तेरे प्यार से इनकार नहीं

तेरे प्यार से इनकार नहीं

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नजरों को तेरे प्यार से इनकार नहीं है

अब मुझे किसी और का इन्तजार नहीं है

खामोश अगर हूं मैं तो ये वजूद है मेरा

तुम ये न समझना कि तुमसे प्यार नहीं है


इस बार अपनी छुट्टियाँ खत्म होने पर वापस लौटने से पहले उसने हिम्मत कर, उसे अपने मन की बात कह ही डाली। उसकी बात सुनकर वह जोर से हँस पड़ी। उसके गुलाबी गालों पर पड़े गड्ढे उसे एक बार फिर लुभा गए।

‘दोस्ती को प्यार में बदलना चाहते हो? ऐसा तो क्या देख लिया तुमने अमन मुझ में?’ वह मुस्कुराकर पूछने लगी।

‘तुम्हारे नाम में ही कशिश है। बस! खींचा चला आता हूं तुम्हें देखकर। ’ कहते हुए उसने उसकी कोमल हथेली अपने हाथ में ले ली।

‘अमन, बचपन से लेकर अब तक की दोस्ती तक सब ठीक था। इससे आगे प्यार की राह पर चाह कर भी मैं तुम्हारे साथ नहीं चल सकती। डरती हूं। ’ उसने अपना हाथ उसके हाथ से छुड़ाते हुए जवाब दिया। अमन ने महसूस किया ऐसा कहते हुए उसे बड़ी मुश्किल हो रही थी।   


‘क्यों कशिश, मेरे मर जाने का डर लगता है?’ 

‘खबरदार जो ऐसा कहा तो?’ कशिश ने अमन के होठों पर अपनी उंगली रखते हुए आगे कहा, ‘दिल की बातों का मतलब हर बार नहीं पूछा करते अमन। थोड़े में समझ जाओ। ’

‘कशिश, मानता हूं कि वक्त हर किसी का नहीं हो सकता लेकिन प्यार तो हर किसी का हो सकता है न ?’ कशिश की बात सुनकर अमन ने एक बार पूरे विश्वास से उस पर एक नजर डाली। उसकी आशा के विपरीत बात का जवाब दिए बिना कशिश वहां से उठकर चुपचाप चली गई। चलते हुए वह पुरानी वाली गली में मुड़ गई जहां से शाम ढले घंटियों की सुमधुर ध्वनि सुनाई दे रही थी और उसके पीछे चला आ रहा अमन थोड़ी दूर और आगे चलकर एक जालीनुमा इमारत में जमा भीड़ का हिस्सा बन गया।  


दो दिनों बाद अमन मन में अपने प्यार को लेकर ढेरों सवाल लिए हुए गुमसुम सा वापस ड्यूटी पर चला गया।

आज एक खबर पाकर सारा शहर ग़मगीन था। देश का एक लाडला माँ के चरणों में क़ुर्बान हो चुका था। खबर उसने सुनी तो वह भी व्यथित हो गई। तिरंगे में लिपट कर जब उसकी देह शहर में आई तो सारे शहरवासियों की आँखें गीली हो गई। तिरंगे के केसरी और हरे रंग से लिपटा अमन सच में शान्ति का प्रतीक बन श्वेत आभा सा दमक रहा था। देशप्रेम का रंग तिरंगा जो था।

 

केसरी चुनरी ओढ़े कशिश हाथ में पुष्प गुच्छ लिये अमन की शहादत पर प्रेम के आँसू बहाती हुई चुपचाप उसकी तस्वीर को नमन कर वहां से निकल गई। सहसा उसे कानों में एक आवाज़ गूंजती हुई सुनाई दी। पीछे मुड़कर देखा तो तस्वीर में मुस्कुराता हुआ अमन अब भी उसे पूछ रहा था -    

'वक्त हर किसी का नहीं हो सकता लेकिन प्यार तो हर किसी का हो सकता है न कशिश ?'

कशिश अब भी मौन थी। उनके प्रेम में केसरी और हरे रंग के बीच सफेद रंग जो न था।



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