तोहफ़ा पहले प्यार का
तोहफ़ा पहले प्यार का
रोहन आफ़िस से लौटा तो विकास जी को घर पर न पा कर परेशान हो गया...
स्वाति, स्वाति.... कहाँ हो तुम...?
पापा कहाँ हैं... दिखाई नहीं दे रहे !
अरे! अभी तो यहीं थे... कहाँ चले गए!
तुम से हजार बार कहा है ध्यान रखा करो... परेशान हो कर रोहन ने कहा और एक बार फ़िर से चल दिया विकास जी को घर वापस लाने।
जब से शोभा जी की मृत्यु हुई है, विकास जी की मानसिक हालत कुछ कमजोर हो गई है। अक्सर जब भी उनकी याद आती, वे बिना बताए घर से निकल जाते थे...शहर से बाहर स्थित उस पार्क की तरफ़ जहाँ पहली बार उनकी और शोभा जी की मुलाकात हुई थी।
उस दिन मानसून की पहली बारिश होने की वजह से उन्हें बारिश होने का अंदाज़ा ही नहीं था, नतीजतन आफ़िस से लौटते हुए अभी बस से उतरे ही थे कि झमाझम बारिश शुरू हो गयी। शुरू में हल्की बारिश थी तो सोचा निकल जाएँ, लेकिन जब तेज बारिश होने लगी तो उन्होने कुछ देर पास के पार्क में रुक कर बारिश रुकने का इंतजार करना ठीक समझा।
बारिश रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी...कई बार उन्होंने ऐसी तेज बारिश में निकलने का सोचा पर ख्याल आ गया कि अगर बीमार हो गये तो कल की मीटिंग का क्या होगा!
इसी बेचैनी में वे बारिश रुकने का इंतजार कर रहे थे.... इस बात से बेखबर कि पार्क के सामने बनी सोसायटी के तीसरे फ़्लोर की बाल्कनी से किसी की दो निगाहें बार-बार आकर उन्हें देख जाती थीं।
जब देर रात तक बारिश नहीं रुकी तो उन्होंने भीगते हुए ही घर जाने का मन बना लिया। जैसे ही वे ओट में से निकलने को हुए.... सामने से एक कमसिन-सी लड़की हाथ में छतरी पकड़े हुए उन्हीं की ओर आते दिखी... भोला-भाला चेहरा... काजल भरी दो आँखें... गालों पर लहराती लटें... लग रहा था मानो कोई परी आसमान से उतर आई हो।
"जी मैं सामने ही सोसायटी में रहती हूँ और बहुत समय से आप को यहाँ खड़े देख रही हूँ तो आप की दुविधा समझ गई... आप मेरी छतरी ले कर घर जा सकते हैं!"
शोभा जी की मधुर आवाज जब उनके कानों में पड़ी तो लगा जैसे कानों में कोयल कूक रही हो। दिल तो वे अपना पहले ही हार बैठे थे, जब उन्हें छतरी पकड़े पार्क के गेट से अंदर घुसते हुए देखा था.... भोला-भाला मासूम सा चेहरा, काजल भरी दो आँखें , गालों पर लहराती लटें....लग रहा था मानो आसमान से परी उतर आई हो !!
जैसे ही शोभा जी जाने के लिये मुड़ीं, उन्हें लगा अभी जाकर उनका हाथ थाम लें और दो घड़ी वहीं बैठ जाएँ... पर ऐसा वे कर ना पाए।
यही उन की पहली मुलाकात थी, उस के बाद धीरे धीरे वे दोनों प्रेम के बंधन में बंधे और फ़िर विवाह के बंधन में। आज भी जब कभी वे शोभा जी की यादों में गुम हो जाते हैं, तो उन्हें ढूँढते हुए इसी पार्क में पहुँच जाते हैं.... रोहन जानता था यह। वह तुरंत पार्क पहुँच गया... हाथों में छतरी लिये। वही छतरी, जो शोभा जी का पहला तोहफ़ा थी उनके लिए। आज भी जब वे इस छतरी को देखते हैं तो लगता है... शोभा जी उन्हें लेने आ रही हैं, उन्हें अल्जाइमर की बीमारी जो थी। लेकिन वो सब कुछ भूल सकते हैं पर यह छतरी नहीं। आज भी इस छतरी को देखते ही उन का चेहरा खिल गया और वे हंसते हुए रोहन के साथ घर वापस आ गये।

