Sandeep Murarka

Inspirational

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Sandeep Murarka

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पद्मश्री भागवत मुर्मू 'ठाकुर'

पद्मश्री भागवत मुर्मू 'ठाकुर'

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नाम : भागवत मुर्मू
पदक, वर्ष व क्षेत्र : पद्मश्री, 1985, सामाजिक कार्य
जन्म तिथि : 28 फरवरी,1928
जन्म स्थान : गांव- बेला, पोस्ट- माटिया, प्रखंड- खैरा, जिला- जमुई, बिहार - 811312
जनजाति : संताल
निधन : 30 जून, 1998
निधन स्थल : गांव बेला, जिला जमुई, बिहार

जीवन परिचय - वर्ष 1991 में बिहार के मुंगेर जिले से अलग होकर गठित हुए जिला जमुई का अपना पौराणिक इतिहास है। जमुई जिला मुख्यालय से महज 12 किलोमीटर की दूरी पर एक वन्य क्षेत्र है गिद्धेश्वर, जो हजारों एकड़ में फैला हुआ है। पर्यटकों को आकर्षित करती वहां की हसीन वादियां और जंगल की सुंदरता हिल स्टेशनों को मात देती है। गिद्धेश्वर वन्य क्षेत्र के बीचों-बीच गरही डैम अवस्थित है। वहां एक पंचभूर झरना है, जहां एक साथ गर्म और ठंडा पानी मिलता है। गिद्धेश्वर जंगल का संबंध रामायण काल से है। किंवदंती के अनुसार लंकापति रावण जब मां सीता का हरण कर पुष्पक विमान से उन्हें ले जा रहा था। तब उसकी मुठभेड़ पक्षीराज जटायु से हुई थी। गिद्ध 'जटायु' का एक पंख कट कर उसी पर्वत पर गिरा था। कहते हैं कि इसी कारण गिद्ध और ईश्वर इन दो शब्दों के योग से उस पर्वत का नाम गिद्धेश्वर पड़ा। इसी विश्वास और आस्था के बल पर पहाड़ की चोटी पर जटायु का मंदिर निर्मित है। साथ ही भगवान भोलेनाथ का मंदिर है, जो 'गिद्धेश्वर नाथ महादेव' के नाम से विख्यात है।

जमुई जिला जैन धर्मावलंबियों की आस्था का केंद्र है। माना जाता है कि जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्मस्थान गिद्धेश्वर वन्य क्षेत्र में ही है। प्रखंड सिकंदरा के कल्याणक क्षत्रिय कुंडग्राम, लछुआड़ में भगवान महावीर का भव्य मंदिर अवस्थित है। इस मंदिर की मूर्ति 2,600 साल से भी ज्यादा पुरानी है। काले पत्थर की इस मूर्ति का वजन करीब 250 किलोग्राम है। भगवान महावीर के जन्म स्थान के अलावा भी जमुई जिले में कई ऐसे जैन मंदिर हैं, जो जैन धर्माबलंबियों के आस्था से जुड़े हैं। जमुई जिला मुख्यालय से 11 किलोमीटर दूर काकन गांव में जैन धर्म के 9वें तीर्थंकर भगवान सुविधिनाथ का भी मंदिर है। यहां हर साल बड़ी संख्या में जैन श्रद्धालु आते हैं। जैन धर्म के धर्मावलंबियों के लिए जमुई विशेष महत्व रखता है।

बिहार के इसी जमुई जिला में एक संताल आदिवासी भागवत मुर्मू 'ठाकुर' को रायसीना हिल्स पर राष्ट्रपति भवन में देश के चौथे सर्वोच्च सम्मान पद्मश्री से अलंकृत किया गया। बेला गांव में जन्में भागवत मुर्मू की प्राथमिक शिक्षा गांव में ही हुई। स्कूली शिक्षा पूर्ण होने पर भागवत मुर्मू रांची आ गए और उच्च शिक्षा संत जेवियर कॉलेज से पूर्ण की।

