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Sandeep Murarka

Inspirational

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Sandeep Murarka

Inspirational

पद्मश्री डॉ आर. डी. मुंडा

पद्मश्री डॉ आर. डी. मुंडा

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5. नाम : डॉ. आर. डी. मुंडा
पदक, वर्ष व क्षेत्र : पद्मश्री, 2010, कला के क्षेत्र में
जन्म तिथि : 23 अगस्त,1939
जन्म स्थान : देवड़ी, प्रखंड- तमाड़, जिला- रांची, झारखंड
जनजाति : मुंडा
निधन : 30 सितंबर, 2011 (कैंसर से)
निधन स्थल : अपोलो हास्पिटल,रांची, झारखंड
पिता : गंधर्व सिंह मुंडा
माता : लोकमा मुंडा
पत्नी : अमिता मुंडा

जीवन परिचय - 15 नवंबर, 2000 को गठित झारखंड प्राकृतिक सौंदर्य से भरा पूरा राज्य है। यहां की पर्वत शृंखलाएं सैलानियों को आकर्षित करती हैं। गिरिडीह जिला की पारसनाथ पहाड़ी, देवघर का त्रिकुट पर्वत, नंदन पहाड़ और हाथी पहाड़, सरायकेला खरसावां का दलमा पहाड़, हजारीबाग का सतपहाड़ और कैनरी हिल, पूर्वी सिंहभूम के घाटशिला में फुलडुंगरी, रांची में अवस्थित टैगोर हिल एवं रांची हिल, साहेबगंज जिला में राजमहल हिल, गढ़वा जिला में कैमूर पहाड़, लातेहार जिला के चंदवा प्रखंड में मंदारगिरी पहाड़, लोहरदगा का बागडू पहाड़ और बुलबुल पर्वत, पाकुड़ जिला का सिंगारसी पहाड़, गोड्डा जिला में बाराकोपा पहाड़, जामताड़ा में धसनिया पहाड़, धनबाद की झिनझिनी पहाड़ी, पश्चिम सिंहभूम में चक्रधरपुर के पास लोटा पहाड़ जैसे कई पर्वत झारखंड की शान में मस्तक ऊंचा कर खड़े हैं। कमी केवल इस बात की रह गई कि इस राज्य में पर्यटन का अपेक्षित विकास नहीं हो सका।

सीना तान कर खड़े इन पर्वतों के शिखर भले आसमान ना छू सकें, किंतु यहां की माटी में जन्में एक शख्स ने पूरे देश भर में झारखंड का नाम ऊंचा किया। कहते हैं कि हिमालय क्षेत्र में रुद्राक्ष की पैदावार बहुत अच्छी होती है, किंतु एकमुखी रुद्राक्ष दुर्लभ किस्म का होता है। कुछ ऐसी ही दुर्लभ विशिष्टताओं से संपन्न था डॉ. रामदयाल मुंडा का बहुआयामी व्यक्तित्व, ऐसे व्यक्तित्व बिरले ही पैदा होते हैं।

झारखंड के रांची जिले में एक प्रसिद्ध मंदिर है देवड़ी माता का, टाटा रांची उच्च मार्ग से गुजरते समय वहां लोग हाथ जोड़ कर ही आगे बढते हैं। भारतीय क्रिक्रेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धौनी तो अपने रांची आवास से देवडी़ मंदिर बाईक चलाकर आया करते हैं। यह पुरातन और भव्य मंदिर जिस गांव में अवस्थित है, उसी देवडी़ गांव में रामदयाल मुंडा का जन्म हुआ। उनकी प्राथमिक शिक्षा तमाड़ प्रखंड के अमलेसा लूथरन मिशन स्कूल में हुई और माध्यमिक शिक्षा खूंटी हाई स्कूल में हुई। उन्होंने वर्ष 1963 में रांची विश्वविद्यालय से मानव विज्ञान में स्नातक किया। कुशाग्र राम दयाल मुंडा उच्चतर शिक्षा, अध्ययन एवं शोध के लिए शिकागो विश्वविद्यालय, अमेरिका चले गए। जहां से उन्होंने वर्ष 1968 में भाषा विज्ञान में पीएचडी की। फिर उन्होंने यूएस में ही रहकर तीन वर्षों तक दक्षिण एशियाई भाषा एवं संस्कृति विभाग में शोध व अध्ययन किया। डॉ. मुंडा ने वर्ष 1972 से 1981 तक अमेरिका के मिनेसोटा यूनिवर्सिटी के साउथ एशियाई अध्ययन विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में अध्यापन कार्य किया। वे वहां शिक्षण कार्य के अलावा सांस्कृतिक गतिविधियों में भी काफी सक्रिय रहे। साऊथ एशिया लोक गीत- नृत्य -संगीत टीम का सदस्य रहते हुए उन्होंने कई सांस्कृतिक आयोजनों में भाग लिया।

