पद्मश्री भागवत मुर्मू 'ठाकुर'
पद्मश्री भागवत मुर्मू 'ठाकुर'


पद्मश्री - सामाजिक कार्य
जन्म : 28 फरवरी ' 1928
जन्म स्थान : गांव बेला, पोस्ट माटिया, जिला जमुई, बिहार - 811312
निधन: 30 जून ' 1998
मृत्यु स्थल : गांव के अपने घर में
जीवन परिचय - बिहार के जमुई जिला के खैरा प्रखण्ड के बेला गांव के ट्राइबल परिवार में भागवत मुर्मू का जन्म हुआ। स्कूली शिक्षा पूर्ण होने पर भागवत मुर्मू राँची आ गए और वहीँ संत जेवियर कॉलेज में पढ़ने लगे।
योगदान - कॉलेज के दिनोँ में ही भागवत सामाजिक कार्यों में रुचि लेने लगे। स्नातक के बाद वे 1952 में संथाल पहाड़िया सेवा मंडल, देवघर से जुड़ गए। भागवत मुर्मू 'ठाकुर' ट्राइबल, दलित, पिछड़े व कमजोर वर्ग के उत्थान कार्यों में सक्रिय रहने लगे। 1957 में बिहार विधानसभा चुनावों की घोषणा हो गई। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भागवत को 'झाझा विधानसभा' से चुनावी मैदान में उतार दिया। उस जमाने में कांग्रेस का चुनाव चिन्ह 'दो बैलों की जोड़ी' थी। भागवत ने जीत दर्ज की और पाँच वर्षोँ तक लगातार ट्राइबल्स व पिछड़े वर्ग की आवाज बन कर बिहार विधानसभा में शोभायमान रहे। भागवत 1989 से 1991 विधान परिषद सदस्य रहे।
साहित्यकार भागवत मुर्मू 'ठाकुर' कविता, कहानी, गीत लिखते रहे। उनकी रचनाएँ हिन्दी, संथाली व बंग्ला में होती थी। उन्होंने देवनागरी लिपि में कई संथाली पुस्तकें लिखी। उनकी कई पुस्तकें एवं रचनाएँ विभिन्न यूनिवर्सिटी के सिलेबस में शामिल हैँ। विशेष कर उनके द्वारा लिखे गए दोङ गीत यू पी एस सी सिलेबस का हिस्सा है।उनकी पुस्तक दोङ सेरेञ (दोङ गीत) के संथाली ( ᱥᱟᱱᱛᱟᱲᱤ ) एवं हिन्दी दोनोँ संस्करण एमेजॉन पर उपलब्ध हैँ।
कृतियाँ -
सोहराय सेरेञ ( सोहराय गीत)
सिसिरजोन राङ ( काव्य संग्रह)
बारू बेड़ा (उपन्यास)
मायाजाल (कहानी)
संथाली शिक्षा
हिन्दी संथाली डिक्शनरी
कोहिमा (12 लोककथाएँ ) नागालैंड भाषा परिषद द्वारा प्रकाशित
पुरस्कार एवं सम्मान - भागवत मुर्मू ' ठाकुर' देश के पहले ट्राइबल थे, जिनको पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया। सामाजिक कार्यों एवं साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए उन्हें 16 मार्च 1985 को पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया। इन्हें नालंदा विद्यापीठ द्वारा कवि रत्न सम्मान प्राप्त हुआ एवं भारतीय भाषा पीठ द्वारा डी लिट् की उपाधि दी गई।