थर्ड जेंडर
थर्ड जेंडर
"जब मेरे हाथों में मेरी पहली कमाई थी ,तब दो नहीं सैंकड़ों आँखें मुस्कुराई थी। क्यूँकि यह मैंने इज़्ज़त से कमाई थी और उन आँखों के सपनों को एक नयी परवाज़ दी थी ;जीने की एक नयी राह दिखाई थी। ",रेशमा ने अपनी गीली हो उठी ,आँखों के कोरों को पोंछते हुए कहा।
"रेशमा जी आपकी हिम्मत क़ाबिले तारीफ है। आप हम सभी के लिए प्रेरणा की स्त्रोत हैं। विपरित परिस्थितियों में लोग या तो छोड़ देते हैं या टूट जाते हैं ,लेकिन आपने अर्जुन की तरह मछली की आँख पर लक्ष्य बनाये रखा। आपके भावी जीवन के लिए हार्दिक शुभकामनायें। ",टीवी एंकर ने ऐसा कहकर रेशमा को अपने शो से विदाई दी।
रेशमा जब अपने घर पहुंची ,तब सब लोगों ने उसे घेर लिया।
"बहुत बढ़िया लग रही थी। ",किसी ने कहा।
"अब तो यहाँ के सब बच्चे पढाई करेंगे। ",दूसरी ने कहा।
"रेशमा की उपलब्धियों के बाद अब शायद किसी बच्चे को अपना परिवार छोड़कर हमारी दुनिया का हिस्सा न बनना पड़े। ",एक ने गहरी सांस लेते हुए कहा। उसकी आवाज़ में अपने परिवार से बिछड़ने के दुःख को आज भी महसूस किया जा सकता था।
तभी उनकी मुखिया ने प्रवेश किया और रेशमा को गले लगाते हुए कहा ,"तुने जो कहा कर दिखाया। मेरी शंकाओं को निर्मूल साबित कर दिया। "
सभी लोगों ने रेशमा की उपलब्धियों का जश्न मनाया। आज उनके गीतों में एक अलग ही तरह की ख़ुशी थी। लजीज पकवानों का आनंद लिया और आज जैसा स्वाद तो उन्हें कभी आया ही नहीं था। अभी तक दूसरे लोगों की खुशियों में शामिल होकर बधाइयाँ गाने वालों ने आज अपने लिए बधाइयाँ गायी। थक कर चूर होकर सभी लोग अपने -अपने कमरों में चले गए थे और नींद के आगोश में समा गए।
रेशमा भी एक व्यस्त दिन के बाद काफ़ी थका हुआ महसूस कर रही थी ;लेकिन बिस्तर पर लेटने के बाद भी नींद उससे कोसों दूर थी। ज्यादा ख़ुशी हो या ज्यादा दर्द या ज्यादा दुःख सभी हमारी नींद को उड़ा देता है। हम इंसान अतिरेक किसी भी चीज़ का बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं।
रेशमा की काया तो आराम कर रही थी ,लेकिन उसके मस्तिष्क को कहाँ आराम था। मस्तिष्क तो अपने विचारों के घोड़ों को दौड़ाता ही रहता है। विचार या तो अतीत के होते हैं या उनमें सुखद भविष्य की कल्पनाएं रहती हैं। रेशमा को अपने अतीत की घटनाएं एक -एक करके याद आने लगी थी। तब उसका नाम रेशमा नहीं अमर था।
एक सामान्य परिवार में जन्मा अमन में बचपन से कुछ असामान्य था। उसकी माँ उसे कभी भी किसी के घर रुकने के लिए नहीं भेजती थी।अमन एक संयुक्त परिवार का सदस्य था । उसके दूसरे भाई -बहिन जहाँ रिश्तेदारों के घर जाते और रुकते ,वहीँ अमन कभी नहीं जाता था । अमन को स्कूल में डाल दिया गया था ;वह पढ़ने में अच्छा था । स्कूल में कुछ बड़े बच्चे उसे छक्का -छक्का कहकर चिढ़ाते थे। जब वह घर पर अपनी मम्मी को आकर बताता तो उसकी माँ की आँखों के आँसू लाख छिपाने की कोशिशों के बाद भी उसे दिख जाते थे।