मिनेसोटा विश्वविद्यालय में रहते हुए डॉ. मुंडा को अमेरिकन युवती हेजेल एन्न लुत्ज से प्रेम हो गया। फिर दोनों ने दिनांक 14 दिसंबर 1972 को विवाह भी किया। किंतु यह बेमेल संबंध टीक नहीं सका और कुछ ही वर्षों में टूट गया। हेजेल से तलाक के बाद रामदयाल मुंडा का मन अमेरिका से उचटने लगा। वे भारत लौट आये और दिनांक 28 जून 1988 को उन्होंने झारखंड की अमिता मुंडा से दूसरा विवाह किया। जिनसे उनके पुत्र हुए प्रो. गुंजल इकिर मुंडा।

योगदान - यह वो दौर था जब रांची विश्वविद्यालय के  तत्कालिन कुलपति डॉ. कुमार सुरेश सिंह जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के गठन की कवायद में लगे थे। जनजातीय मुद्दों पर वे अक्सर डॉ. रामदयाल मुंडा से बातें किया करते थे। दोनों व्यक्ति ही जनजातीय मुद्दों पर काफी गंभीर थे। डॉ. कुमार सुरेश ने डॉ. मुंडा को रांची यूनिवर्सिटी से जुड़ने का आग्रह किया। डॉ.रामदयाल मुंडा वर्ष 1982 में भारत लौट आए और जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के विकास में जुट गए। वे वर्ष 1985 - 86 में रांची विश्वविद्यालय के उप-कुलपति रहे और 1986 - 88 तक कुलपति रहे। रांची यूनिवर्सिटी में उनकी सादगी के कई किस्से विख्यात थे। वे अपने कक्ष की कुर्सी -टेबल स्वयं साफ किया करते थे। उन्होंने रांची यूनिवर्सिटी कैपंस में सरहुल महोत्सव आयोजन की परंपरा आरंभ की।

वे भारत के अदिवासी समुदायों के परंपरागत और संवैधानिक अधिकारों को लेकर बहुत सजग थे। उनका मानना था कि प्रत्येक अदिवासी का शिक्षित होना अति आवश्यक है, तभी जनजातीय आंदोलन सफल होगा, आदिवासियों को उनके अधिकार प्राप्त हो सकेंगे और उनका विकास होगा।

शिक्षाविद् डॉ. मुंडा 1983 में ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी, कैनबेरा में विजिटिंग प्रोफेसर रहे। उन्होंने वर्ष 1996 में न्यूयॉर्क की साईरॉक्स यूनिवर्सिटी एवं वर्ष 2011 में जापान की टोक्यो यूनिवर्सिटी ऑफ फॉरेन स्टडीज में विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवाएं दी। डॉ. मुंडा दिल्ली के जेएनयू और मेघालय की नॉर्थ इस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी सहित कई विश्वविद्यालयों की प्रबंधन समिति में बतौर सलाहकार जुड़े थे।

विद्वान डॉ. मुंडा ने वर्ष 1977- 78 में अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडियन स्टडीज से, 1996 में यूनाइटेड स्टेट्स - इंडिया एजुकेशन फाउंडेशन और 2001 में जापान फाउंडेशन से फेलोशिप प्राप्त की।

उन्होंने झारखंड की आदिवासी लोक कला, विशेषकर ‘पाइका नृत्य’ को वैश्विक पहचान दिलाई। जुलाई 1987 में मास्को, सोवियत संघ में भारत महोत्सव हुआ था। जिसमें डॉ. रामदयाल मुंडा ने सांस्कृतिक दल का नेतृत्व किया एवं उनकी टीम ने 'पाइका नृत्य' की अविस्मरणीय प्रस्तुति की।
वर्ष 1988 में बाली, इंडोनेशिया में हुए अंतरराष्ट्रीय संगीत कार्यशाला में भी डॉ. मुंडा और उनके दल ने भाग लिया। उन्होंने मनीला, फिलीपींस में आयोजित अंतरराष्ट्रीय नृत्य एलायंस, ताईवान के ताइपे में अंतरराष्ट्रीय लोक नृत्य महोत्सव, यूरोप के ट्राइबल एवं दलित अभियान में पाइका नृत्य की अद्वितीय प्रस्तुतियां दी।

