Sandeep Murarka

Inspirational Others

3  

Sandeep Murarka

Inspirational Others

पद्मश्री मुकुंद नायक

पद्मश्री मुकुंद नायक

5 mins
13.6K



जन्म : 15 अक्टूबर '1949

जन्म स्थान : गांव बोक्बा, ब्लॉक कोलेबीरा, जिला सिमडेगा, झारखण्ड

वर्तमान निवास : चुटिया, राँची , झारखण्ड

पत्नी : द्रौपदी देवी


जीवन परिचय - झारखण्ड के सिमडेगा जिला के एक अतिपिछड़े गांव बोक्बा में घासी जाति में जन्में मुकुंद नायक अपनी जाति का परिचय भी अपनी विशिष्ट शैली में देते हैँ - 'जहाँ बसे तीन जाइत, वहाँ बाजा बजे दिन राइत, घासी- लोहरा औ' गोडाइत' हालाँकि घासी जाति झारखण्ड के जाति वर्गीकरण के दृष्टिकोण से अनुसूचीत जनजाति नहीँ है, किन्तु झारखण्ड छत्तीसगढ़ का पुरातन इतिहास घासी जाति के बिना पूर्ण नहीँ हो सकता।

गांव में कृषक अपने खेत खलिहानों से लौटकर अखरा में एकत्रित हुआ करते थे, जहाँ एक दूसरे के दुःख दर्द खुशियों की चर्चा किया करते, मुकुंद अपनी माँ के साथ अखरा जाया करते। दिन भर की थकान मिटाने के लिए ग्रामीण लोग बाग वहाँ लोकगीत गाया करते, स्थानीय वाद्य बजाया करते, गीत-संगीत की बयार में उनकी सारी थकान मिट जाया करती। कहा जा सकता है कि मुकुंद की सांस्कृतिक पाठशाला अखरा ही थी। आज गावों में अखरा का प्रचलन कम होता जा रहा है, किन्तु अखरा गांव की संस्कृति का परिचायक है, अखरा गांव की सामाजिक पंचायत है बल्कि यह कहना कोताही नहीँ होगा कि अखरा अपने आप में ट्राइबल संसद है।

मुकुंद के पिता अशिक्षित कृषक थे, परन्तु उन्होनें प्राथमिक शिक्षा हेतू बोन्गराम के प्राइमरी स्कूल में मुकुंद का दाखिला करवा दिया, मुकुंद ने मिडिल स्कूल की पढ़ाई गांव बरवाडीह में की। उन्होनें एस एस हाई स्कूल सिमडेगा से मैट्रिक की परीक्षा उतीर्ण की और आगे की पढ़ाई के लिए टाटा कॉलेज चाईबासा चले आए।

कॉलेज की शिक्षा के बाद 1972 में मुकुंद बरवाडीह लौट आए और एक स्कूल में सहायक शिक्षक के रूप में कार्य करने लगे। इसी बीच उनका विवाह हो गया, जीवनसाथी के रूप में मिली द्रौपदी देवी, जिनके भीतर भी एक कलाकार हिलोरें ले रहा था। द्रौपदी चुटिया, राँची की रहने वाली थी , वर्ष 1974 में मुकुंद का भाग्य उन्हें चुटिया ले आया। जीवनयापन के लिए वे ट्यूशन पढ़ाने लगे। व्यक्ति की योग्यता उसकी राह आसान कर देती है, मुकुंद को उषा मार्टिन लि। में कैमिकल विश्लेषक की नौकरी मिल गई। मुकुंद के दो पुत्र नंदलाल नायक , प्रद्युम्न नायक एवं एक पुत्री चंद्रकांता हैँ । जिनमें नंदलाल लोक कलाकार व फिल्म निर्देशक के रूप में लोकप्रिय हो रहे हैँ।

उपलब्धियाँ - मुकुंद ने हाई स्कूल की पढ़ाई के दौरान ही गाना प्रारम्भ कर दिया था। कॉलेज में होने वाली प्रत्येक सांस्कृतिक गतिविधियों में हिस्सा लेने लगे। मुकुंद आदिवासी स्वयं मंडल छात्रावास में रहा करते थे, जहाँ सुबह शाम दो समय प्रार्थना होती थी, अकसर उन्हें उस समय गाने का अवसर मिला करता था ।

कॉलेज के दौरान उनकी मित्रता सोनारी, जमशेदपुर के रहने वाले जगदीश चरण लहरी से हुई , जो कविताएँ लिखा करते थे। जगदीश का काव्य पाठ आकाशवाणी, राँची में हुआ करता था। उषा मार्टिन में नौकरी के दिनोँ एक बार मुकुंद की मुलाकात कॉलेज के मित्र जगदीश से हुई, जो उन्हें आकाशवाणी राँची ले गए। उन दिनोँ उदघोषक सुगिया बहन उर्फ रोजलिन लकड़ा बहुत लोकप्रिय थीं, उन्होंने मुलाकात के दौरान जब मुकुंद का गाना सुना तो मुग्ध हो गईं, कहा जा सकता है कि मुकन्द की प्रतिभा को सबसे पहले सुगिया बहन ने ही पहचाना। मुकुंद ने अपनी पत्नी, परिवार और आस पड़ोस के लोगों को लेकर टीम बनाई और आकाशवाणी में कार्यक्रम करने लगे। 1975 से आकाशवाणी का यह सफर समय के साथ दूरदर्शन में भी आरम्भ हो गया।

