बड़ौदा से भरूच तक

बड़ौदा से भरूच तक

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बड़ौदा-भिलाड एक्सप्रेस के प्लेटफार्म नम्बर ३ पर आते ही प्लेटफार्म पर खड़े यात्रियों में चहल पहल बढ़ गई। प्लेटफार्म नम्बर १ पर खड़ी वह पक्के तौर पर निर्णय नहीं कर पा रही थी कि प्लेटफार्म नम्बर ३ पर आ चुकी बड़ौदा-भिलाड एक्सप्रेस में चढ़े या प्लेटफार्म नम्बर १ पर आ रही कर्णावती एक्सप्रेस में चढ़ने की हिम्मत करे।

उसके सामने से गुजरती कर्णावती एक्सप्रेस के जनरल कोच पर उसने नजर डाली। कोच में पहले से मौजूद लोग और प्लेटफार्म पर ट्रेन में चढ़ने को आतुर जमा भीड़ देखकर उसकी हिम्मत पस्त हो गई। उसने अपनी कलाई में बंधी घड़ी पर नजर डाली।

‘६.५० हो रहे है। भिलाड एक्सप्रेस तो ७.०५ को निकलेगी। १५ मिनिट में तो मम्मी को लेकर प्लेटफार्म नम्बर ३ पर पहुँच ही जाऊँगी।’ मन ही मन वह बुदबुदायी। एक हाथ से उनसे नीचे रखा बैग उठाकर अपने कंधे पर लटकाया और दूसरे हाथ से अपने पास खड़ी उस वृद्धा का हाथ पकड़ लिया।

‘मम्मी, इस ट्रेन में बहुत भीड़ है। हम उस तरफ प्लेटफार्म नम्बर ३ पर खड़ी ट्रेन से जाते है। वह यहाँ से ही निकलती है तो उसमें बैठने की जगह आसानी से मिल जाएगी।’ उसने कहा।


काली मोटी फ्रेम के चश्मे से झाँकते हुए सफेद सूती साड़ी पहने उस वृद्ध औरत ने उसे देखा और हामी में सिर हिला दिया।

प्लेटफार्म नम्बर ३ की ओर की सीढ़ियां जब तक वह उतरी तब तक ७ बज चुके थे। ज्यादा जद्दोजहद किए बिना वह सीढ़ियों के पास वाले कोच में ही उस वृद्धा को लेकर चढ़ गई।

‘भाई साहब, यहाँ कोई बैठा है क्या ?’ दरवाज़े के पास की पहली सीट पर एक जगह खाली पाकर उसने वहाँ बैठे यात्री से पूछा।

‘जी, रिजर्व है। वह अभी आता ही होगा।’ बीस- बावीस वर्ष के उस युवक ने उसे देखते हुए जवाब दिया।

‘लेकिन ये तो जनरल कोच है, रिजर्व कैसे हो सकता है ?’

‘हम लोग रोज इसी ट्रेन से मुसाफिरी करते है। एक दूसरे की जगह रोक कर रखते है।’ उस युवक ने उसे घूरते हुए जवाब दिया। 

‘भैया, थोड़ी जगह कर मांजी को बैठने दीजिए।’ उसने उस युवक से विनती की।

‘आप क्यों बहस कर रही है ? आगे देखिए न, खाली सीट मिल जाएगी।’ झुंझलाकर उस युवक ने जवाब दिया।

उसका जवाब सुनकर वह आगे बढ़ गई।

‘भाई साहब, सीट पर रखा ये बैग आपका है ?’

‘हाँ, तो ?’

‘हटा लीजिए तो ये मांजी यहाँ बैठ पाएंगी।’ उसने विनती भरे स्वर में कहा।

‘बहनजी, सीट चाहिए तो जल्दी आना चाहिए। हम रोज अप डाउन इसी ट्रेन से करते है। अपने साथी के लिए रोक रखी है यह जगह।’ उस यात्री से रुक्षता भरा जवाब सुनकर मायूस होकर वह आगे बढ़ गई।

सामने की सीट पर दो खाली सीटें देखकर उसकी आँखों में चमक आ गई। वह फुर्ती से उस ओर बढ़ी।

‘खाली है। आप बेशक बैठ सकती है।’ उसके कुछ पूछने से पहले ही खिड़की वाली सीट पर बैठा हुआ वह नौजवान उसे देखकर मुस्कुराया।

