तपस्या-3
तपस्या-3
निर्मला साड़ी अलमारी में रखकर बिस्तर पर लेट गयी थी। निर्मला को आज साड़ी से भी ज्यादा ख़ुशी इस बात की थी कि उनकी बेटियाँ आत्मनिर्भर हो गयी थी। वे अपने हक़ और अधिकार के लिए आवाज़ उठा सकती थी। निर्मला ने तो शादी के बाद सिर्फ अपने कर्तव्य ही पूरे किये थे, स्त्री के अधिकार भी होते हैं, यह तो उन्होंने जाना ही नहीं था।
निर्मला का मायके का घर ,घर क्या हवेली थी। एक चौक की बड़ी सी हवेली। खुला -खुला घर था। ससुराल में चार कमरों का छोटा सा घर । घर में रहने वाले निर्मला समेत 13 जने थे। निर्मला के ससुर और चाची ससुर साथ में ही रहते थे। निर्मला की दादी सास भी थी। निर्मला के पति रमेश 3 भाई और ३ बहिनें थे। 2 ननदों की शादी हो चुकी थी। २ देवर और एक ननद कुंवारी थी। चाची ससुर के भी 3 बच्चे थे। रमेश की नौकरी शहर में थी, लेकिन निर्मला को कुछ दिन तो ससुराल के गांव में ही रहना था।
निर्मला के ससुर जी एक दुकान में मुनीमगिरी करते थे। जितना कमाते नहीं थे, उससे ज्यादा उनका खर्च था। सफ़ेद धोती -कुर्ता पहनते थे। धोती और कुर्ते पर कलफ़ लगवाते थे और फिर उनके कपड़े धोबी के पास इस्त्री होने के लिए जाते थे। घर में बच्चों को कभी दूध नहीं मिलता था, लेकिन ससुरजी को प्रतिदिन मिलता था। निर्मला की सास फूहड़ थी, निर्मला के पति रमेश और दूसरे बच्चों को दादी सास ने ही पाला था। चाची सास ही बच्चों के कपड़े आदि धो देती थी। चाची ससुर आधे समय घर पर बैठकर खाते थे और आधे समय कमाने जाते थे, ऐसा निर्मला ने सुना था। लेकिन जब से निर्मला की शादी हुई थी, तब से चाची ससुर घर पर ही थे।
निर्मला की सास एक सुघड़ गृहिणी नहीं थी, अतः घर पर दादी सास की चलती थी। झगड़ालू और दबंग प्रवृत्ति के होने के कारण घर के सभी निर्णय चाचा ससुर लेते थे।निर्मला के चाची ससुर इस शादी से नाखुश थे क्यूँकि उन्हें इच्छा अनुरूप दान दहेज़ नहीं मिला था। शादी के दौरानघटी दो घटनाओं के कारण भी चाची ससुर बहुत रुष्ट थे।
निर्मला की शादी में दाल का हलवा बनवाया गया था। घी की तो कोई कमी नहीं थी, इसीलिए शुद्ध देसी घी का हलवा बना था। हलवे की ख़ुश्बू से पूरा जनवासा महक उठा था। निर्मला के पिताजी ने हलवे में डालने के लिए बादाम और काजू भी मँगवा रखे थे।
हलवाई ने निर्मला के पिताजी से कहा कि ,"काजू और बादाम भंडारे से मंगवा दीजिये। "
निर्मला के फुफेरे भाई ने डेढ़ होशियारी दिखाते हुए सुझाव दिया कि ,"काजू बादाम तो रहने दीजिए मामा जी, मूँगफली डलवा देते हैं, वही बात है। "
निर्मला के पिताजी बेचारे सीधे -साधे आदमी थे, उन्होंने अपने भांजे की बात मान ली। वैसे भी दुनिया में काम बनवाने वालों से ज़्यादा काम बिगाड़ने वाले मौजूद हैं।
मूँगफली हलवे में मिला दी गयी, घी की जग़ह हलवे में मूँगफली के तेल की महक आने लग गयी। बारातियों ने हलवे को मुंह तक नहीं लगाया, ऊपर से कहा कि " तेल का हलवा खिलाकर बारातियों की बेइज़्ज़ती कर दी है। "तब जैसे -तैसे कुछ भलेमानसों ने स्थिति सम्हाली।
शादी के बाद बारात निर्मला को विदा करा लेकर चली। निर्मला और उनके पति रमेश एक अलग गाड़ी में थे और दूसरे बाराती एक बस में थे। बारातियों की बस को निर्मला के गांव से रवाना कर दिया गया था। बस कुछ दूर जाकर ख़राब हो गयी, निर्मला के मायके वालों को यह पता नहीं चला। बाराती वहाँ नज़दीक ही स्थित किसी बगीची में रुके, वहाँ पर चाची ससुर और कुछ लोगों ने आटे ,दाल और घी एवं उपलों की व्यवस्था की। कुछ लोग खाना बनाना जानते थे, उन्होंने दाल -बाटी बनाई। एक -दो लोग पास के कस्बे में मैकेनिक ढूँढने गए। सब लोगों न खा -पी लिया। मैकेनिक भी आ गया और बस ठीक हो गयी। तब तक निर्मला के मायके वालों को भी ख़बर हो गयी थी। मायके वाले सब बारातियों के खाने के लिए खाने पैक करवाकर लाये। किसी ने खाना नहीं खाया, क्यूँकि सब पहले ही खा चुके थे।
चाची ससुर की यही शिकायत थी कि ,"दान -दहेज़ तो कुछ दिया नहीं और स्वागत-सत्कार भी ठीक से नहीं किया। "
ससुरजी अपनी मस्ती में मस्त रहते थे। वह परिवार के सागर में एक द्वीप की तरह थे, जो सागर में उठने वाली लहरों से बेपरवाह थे। निर्मला की शादी क बाद भी चाची ससुर जब -तब उसके ससुर जी को कहते -रहते थे कि ,"भाईसाहब ,अगर किशोरी जी कहीं भी मिले तो उन्हें चार जूते मारियेगा। "
ध्यातव्य हो कि किशोरी जी निर्मला के पिताजी का नाम था। यह सुनकर निर्मला जी का हृदय चीत्कार कर उठता था। उन्हें अपने ससुरजी पर गुस्सा आता था कि ,"वह क्यों चुपचाप सुन लेते हैं ?"
लेकिन निर्मला के ससुरजी ऐसे ही थे। उन्हें केवल अपनी फ़िक्र थी, परिवार से कोई मतलब नहीं था। खुद का अच्छा खाना और अच्छा पहनना।ससुरजी के भरोसे तो शायद सा बच्चों को भीख ही माँगनी पड़ती, लेकिन दादी सास जैसे -तैसे चरखा कातकर ,गोबर बीनकर , मूँगफली छीलकर घर को चला रही थी। बीच -बीच में चाची ससुर कुछ कमा लेते थे। निर्मला के पति रमेश की नौकरी लगते ही घर की सारी जिम्मेदारी उन्हीं पर आ गयी थी। उनके साथ ही शादी के बाद निर्मला पर। निर्मला के लिए तो गृहस्थी का प्रारम्भ ही तपस्वी जीवन की शुरुआत थी। गृहस्थ जीवन से बड़ी कोई तपस्या नहीं होती, न जाने फिर लोग तपस्या के लिए वैराग्य क्यों लेते हैं ?