आदिवासी हितों के पुरजोर समर्थक डॉ. आर. डी. मुंडा वर्ष 1988 में संयुक्त राष्ट्र संघ से जुड़ गए। वे जेनेवा में यू एन कार्यसमूह में नीति निर्माता रहे। न्यूयॉर्क के द इंडियन कॉनफेडेरेशन ऑफ इंडिजिनियस एंड ट्राइबल पीपुल्स (आईसीआईटीपी) में वरिष्ठ पदाधिकारी रहते हुए उन्होंने बेबाक तरीके से आदिवासियों का पक्ष रखा। उनका कहना  था कि 'पूरा देश मरुभूमि बनने के कगार पर है। केवल जहां जहां आदिवासी निवास करते हैं, वहीं थोड़े जंगल बचे हैं।  अतः यदि जंगलों को बचाना है, तो आदिवासियों को बचाना होगा।'

समाजशास्त्री डॉ. आर. डी. मुंडा ने वर्ष 1988 से 91 तक भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत भारतीय मानवविज्ञान सर्वेक्षण विभाग में अपनी सेवाएं दी। झारखंड आंदोलन के दौरान भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा एक झारखंड विषयक समिति का गठन किया गया था, डॉ. मुंडा 1989-1995 तक उसके सदस्य रहे। कमिटी के कार्यकलापों एवं उनके अनुभवों पर आधारित कई आर्टिकल्स इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के त्रैमासिक पत्रिका में प्रकाशित हुए।

वर्ष 1990 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति की समीक्षा के लिए शिक्षाविद् आचार्य राममूर्ति की अध्यक्षता में एक समीक्षा समिति का गठन हुआ था। जिसमें बतौर सदस्य डॉ. मुंडा ने बिहार राज्य (बिहार- झारखंड संयुक्त) का प्रतिनिधित्व किया था। वह पहला कमीशन था, जिसने लंबा समय नहीं लिया और डेढ़ साल के भीतर अपनी रिपोर्ट तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर को सौंप दी थी। किंतु अफसोस का विषय है कि वह रिपोर्ट आज भी किसी अलमारी में बंद पड़ी है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर के भाषाविद् डॉ. आर. डी. मुंडा वर्ष 1997 में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के सलाहकार समिति सदस्य तथा 1998 में केंद्रीय वित्त मंत्रालय की वित्तीय समिति के सदस्य रहे। समय समय पर उनको नवम योजना आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग, मानवाधिकार शिक्षा की स्थायी समिति, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, सामाजिक और आर्थिक कल्याण के संवर्धन के लिए राष्ट्रीय समिति, साहित्य अकादमी, राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद, वन अधिकार अधिनियम के अंर्तगत गठित अनुसूचित जनजाति एवं वनवासियों के लिए नीति निर्धारण समिति, सामाजिक न्याय और अधिकारिता समिति, जनजातीय मामलों के मंत्रालय की सलाहकार समिति इत्यादि कई केंद्रीय स्तरीय समितियों का सदस्य मनोनीत किया गया।

सामाजिक कार्यों एवं जनजातीय उत्थान में सक्रिय डॉ. आर. डी. मुंडा विभिन्न संस्थानों व संगठनो से जुड़े रहे तथा विभिन्न दायित्वों का निर्वहन किया। यथा; भारतीय आदिवासी संगम, आदिम जाति सेवा मंडल, रांची यूनिवर्सिटी पीजी टीचर्स एसोसिएशन, बिंदराय इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च स्टडी एंड एक्शन चाईबासा, अखिल भारतीय साहित्यिक मंच नई दिल्ली, भारतीय साहित्य विकास न्यास इत्यादि।

देशज पुत्र डॉ. राम दयाल मुंडा ने पूरी दुनिया के जनजातीय  समुदायों को संगठित करने में अभूतपूर्व भूमिका निभाई।  प्रत्येक वर्ष 9 अगस्त को मनाए जाने वाले 'विश्व आदिवासी दिवस' की परंपरा को शुरू करवाने में उनका अहम योगदान रहा है। झारखंड के खूंटी जिला में अवस्थित जनजातीय शहादत स्थल डोंबारी बुरु पर भगवान बिरसा मुंडा की 18 फिट ऊंची प्रतिमा की स्थापना में उनकी मुख्य भूमिका रही।