‘थैंक्स।’ वह मुस्कुराई और कंधे पर लटकाया बैग सीट पर रखकर अपने पीछे खड़ी उस वृद्धा को उसने उस नौजवान के पास बिठा दिया। उस नौजवान ने अपनी बगल वाली सीट पर बैठ चुकी उस वृद्धा की ओर देखा, फिर दूसरे ही क्षण जेब से इयर फोन निकालकर उसे मोबाइल के साथ कनेक्ट कर उसे अपने कानों में लगा लिया।


अब तक बैग ऊपर रखकर वह उस वृद्धा के बगल में अपनी जगह ले चुकी थी। तभी एक झटका लगा और ट्रेन धीमी गति से आगे सरकने लगी। वह खिड़की से पीछे छूटते हुए बड़ौदा रेलवे स्टेशन को हसरत भरी निगाहों से देखने लगी। 

पाँच साल पहले रोहन की असमय मौत के बाद असहाय भरी स्थिति में इसी ट्रेन में बैठकर उसने बड़ौदा हमेशा के लिए छोड़ा था। पाँच साल के बाद आज परिस्थिति एक बार फिर उसे बड़ौदा खींच लाई थी। उसने अपने पास बैठी वृद्धा की ओर नजर डाली। वह सीट पर सिर टिकाकर आँखें बंद कर कुछ सोच रही थी। उसकी बंद आँखों के कोनों में उभर आये आँसू उससे छिपे नहीं रख सके। उसने अपनी हथेली उस वृद्धा की हथेली पर रख दी।

उसके हाथ का स्पर्श पाकर उस वृद्धा ने आँखें खोलकर चश्मा उतारकर साड़ी के पल्लू से आँखों में उभर आए आँसुओं को पोंछा और फिर से चश्मा चढ़ा लिया। आँखों के इशारों से उसने उसे हिम्मत रखने को कहा। वह उसकी तरफ देखकर मुस्कुरा दी।


तभी झोपड़ियों के पास से सरकती हुई ट्रेन में बाहर डी जे पर बज रहे ‘आज मेरे यार की शादी है’ गाने की धुन उसके कानों में पड़ी। उसने खिड़की की ओर नजर की। कुछ ग़रीब लोग अपनी ही मस्ती में नाच कूद रहे थे। ट्रेन तेजी से वहाँ से निकल गई और गाने की आती आवाज़ धीमे धीमे सुनाई देना बंद हो गई।

पाँच मिनिट में ही ट्रेन विश्वामित्री स्टेशन पर आकर रुक गई। उसने गौर किया, कुछ नौजवान इस स्टेशन से चढ़कर खाली पड़ी सीटों पर बैठ गए। दो मिनट रुकने के बाद ट्रेन धीमे धीमे आगे बढ़ने लगी। तभी उसकी हमउम्र एक युवती आठ साल की बच्ची को लेकर कोच में दाखिल हुई। वह शायद लेट होने की वजह से दौड़कर ट्रेन में चढ़ी थी। उसकी तेज गति से चलती साँसों को देखकर उसने अनुमान लगाया।

उस युवती ने पूरे कोच में अपनी नजरें दौड़ायी। सुबह की ट्रेन होने से कोच में अधिकांश मुसाफिर बड़ौदा से भरूच या सूरत तक अप डाउन करने वाले पुरुष थे। कोच में सफर कर रही पाँच – छह महिलाओं के बीच उसे यही जगह खड़े होने के लिए ज्यादा अनुकूल जान पड़ी। ट्रेन अपनी रफ्तार पकड़ चुकी थी। कुछ देर खड़े रहने के बाद उस युवती ने उसकी ओर देखा। दोनों की नज़रें एक हुई।

‘बहन जी। थोड़ी सी जगह कर बच्ची को बिठा लीजिये प्लीज।’ उस युवती ने अपनी बच्ची के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा। वह थोड़ा बाहर की ओर खिसक गई और बच्ची को अपने और उस वृद्धा के बीच बिठा लिया। वह युवती उसकी ओर देखकर मुस्कुराई और संयत होकर सीट का सहारा लेकर खड़ी रह गई।

कुछ मुसाफिर आपस में बतिया रहे थे। कुछ अखबार पढ़ रहे थे। उसके सामने की सीट पर बैठे दो सहयात्री पुरुष आँखें बंद कर बैठे थे तो उनके बीच बैठा युवक अखबार पढ़ने में व्यस्त था। उसने अपनी आँखें बंद कर ली पर तभी उसके पास बैठी बच्ची के हाथ का स्पर्श पाकर उसने उसकी ओर देखा।

‘आंटी, ये आपकी मम्मी है ?’ उस वृद्धा की ओर इशारा कर उस बच्ची ने पूछा।

‘हं।’ बच्ची द्वारा अचानक पूछे गए सवाल को सुनकर वह तुरन्त जवाब नहीं दे पाई।

‘दादी, आप इन आंटी की मम्मी है न ?’ उससे कुछ जवाब न पाकर उसने उस वृद्धा का हाथ पकड़कर पूछा। जवाब में उस वृद्धा ने बच्ची के सिर पर प्यार से हाथ फेर दिया।

‘सिम्मी, चुप बैठो। आंटी और दादी को परेशान मत करो।’ उसके पास खड़ी उस युवती ने आँखें दिखाते हुए बच्ची धमकाया।

‘नहीं नहीं, कोई बात नहीं। बोलने दो इसे।’ उसने अपने पास खड़ी उस युवती की ओर देखा और दूसरे ही क्षण उस बच्ची के गाल पर हाथ फेर कर पूछा।

‘कहाँ जा रही हो सिम्मी ?’

‘मामा के यहाँ। बिट्टो के संग खेलने।’ बच्ची ने चहकते हुए जवाब दिया।

‘अच्छा ! बिट्टो कौन है ?’

‘मेरे मामा बिट्टो के पापा है। आपको पता है आंटी, मेरे मामा पुलिस है।’ कहते हुए बच्ची की आँखों में चमक आ गई।

‘अरे वाह ! ये तो बड़ी अच्छी बात है। फिर तो उनकी बड़ी सी मूंछ होंगी, नहीं ?’ वह बच्ची की बातों में रस लेने लगी।

‘नहीं। मेरे मामा अच्छे है न, इसलिए मूंछ नहीं रखते।’ बच्ची का जवाब सुनकर वह मूंछ और अच्छाई के बीच रहा भेद नहीं समझ पाई।

‘जिनकी मूंछ होती है न, वह गंदे होते है। वह सबको मारते और डांटते रहते है।’ बच्ची ने बड़ी ही मासूमियत से अपनी बात का खुलासा किया।

उसने गौर किया कि सारे दाढ़ी मूंछधारी बैठे पुरुषों की निगाहें उस बच्ची की ओर टिक गई। वे सभी शायद यह जानने को उत्सुक थे कि मूंछे भला गन्दे होने का प्रतीक कैसे हो सकती है।

‘सिम्मी, अपना मुँह बंद रखो।’ बच्ची की मम्मी ने बच्ची को घूरा।

‘बच्ची है, बोलने दीजिए। बड़ी प्यारी बातें करती है।’ उसने उस युवती को टोका।

‘आंटी, आप भी अपनी मम्मी के साथ मामा के घर जा रही है ?’

‘नहीं बेटी, हम अपने घर जा रहे है।’ उसने जवाब दिया।

‘कहाँ ?’

‘भरूच।’

‘भरूच !’ बच्ची को जवाब में कोई मजे की बात नहीं मिली।

‘आंटी, आपके पापा की मूंछें है ?’

‘पता नहीं बेटी। अब तो वो भगवान के घर चले गए।’ उसे बच्ची के संग बातें करते हुए मजा आ रहा था।

‘क्यों चले गए ?’

‘आप अभी ये सब जानने के लिए बहुत छोटे हो।’ उसने जवाब दिया। तभी उस वृद्धा ने अपने साड़ी के पल्लू की गाँठ खोलकर उसमें से एक चॉकलेट निकालकर उस बच्ची की ओर बढ़ा दी।

बच्ची ने अपनी मम्मी की ओर देखा। आँखों के इशारे से उस युवती ने चॉकलेट लेने की सहमति दे दी। बच्ची ने झपटकर चॉकलेट अपने हाथ में ले ली।

‘थैंक्यू यू दादी। आप बहुत अच्छी है। मेरी दादी तो कभी भी मुझे चॉकलेट नहीं देती।’

‘सिम्मी। नो बेटा।’ आँखों से इशारा कर उस युवती ने बच्ची को चुप रहने को कहा।

बच्ची के चुप होते ही कम्पार्टमेन्ट में शान्ति छा गई। चॉकलेट खा लेने के बाद कुछ देर चुप रहने के बाद वह बच्ची परेशान हो उठी।

‘आंटी, आपको पता है मेरे पापा की मूंछ है और वे मम्मी को ...’

‘सिम्मी। चुप रह। एक बार में समझ नही आता तुझे।’ बच्ची ने कुछ कहने का प्रयास किया पर उस युवती ने डांटकर उसे चुप करा दिया। बच्ची एक बार फिर से चुप हो गई।


तभी ट्रेन की गति धीमी हो गई और धीमे धीमे सरकते हुए एक स्टेशन पर आकर रुक गई। ट्रेन में से एक दो पुरुष उठकर उतर गए और कुछ लोग चढ़ गए। उसने खिड़की से बाहर देखा। स्टेशन छोटा था। यात्रियों की चहल पहल भी कम थी। तभी खिड़की के पास बैठा वह नौजवान उठकर उतर गया। बच्ची ने फुर्ती से उठकर खिड़की के पास वाली सीट हथिया ली। वह युवती उसके पास आकर बैठ गई। 

बच्ची खिड़की से बाहर के दृश्य देखने में व्यस्त हो गई। तभी एक हल्का सा झटका लगा और ट्रेन धीरे धीरे आगे बढ़ने लगी।

‘कहाँ उतरना है तुझे बेटी ?’ अब तक चुपचाप बैठी उस वृद्धा ने उस युवती से पूछा।

‘सूरत।’ उस युवती ने जवाब दिया।

‘छुट्टियां बिताने जा रही है अपने मायके ?’ बच्ची द्वारा अब तक कही गई बातों से अनुमान लगाते हुए उसने पूछा।

‘....जी।’ कुछ देर चुप रहने के बाद उस युवती ने जवाब दिया।

‘तू हिम्मत रख। सब ठीक हो जाएगा।’

उस वृद्धा की बात सुन आश्चर्य से उस युवती ने उसकी ओर देखा।

‘’मायके जाते हुई हर स्त्री के चेहरे पर एक अलग ही तरह की खुशी झलकती है। तेरी सूजी हुई आँखें और उदास चेहरा तेरे ससुराल में तेरे संग कुछ ठीक न होने की गवाही दे रहे है। फिर तेरी बेटी की मासूम बातों ने इस बात की पुष्टि भी कर दी।’ उस वृद्धा ने आगे कहा।

उसकी बात सुनकर उस युवती की आँखों में आँसू उमड़ आये।


‘मम्मी, मुझे चाय पीना है।’ तभी उस कम्पार्टमेन्ट से गुजरते हुए चाय वाले को देखकर उस बच्ची ने ज़िद की।

‘अभी एक घण्टें में मामा के घर पहुँच जाएंगे। वहाँ जी भरकर चाय और दूध पी लेना।’ उस युवती ने उसे समझाया।

‘नहीं। मुझे अभी ही पीना है। आपने घर पर भी मुझे दूध नहीं दिया।’ बच्ची अपनी ज़िद पर अड़ी रही।

‘सिम्मी, ज़िद मत कर। चुपचाप बैठ वरना मार खायेगी।’ उस युवती ने अपना हाथ दिखाते हुए उसे डांटा।

बच्ची सहमकर कुछ देर चुप बैठी रही।

‘मम्मी !’ फिर अचानक वह ज़ोर से चीखी।

‘अब क्या है ?’ उस युवती ने झुंझलाते हुए पूछा।

‘पापा मामा के घर आकर मारेंगे तो नहीं न ?’

उस युवती ने बच्ची को अपने नज़दीक खींच लिया और उसका सिर अपनी गोद में रखकर उसे प्यार से सहलाने लगी।

अब तक मन में दबा रखी पीड़ा अपने पास बैठी अनजान वृद्धा से थोड़ी सी हमदर्दी पाकर आँसुओं के रुप में छलक कर स्पष्ट रुप से बहने लगी। 

‘दस साल से उनकी बदसलूकी सहन करती आ रही हूँ। पर आज तो उन्होंने बेशर्मी की सारी हदें पारकर मेरी बच्ची पर भी हाथ उठाया। अब जीने का सारा हौसला ही खत्म हो गया। इसे मामा के पास छोड़ने जा रही हूँ। यह साथ रही तो कुछ नहीं कर पाऊँगी।’ साड़ी के पल्लू से आँसुओं को पोंछते हुए वह युवती एक ही सांस में अपनी जिदंगी का सार व्यक्त कर गई।



‘ये मेरी बेटी है।’ उस वृद्धा ने दूसरी ओर उसकी तरफ इशारा कर कहा तो वह आश्चर्य से उसे देखने लगी।

‘इसकी शादी के बाद से ही इसके ससुराल वालों ने इसे अपनाया नहीं क्योंकि इसने सबकी मर्ज़ी के परे जाकर लव मैरिज की थी।’ उसकी परवाह न करते हुए उस वृद्धा ने अपनी बात चालू रखी।

‘इसकी सास इसे बहुत परेशान करती थी। उसने पति पत्नी के बीच झगड़े भी बहुत करवाये पर परिवार की शान्ति बरकरार रखने के लिए इसने आह तक नहीं की। दो साल तक बहुत सहन किया इसने फिर ....’ कहते हुए वृद्धा चुप हो गई।

‘फिर ?’ उस युवती ने उस वृद्धा की ओर देखा।

‘एक एक्सीडेंट में इसके पति की मौत हो गई।’ कहते हुए उसकी आँखें भर आई। उस युवती धीमे से उसका हाथ सहलाया। अपने साथ सफर कर रही अपनी ही हमउम्र स्त्री का संघर्ष और दुख जानकार वह अपना दुख भूल गई।


तभी एक और स्टेशन आते ही ट्रेन धीमी पड़ गई। खिड़की से बाहर उसे स्टेशन पर बुरखा पहने कुछ औरतें खड़ी दिखाई दी। दो मिनट ट्रेन रुककर आगे बढ़ने लगी। पालेज स्टेशन पीछे छोड़ ट्रेन आगे बढ़ गई।

‘मुझे लग रहा था कि इस दुनिया में मैं ही सबसे ज्यादा दुखी हूँ। मेरे पास कहने को ही सही परिवार तो है।’ वह बुदबुदायी।

‘परिवार इसके पास भी था पर पति की मौत के बाद ससुराल वालों ने इसे घर से निकाल दिया। अकेली ही थी वह उस कठिन समय में। अपना मायका तो शादी करने के बाद ही हमेशा के लिए छोड़ आई थी। इसने हिम्मत नहीं हारी। आज भरूच में एक अच्छी कम्पनी में नौकरी कर रही है और स्वमान से जी रही है।’ कहते हुए उस वृद्धा की आँखों में चमक आ गई।


उसकी बातें सुनकर वह युवती कुछ सोचने लगी।

‘जिन्दगी जीने के और भी कई रास्ते होते है। इसे असमय खत्म देने से समस्या का हल नहीं होता है।’ उस युवती के मन में चल रहे भावों को जैसे उस वृद्धा ने पढ़ लिया।

‘आपकी बातों से मुझे जीने का हौसला मिल गया। मन में कई तरह के गलत विचार आ रहे थे। शायद आज मेरी कहानी का अंत ही आ जाता।’ उस युवती चेहरे पर छाई उदासी अब दूर होने लगी थी।

‘पर इसकी कहानी अभी पूरी नहीं हुई।’ उस वृद्धा ने कहा।

वह आगे की बात जानने को उत्सुक हो गई।


‘फिर इसके ससुर की मौत के बाद एक साल पहले इसकी सास को उसका छोटा बेटा वृद्धाश्रम में छोड़ आया था। इसे जब पता चला तो पुरानी सारी बातें भूलकर भरूच से बड़ौदा दौड़ी चली गई और सास को अपने साथ रहने के लिए ज़िद कर ले आई।’ अपनी बात पूरी कर वह चुप हो गई।

‘मांजी, आप सौभाग्यशाली है जो ऐसी गुणी बेटी पाई।’ उस युवती ने कहा।

‘इसकी माँ तो आज बनी हूँ। अब तक तो इसकी सास ही थी।’ कहते हुए उसके चेहरे पर शान्ति प्रसर गई।


तभी ट्रेन के भरूच स्टेशन के नज़दीक पहुँचने पर उतरने वालों की हलचल बढ़ गई। खड़े होकर उसने बैग उठाया और अपनी सास का हाथ पकड़कर दरवाज़े की तरफ चली गई।

उस वृद्धा ने पीछे मुड़कर उस युवती की ओर देखा। जवाब में वह अपनी बच्ची का हाथ थाम कर मुस्कुरा दी। 


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