़ी लिए दौड़ते हुए अंग्रेजों के शिविर में प्रवेश कर गई और अंधेरा होने का इंतजार करने लगी. सूरज ढलने के बाद अंधेरे की आड़ में फूलो- झानो ने कुल्हाड़ी से ब्रिटिश सेना के 21 जवानों को मौत के घाट उतार दिया. हूल नायिका फूलो और झानो की वीरता की गाथा आज भी झारखंड के जंगलों व गाँवो में गाई जाती है. 


संताली भाषा में हूल गीत की कुछ पंक्तियाँ - 


"फूलो झानो आम दो तीर रे तलरार रेम साअकिदा

आम दो लट्टु बोध्या खोअलहारे बहादुरी उदुकेदा

भोगनाडीह रे आबेन बना होड़ किरियाबेन

आम दो महाजन अत्याचार बाम सहा दाड़ी दा

आम दो बनासी ते तलवार रेम साउकेदा

अंगरेज आर दारोगा परति रे अड़ी अयम्मा रोड़केदा

केनाराम बेचाराम आबेन बड़ा होड़ ते बेन सिखोव केअकोवा

आम दो श अंगरेज सिपाही गोअ केअकोवा

आबेन बना होड़ाअ जुतुम अमर हुई ना ." 


इन पंक्तियों का हिंदी अनुवाद- 


फूलो झानो तुमने हाथों में तलवार पकड़ी,

तुमने भाईयों से बढ़कर वीरता दिखलाई,

भोगनाडीह में तुम दोनों ने शपथ ली,

कि महाजनों सूदखोरों का अत्याचार नहीं सहेंगे ,

तुमने दोनों हाथों से तलवारें उठाई,

अंग्रेजों और दरोगा के जुल्म के खिलाफ आवाज उठाई,

तुम दोनों ने केनाराम बेचाराम को सबक सिखाया,

इक्कीस अंग्रेज सिपाहियों को मार गिराया,

तुम दोनों का नाम सदैव अमर रहेगा . 


अंग्रेजों ने या इतिहासकारों ने स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास लिखते समय ना तो झारखंड के योगदान को विशेष स्थान दिया और ना ही आदिवासियों की शौर्य गाथाओं को लिखा. ना ही फूलो झानो जैसी वीर आदिवासी महिलाओं पर शोध हुए. 


सम्मान - मात्र 23 वर्ष की आयु में अपने प्राण उत्सर्ग करने वाली स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना फूलो- झानो के सम्मान में वर्ष 2019 में झारखंड सरकार द्वारा दुमका जिले के दीघी गाँव में फूलो-झानो मेडिकल कॉलेज अस्पताल की स्थापना की गई. वहीं दिनांक 19 अगस्त 2019 को बिरसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के तहत दुमका के हंसडीहा में फूलो झानो मुर्मू कॉलेज ऑफ डेयरी टेक्नोलाॅजी काॅलेज का उदघाटन हुआ, जो राज्य का पहला दुग्ध प्रोद्योगिकी महाविद्यालय है. दुमका के मुफस्सिल थाना क्षेत्र के अंतर्गत

श्रीअमड़ा गाँव में फूलो - झानो की विशाल प्रतिमा स्थापित की गई है. वहीं गोड्डा जिले के पोड़ैयाहाट प्रखंड अंतर्गत तरखुट्टा पंचायत के गोहरा ताला टोला में, गुमला जिले के विशुनपुर प्रखंड के ज्ञान निकेतन परिसर इत्यादि विभिन्न स्थानों पर वीरांगना फूलो झानो की प्रतिमाएं स्थापित हैं. 


फूलो झानो पुस्तकालय - जिला पूर्वी सिंहभूम के मुसाबनी प्रखंड स्थित जिला परिषद डाक बंगला में 

प्रोजेक्ट एकलव्य प्रतियोगिता परीक्षा आयोजक समिति की ओर से फूलो झानो निःशुल्क पुस्तकालय सह अध्ययन केंद्र का संचालन किया जा रहा है़. 


फूलो झानो उद्यान - दिनांक 9 अगस्त 2021 को विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर झारखंड के राज्यपाल द्वारा राजभवन में स्थित एक उद्यान को संथाल हूल की अमर नायिका फूलो-झानो के नाम पर समर्पित किया गया है.


फूलो झानो आशीर्वाद योजना - 


झारखंड सरकार द्वारा 29 सितंबर, 2020 को फूलो झानो आशीर्वाद योजना का शुभारंभ किया गया है़. इस योजना का संचालन झारखंड ग्रामीण विकास विभाग के द्वारा किया जाता है. ग्रामीण क्षेत्रों में मादक पदार्थों के दुष्प्रभाव को कम करने के उद्देश्य से झारखंड सरकार ने इस योजना को शुरू किया है. योजना का लाभ लेने के लिए महिला को किसी भी प्रकार के आवेदन की आवश्यकता नहीं पड़ती. नव जीवन मिशन के तहत सखी मंडल सर्वे कर ग्रामीण क्षेत्र में मादक पदार्थों का व्यापार करने वाली महिलाओं का चुनाव कर लाभार्थी लिस्ट तैयार करती हैं. साथ ही चयनित महिलाओं को झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी (जेएसएलपीएस) के तहत चल रहे आजीविका संवर्धन के अलग-अलग कार्यक्रमों से भी जोड़ा जा रहा है़. 


फूलो झानो आशीर्वाद योजना का लाभ - 


• फूलो झानो आशीर्वाद योजना के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं को ब्याज मुक्त ऋण दिया जाता है. 


• महिलाओं को नया व्यापार शुरू करने के लिए दस हजार का ऋण दिया जाता है. 


• मादक पदार्थ हड़िया, दारु आदि बेचने वाली महिलाओं को ही योजना का लाभ दिया जा रहा है़. 


• योजना की मदद से ग्रामीण महिलाएं अपने व्यापार को बदल कर नए रोजगार की शुरुआत कर रही हैं. 


• नया व्यापार शुरुकर ग्रामीण महिलाएं सम्मानजनक आजीविका के साथ अपना जीवन यापन कर पाएंगी. 


• आजीविका मिशन के तहत चुनिंदा महिलाओं को सक्रिय कैडर के रूप में भी चुना जाएगा, वे अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत की तरह कार्य करेंगी.

फूलो-झानो सक्षम आजीविका मिशन - 

इस कार्यक्रम के तहत महिलाएं गोड्डा जिले के सरकारी स्कूलों की यूनीफॉर्म की सिलाई का काम कर रही हैं. ये महिलाएं हर महीने 10 से 15 हजार रुपये तक कमा रही हैं.

यह गोड्डा मॉडल वर्ष 2017 से जिला प्रशासन, जेएसएलपीएस, सर्व शिक्षा अभियान और अडानी फाउंडेशन के सीएसआर फंड के तहत चलाया जा रहा है. वर्तमान में इस योजना का लाभ लगभग 1500 महिलाओं को मिल रहा है. नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने झारखंड के मुख्य सचिव सुखदेव सिंह को पत्र लिख कर राज्य के गोड्डा जिले में चल रही फूलो-झानो सक्षम आजीविका मिशन (गोड्डा मॉडल) की तारीफ भी की थी. उन्होंने इस मॉडल को राज्य के दूसरे जिलों में लागू करने की बात कही. ताकि इससे जुड़कर अन्य जिलों की महिलाएं भी एक अच्छा जीवन व्यतीत कर सकें, आत्मनिर्भर बनें और उनकी अच्छी आमदनी हो सके.


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