राजनीतिक सफर - राजनीतिक पारी खेलते हुए डॉ. आर. डी. मुंडा वर्ष 1991 से 1998 तक झारखंड पीपुल्स पार्टी के प्रमुख अध्यक्ष रहे। राज्यसभा में 245 सदस्य होते हैं। जिनमें 12 सदस्य महामहिम राष्ट्रपति के द्वारा नामित किए जाते हैं। डॉ. आर. डी. मुंडा की विलक्षण प्रतिभा और अतुलनीय योगदान को देखते हुए दिनांक 22 मार्च 2010 को राज्यसभा के लिए नामित किया गया।

पूर्व राज्यसभा सांसद डॉ. रामदयाल मुंडा ने अमेरिका, रूस, आस्ट्रेलिया, फिलीपिंस, चीन, जापान, इंडोनेशिया, ताईवान सहित कई देशों का दौरा किया। उन्होंने वर्ष 1987 में स्विट्जरलैंड के जेनेवा में आयोजित इंडिजिनियस पापुलेशन, 1997 में डेनमार्क के कोपेनहेगन में आयोजित इंडिजिनियस एकॉनामी, 1998 में नागपुर में इंटरनेशल एलायंस फॉर इंडिजिनियस पीपुल्स ऑफ द ट्रॉपिकल फॉरेस्ट, 1999 में इंदौर में सयुंक्त राष्ट्र संघ के स्थायी फोरम, 2000 में जर्मनी के बर्लिन में खेल एवं शिकार, 2002 में स्वीडेन के उपसाला, न्यूयॉर्क एवं बैंकाक में देशज लोगों के विभिन्न मुद्दों पर आधारित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भाग लिया।

साहित्यिक अवदान - प्रोफेसर आर. डी. मुंडा ने झारखंड आंदोलन के दौरान मोटर साइकिल से घूम घूम कर पूरे राज्य में सांस्कृतिक साहित्यिक अलख जगाई -
अखंड झारखंड में
अब भेला बिहान हो
अखंड झारखंड में..
और समय अइसन आवी न कखन,
लक्ष भेदन लगिया,
उठो-उठो वीर,
धरु धनु तीर
उठो निजो माटी लगिया ...

साहित्यकार डॉ. रामदयाल ने मुंडारी, नागपुरी, पंचपरगनिया, हिंदी एवं अंग्रेजी में गीत-कविताओं के अलावा भरपूर गद्य साहित्य रचा है। उनकी संगीत रचनाएं बहुत लोकप्रिय हुई। उन्होंने कई रिसर्च पेपर लिखे एवं महत्वपूर्ण अनुवाद भी किए।

उनकी कृतियां -
• हिसिर - मुंडारी गीत
• सेलेद - हिंदी, मुंडारी एवं नागपुरी गीत संग्रह
• जादुर दुराङको
• बा (हा) बोंगा - सरहुल मंत्र
• आड़ादिं बोंगा - विवाह मंत्र
• आदि धरम -भारतीय आदिवसियों की धार्मिक आस्थाएं
• गोनोएह पारोमेना बोंगा: आदिधर्मानुसार श्रद्धा-मंत्र
• कुछ नाई नागपुरी गीत
• मुंडारी गीतकार श्री बुदु बाबू और उनकी रचनाएं
• मुंडारी व्याकरण
• प्रोटो खरवारियन साउंड सिस्टम
• इआ नावा कानिको - मुंडारी में सात कहानियां
• नदी और उसके संबंध तथा अन्य नगीत - काव्य संग्रह
• वापसी, पुनर्मिलन और अन्य नगीत -काव्य संग्रह
• लैंग्वेज ऑफ पोएट्री (कविता की भाषा)
• आदिवासी अस्तित्व और झारखंडी अस्मिता के सवाल
• जी तोनोल - मन बंधन
• जी रानारा - मन बिछुड़न
• एनिओन - जागरण
• इंट्रोडक्शन टू इंडीजिनस एंड ट्राइबल सॉलिडेरिटी (देशज व ट्राइबल का परिचय)
• The Other Side of Development: The Tribal Story_ अंग्रेजी, सह लेखन - अरुण कुमार घोष
• Sosobonga: the ritual of reciting the creation story and the Asur story prevelant among the Mundas, सह लेखन - रतन सिंह मानकी
• The Jharkhand Movement: Indigenous Peoples' Struggle for Autonomy in India_ अंग्रेजी, सह लेखन - एस बासु मल्लिक

अनुवाद -
• जगदीश्वर भट्टाचार्य के संस्कृत नाटक 'हास्यार्णव प्रहसनम्' का अंग्रेजी में रूपांतरण - 'ओशन ऑफ लाफ्टर'
• जितेंद्र कुमार के हिंदी उपन्यास 'कल्याणी' का अंग्रेजी में अनुवाद
• नागार्जुन के आंचलिक उपन्यास 'जमनिया का बाबा' का अंग्रेजी में अनुवाद - होली मैन ऑफ जमनिया
• जयशंकर प्रसाद के प्रसिद्ध हिंदी नाटक 'ध्रुवस्वामिनी' का अंग्रेजी में अनुवाद
• जयशंकर प्रसाद का हिंदी उपन्यास 'तितली'
• रामधारी सिंह दिनकर का काव्य 'रश्मिरथी' का अंग्रेजी में अनुवाद - 'द सन चैरियटीयर'
• महाश्वेता देवी की बांग्ला पुस्तक बिरसा मुंडा का हिंदी में  अनुवाद

वर्ष 1986 में डॉ. रामदयाल मुंडा ने झारखंड के राजनैतिक संगठन ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) का संविधान भी लिखा था। जिसके सहलेखन में एस बसु मलिक, सूरज सिंह बेसरा और देवशरण भगत शामिल थे।

वर्ष 2010 में अखरा द्वारा निर्मित फिल्म 'गाड़ी लोहरदगा मेल' के प्रेरणास्त्रोत डॉ. आर. डी. मुंडा कहते हैं कि 'नाच गाना आदिवासियों का कल्चर है, जब काम पर जाओ तो नगाड़ा लेकर जाओ और जब थकान हो जाए, काम से जी ऊबने लगे तो थोड़ी देर नगाड़ा बजाओ।'

उनपर बनी फिल्म - डॉ. राम दयाल मुंडा कहा करते थे 'नाची से बांची'। वर्ष 2017 में राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता एवं पहले ट्राइबल फिल्म निर्माता बीजू टोप्पो ने इसी शीर्षक पर 70 मिनट की एक फिल्म का निर्माण किया। जिसमें डॉ. रामदयाल मुंडा के जीवनचरित और जनजातीय जीवन को काफी जीवंत तरीके से फिल्माया गया। यह फिल्म काफी विख्यात हुई और इसने कई राष्ट्रीय पुरस्कार बटोरे।

शोधार्थी, शिक्षक, चिंतक, अंतरराष्ट्रीय स्तर के भाषाविद्, समाजशास्त्री, साहित्यकार, अप्रतिम जनजातीय कलाकार, बांसुरी वादक, संगीतज्ञ, राज्यसभा सांसद डॉ. रामदयाल मुंडा के बहुमुखी व्यक्तित्व की गाथा को शब्दों में समेटना असंभव है।

सम्मान एवं पुरस्कार - झारखंड की प्रमुख बौद्धिक और सांस्कृतिक शख्सियत डॉ. रामदयाल मुंडा को वर्ष 2010 में देश के चौथे सर्वोच्च पुरस्कार पद्मश्री से सम्मानित किया गया। वर्ष 2007 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी सम्मान से अलंकृत किया गया।

उनकी स्मृति में - झारखंड सरकार द्वारा मोराबादी, रांची में डॉ. रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान एवं संग्रहालय की स्थापना की गई है। दिनांक 23 अगस्त 2018 को शोध संस्थान में उनकी मूर्ति का अनावरण किया गया।
रांची होटवार स्थित कला भवन में डॉ. मुंडा की प्रतिमा की स्थापना की गई है। रांची राजकीय अतिथशिाला के सामने रामदयाल मुंडा पार्क का निर्माण हुआ है।

उनकी रचना 'सरहुल मंत्र' की दो पंक्तियां -

हे स्वर्ग के परमेश्वर, पृथ्वी के धरती माय... जोहार !
हम तोहरे के बुलात ही, हम तोहरे से बिनती करत ही, हामरे संग तनी बैठ लेवा, हामरे संग तनी बतियाय लेवा, एक दोना हड़िया के रस, एक पतरी लेटवा भात, हामर संग पी लेवा, हामर साथे खाय लेवा..

इन पंक्तियों में डॉ. आर.डी. मुंडा स्वर्ग के परमेश्वर को, पृथ्वी की धरती माता को, शेक्सपीयर, रवींद्रनाथ टैगोर, मार्क्स, एंगेल्स, लेनिन, सिदो-कान्हु, चांद-भैरव, बिरसा मुंडा, गांधी, नेहरू, जयपाल सिंह मुंडा जैसे धरती पुत्रों को, जो ईश्वर के पास चले गए हैं, उनको आमंत्रण भेजते हैं।


संदर्भ -
i. प्रभात खबर_ 23 अगस्त, 2023


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