अमन को जल्द ही इस शब्द का अर्थ समझ आ गया ,जब शादी -ब्याह ,जन्म आदि के अवसर पर आने वाले उन लोगों का समूह एक दिन उसके घर आया। अमन को उस समूह से शुरू से ही डर लगता था ,वह सिर पर पल्ला लेकर खड़ी उसकी माँ के पीछे डर से छुप गया था। वे लोग उसके दादाजी और पापा से बात कर रहे थे और बार -बार उसी की तरफ इशारा कर रहे थे। अमन इतना तो समझ गया था कि उसी के बारे में बात कर रहे हैं। अमन की माँ मुँह में आँचल दबाये रो रही थी ;अमन माँ की हिचकियों की आवाज़ सुन पा रहा था ।लेकिन वह माँ के रोने का कारण नहीं समझ पाया था ।
6 महीने बाद जब अमन की गर्मियों की छुट्टियाँ आयी ,तब उसे माँ के रोने का कारण समझ आ गया था। वह समूह इस एक बार दोबारा घर आया। पिछले बार उसके पापा ने उसकी पाँचवी तक की शिक्षा पूरी हो जाने तक की मोहलत मांगी थी। अब वह समय बीत गया था। इस बार समूह ने उसे अपने पास बुलाया और वह डरते -डरते उनके पास गया । समूह की मुखिया ने उसके सिर पर हाथ फेरा।
समूह उसे अपने साथ ले जाने लगा। अमन ने ज़ोर -ज़ोर से रोना शुरू कर दिया था ;उधर उसकी माँ भी रो रही थी। लेकिन सब मजबूर थे ,अमन रेशमा बनकर उस समूह के साथ हमेशा -हमेशा के लिए आ गया था। कुछ दिन रेशमा वहाँ उदास रही ,रोना -पीटना जारी रहा। लेकिन फिर उसने धीरे -धीरे उस ज़िन्दगी को स्वीकार कर लिया।
"छोरी ,तू दोबारा पढ़ेगी ?",मुखिया ने एक दिन रेशमा से पूछा।
"हाँ ,मुझे पढ़ -लिखकर डॉक्टर बनना है। ",रेशमा ने कहा।
कभी नियमित और कभी स्वयंपाठी विद्यार्थी के रूप में पढ़कर रेशमा ने अपनी स्कूलिंग पूरी की। हर जगह उसे सभी तरीके के लोग मिले। कुछ ने उसे प्रोत्साहित किया ,कुछ ने चिढ़ाया ,कुछ ने शोषण करने की कोशिश भी की। लेकिन वह नहीं रुकी ,उसे इज़्ज़त की दो रोटी कमानी थी। वह भिक्षावृति ,वेश्यावृत्ति ,अनचाही मेहमान बनने का काम नहीं करना चाहती थी। वह सभ्य समाज का हिस्सा बनना चाहती थी। वह लोगों को बताना चाहती थी कि अवसर मिले तो हम लोग भी दूसरे लोगों की तरह जी सकते हैं।
जब भी वह किसी फॉर्म को भर्ती जेंडर का कॉलम उसे चिढ़ाता सा प्रतीत होता था। मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के साथ ही उसने थर्ड जेंडर को मान्यता देने की मुहिम छेड़ दी थी। उसे जब डिग्री मिली ,उस पर थर्ड जेंडर लिखा हुआ था। रेशमा ने M D किया और बच्चों की डॉक्टर बन गयी। आज वह एक मशहूर डॉक्टर थी और उसे एक टीवी शो में बुलाया गया था। आज रेशमा जीत गयी थी।
रेशमा ने ख़ुशी में उसकी आँखों से छलके २ बूंदों को हथेली में थामकर सीने से लगा लिया था।