यह वही समय था जब झारखण्ड आन्दोलन मूवमेंट जोर पकड़ रहा था। इतिहास गवाह है कि किसी भी आन्दोलन की सफलता के पीछे साहित्यिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों की अहम भूमिका होती है। मुकुंद अपने सहयोगियों के साथ सांस्कृतिक आयोजन किया करते और इस प्रकार के जागरण गीत लिखते -

'जागो जवान, झारखण्ड तेहू देहि ध्यान,

जागो जवान, नागपुर तेहू देहि ध्यान'

मुकुंद ने अपने सहयोगी कलाकार द्रौपदी देवी, मनकुई देवी, पारो देवी, रामेश्वर नायक, जलेश्वर नायक, मनपुरा नायक, देव चरण नायक, शिबू नायक के साथ मिलकर जनसमूह के समक्ष पहली बार जगन्नाथपुर मेला राँची में अपनी कला का प्रदर्शन किया। 1980 में रांची विश्वविद्यालय में तत्कालिन कुलपति डॉ कुमार सुरेश सिंह ने जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग का गठन किया, तब मुकुंद यूनिवर्सिटी से जुड़ गए। 1981 में अमेरिका की रिसर्च एसोसिएट प्रोफेसर डॉ कैरोल बाबिरकी झारखण्ड के संगीत और नृत्य पर शोध हेतू राँची आईं तो मुकुंद उनके साथ इस अध्ययन में जुड़े रहे। नागपुरी गीत संगीत को संरक्षित-सवंर्द्धित करने हेतू एवं कलाकारों को एक मंच देने हेतू मुकुंद ने 1985 में कुंजवन संस्था की स्थापना की। वर्ष 1988 में कुंजवन ने हांगकांग अंतरराष्ट्रीय नृत्य महोत्सव में हिस्सा लिया और काफी तारीफ बटोरी।

नागपुरी फिल्मों की शुरुआत 1992 में फिल्म ' सोना कर नागपुर ' से हुईं, जिसमें मुकुंद नायक ने गीत संगीत दिया तो एक कलाकार के रूप में पर्दे पर भी दिखे, फिर 2009 की लोकप्रिय फिल्म बाहा में अपने गीत दिए, इस फिल्म ने जर्मनी, यूएसए, फिनलैंड में भी कई अवार्ड जीते। 2019 में आई फिल्म फूलमनिया ने बड़े पर्दे पर ख्याति लूटी ही, पर उस फिल्म में मुकुंद नायक का एक मधुर गीत ' खिलल कोमलिनी मन' दर्शकों की जुबाँ पर छा गया।

जहाँ एक ओर पारम्परिक संगीत पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित हो रहा है, व्यावसयिककरण की होड़ में अश्लील शब्दों का प्रयोग होने लगा है, ऐसे माहौल में भी ठेठ नागपुरी संगीत व गीत की परम्परा को आगे बढ़ाने के लिए कृतसंकल्प हैँ मुकुंद नायक।

झारखण्ड की लोक कला संस्कृति के महानायक मुकुंद पंचपरगनिया, बंग्ला, मुंडारी, कुड़ूख, नागपुरी, खोरठा जैसी कई भाषओं में गीत गाते हैँ, ज्यादातर स्वरचित गीत गाने वाले मुकुंद एक विद्वान गीतकार, संगीतज्ञ, ढोलकिया, नर्तक, लोक गायक, प्रशिक्षक, नागपुरी लोक नृत्य झुमइर के प्रतिपादक एवं लोक संस्कृति के वाहक हैँ।

सम्मान - लोक गायक 'मुकुंद नायक' को 2017 में कला एवं संगीत के क्षेत्र में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। जनवरी 2019 में इन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया। पर्यटन, कला-संस्कृति, खेल -कूद और युवा कार्य विभाग, झारखण्ड सरकार द्वारा भी मुकुंद नायक को सांस्कृतिक सम्मान प्रदान किया गया। दैनिक प्रभात खबर ने इन्हें झारखण्ड गौरव सम्मान से सम्मानित किया, दैनिक जागरण एवं लोक कला समिति ने झारखण्ड रत्न अवार्ड से सम्मानित किया। नागपुरी संस्थान द्वारा डॉ। विसेश्वर प्रसाद केसरी सम्मान , झारखण्ड हिन्दी साहित्य संस्कृति मंच द्वारा संस्कृति सम्मान के अलावा देश के भिन्न भिन्न हिस्सों में विभिन्न संस्थानों ने मुकुंद को सम्मानित किया है ।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational