रिसते घाव- भाग ३
रिसते घाव- भाग ३


सुरभि के पार्थिव देह को अग्नि के हवाले सौंपकर श्मशानगृह लौटते हुए सुबह के ग्यारह बज चुके थे। कुछ नाते रिश्तेदार श्मशानगृह से ही विदा लेकर अपने रास्ते रवाना हो गए थे और कुछ श्वेता को सांत्वना देने के बाद घर से लौट रहे थे। इन सबके बीच राजीव घर के बाहर लगी कुर्सी पर बैठा हुआ किसी गहरे विचार में खोया हुआ था। उसकी आँखों के आगे सुरभि के संग बिताएं एक एक दिन किसी ताजी घटना की भांति घूम रहे थे। उम्र में दो साल बड़ी सुरभि का वह बहुत सम्मान करता था। सुरभि की वजह से ही आज उसकी खुद की जिन्दगी की खुशहाली बनी हुई थी। पुरानी बातों को यादकरते हुए उसकी आँखों से बरबस आँसू बहने लगे।
‘दीदी, इस घर में मुझे कोई समझता ही नहीं। रागिनी से तो आप भी मिल चुकी है। मम्मी पापा की उसे नकारने की एक भी सही वजह हो तो मुझे बताइयें।’ २३ वर्षीय राजीव सुरभि के सामने बैठा हुआ अपनी जिन्दगी की कश्मकश को लेकर सवाल जवाब कर रहा था।
‘मेरे भाई, शादी किसी एक व्यक्ति के निर्णय पर नहीं की जाती। शादी से एक पूरा परिवार जुड़ता है।’ सुरभि ने राजीव को समझाने का यत्न किया।
‘जिसे शादी करना है अगर उसकी ही पसंद के पात्र से शादी न हो तो क्या वह जिन्दगी जीने जैसी रह जाती है दीदी ? आपको क्या मिला अपने अरमानों का गला घोंटकर ? आज अपनी जिन्दगी अकेले ही जी रही है न। बेहतर होता आपके वक्त आपने भी मुंह खोला होता।’ आवेश में आकर राजीव ने जैसे सुरभि के रिसते हुए घावों को छेड़ दिया।
‘राजीव, जिन्दगी नसीब की भी बात होती है। मैं जैसे भी हूँ श्वेता के साथ अपनी जिन्दगी से खुश हूँ। उनसे शादी करने के फैसले में मम्मी पापा की सहमति के संग मेरी भी सहमति थी और फिर उन्हें छोड़ने का फैसला मेरा अपना था। तेरे संग ऐसा कुछ न हो इसी खातिर मम्मी पापा तेरे रिश्ते को लेकर बहुत ज्यादा पजेसिव हो रहे है।’
‘दीदी, आप थोड़ा भार देकर समझाएंगी तो मम्मी मान जाएगी और एक बार मम्मी मान गई तो वे पापा को भी मना ही लेगी। मैं सच में रागिनी के बिना अपनी आगे की जिन्दगी की कल्पना नहीं कर सकता।’ सुरभि की बात सुनकर राजीव का आक्रोशभरा स्वर अब एक विनति में बदल गया था।
‘तुझे पूरा यकीन है रागिनी तेरे संग मम्मी पापा को भी सम्हाल लेगी ?’ सुरभि ने राजीव को घूरते हुए देखा।
‘माँ बाप और पत्नी के सम्बन्धों के बीच सामंजस्य रखना पुरुष का का काम होता है। मैं दोनों रिश्तों को निभाने में कभी कमजोर नहीं पडूँगा यह वादा है दीदी। बस ! आप एक बार मम्मी पापा को मना लीजिए।’
‘ठीक है मेरे लाड़ले भाई। तुझे अपने प्यार पर इतना ही विश्वास है तो तेरा प्यार ही तेरी जिन्दगी बनेगा।’ कहते हुए सुरभि ने राजीव के बालों को सहलाया और वहाँ से उठकर चली गई।
राजीव को सहसा महसूस हुआ जैसे आज एक बार फिर वही हाथ उसके बालों को हौले से सहला गया।
‘पापा, मम्मी आपको अन्दर बुला रही है।’ तभी आकृति का स्वर कानों में पड़ते ही राजीव जैसे एक गहरी नींद से बाहर निकल आया। वह आँखों से गिरती आँसुओं की बूंदों को पोंछता हुआ आकृति के पीछे घर के अन्दर चला गया।