योगदान -  कॉलेज के दिनों से ही भागवत मुर्मू सामाजिक कार्यों में रुचि लेने लगे। वर्ष 1952 में स्नातक के बाद वे संथाल पहाड़िया सेवा मंडल, देवघर से जुड़ गए। भागवत मुर्मू 'ठाकुर' अदिवासी, दलित, पिछड़े व कमजोर वर्ग के उत्थान कार्यों में सक्रिय रहने लगे। वर्ष 1957 में बिहार विधानसभा चुनावों की घोषणा हो गई। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भागवत मुर्मू को 142, झाझा विधानसभा (सुरक्षित अजजा) से चुनावी मैदान में उतार दिया। उस जमाने में कांग्रेस का चुनाव चिन्ह 'दो बैलों की जोड़ी' थी।निर्विवाद नेता भागवत मुर्मू ने 11,247 मत लाकर जीत दर्ज की और पांच वर्षों तक लगातार आदिवासीयों व पिछड़े वर्ग की आवाज बन कर बिहार विधानसभा में शोभायमान रहे। कुशल राजनीतिज्ञ भागवत मुर्मू ठाकुर वर्ष 1989 से 1991 बिहार विधान परिषद के सदस्य भी रहे।

साहित्यिक अवदान - साहित्यकार भागवत मुर्मू 'ठाकुर' राजनैतिक व्यस्तताओं के बावजूद साहित्य सृजन में सक्रिय रहे। उन्होंने ज्यादातर संताली भाषा में कविता, कहानी, गीतों की रचना की। उनकी लेखनी हिंदी और बांग्ला में भी खूब चली। उन्होंने देवनागरी लिपि में कई संताली पुस्तकें लिखी। उनकी कई पुस्तकें एवं रचनाएं विभिन्न विश्वविद्यालयों के सिलेबस में शामिल है। विशेष कर उनके द्वारा लिखे गए दोङ गीत यूपीएससी सिलेबस का हिस्सा है। उनकी पुस्तक दोङ सेरेञ (दोङ गीत) के संताली एवं हिंदी संस्करण एमेजॉन पर उपलब्ध हैं।

उनकी कृतियां -
दोसेरेञ
सोहराय सेरेञ ( सोहराय गीत)
सिसिरजोन राङ ( काव्य संग्रह)
बारू बेडा (उपन्यास)
मायाजाल (कहानी)
संताली शिक्षा
हिंदी संताली कोष (डिक्शनरी)
कोहिमा (12 लोककथाएं ) नागालैंड भाषा परिषद द्वारा प्रकाशित

जिस तरह श्रीमद्भागवत सरल एवं लोकप्रिय धार्मिक ग्रंथ है, उसी तरह अपने नाम को साकार करते हुए भागवत मुर्मू ने भी सरल जीवन बिताया और काफी लोकप्रिय हुए।

डॉक्टरेट - कलमकार भागवत मुर्मू 'ठाकुर' को भारतीय भाषा पीठ द्वारा डी लिट् की मानद उपाधि दी गई।

सम्मान एवं पुरस्कार - डॉ. भागवत मुर्मू 'ठाकुर' देश के पहले संताली थे, जिनको पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया। सामाजिक कार्यों एवं साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए उन्हें 16 मार्च, 1985 को पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया। उन्हें नालंदा विद्यापीठ द्वारा कवि रत्न सम्मान प्राप्त हुआ।

उनकी एक संताली रचना एवं उसका हिंदी अनुवाद -

दोङ सेरेञ

होर डाहार रेयाक् होय सेतोङ एमान,
नोवा होड़मो ते दाराम कोक् मा ;
नोवा धारती ते हिजुक् रेयाक्,
मानवां होपोन जोनोम सोरोस लागित्,
दुलाड़ ते बाड़े बाहा कोक् मा।

राह बाट की हवा धूप आदि,
इस शरीर के द्वारा सामना हो,
इस पृथ्वी में जन्म लेने का ;
मानव जीवन को श्रेष्ठ बनाने के लिए,
प्यार से फुले फले।

संदर्भ -
i. hindi.news18.com
ii. दैनिक जागरण _18 अप्रेल, 2016
iii.facebook - Santali Literature & Language 


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