Ashish Dalal

Romance Tragedy

3  

Ashish Dalal

Romance Tragedy

रिसते घाव (भाग ४ )

रिसते घाव (भाग ४ )

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रागिनी सिर पर पल्लू डालकर दीवार का सहारा लेकर चुपचाप बैठी हुई थी। आकृति अन्दर आकर श्वेता के पास बैठ गई। रागिनी से कुछ दूरी बनाकर दो चार औरतें उसके संग बैठी हुई थी। राजीव ने कमरे में प्रवेश कर वहाँ मौजूद सभी चेहरों पर नजर डाली। अपनी चचेरी बहन सोनाली को देखकर उसने नमस्कार की मुद्रा में अपनी दोनों हथेलियाँ जोड़ ली। सुरभि की अंतिम यात्रा की तैयारी की आपाधापी में राजीव हर आने जाने वाले रिश्तेदारों की उपस्थिति को भी नोटिस कर रहा था पर उसे ध्यान नहीं आ रहा था कि सोनाली कब आई। प्रत्युत्तर में सोनाली ने अपना सिर हिला दिया। सोनाली के अलावा रागिनी के संग बैठी हुई रमा काकी से वह सुरभि को अंतिम विदायी देने के वक्त ही मिल चुका था। रमा काकी और सोनाली दोनों माँ बेटी अपने चेहरे पर शोक वाले भाव व्यक्त करने का प्रयास करते हुए साथ साथ ही बैठी हुई थी। उनके पास ही दुलारी मौसी दीवार पर अपना सिर टिका कर गुमसुम अपने ही विचारों में खोई हुई सी बैठी थी।

राजीव को आया देख रागिनी ने आँखों के इशारे से उसे नीचे फर्श पर बैठने को कहा । राजीव जहाँ खड़ा था वहीं चुपचाप पालथी लगाकर बैठ गय।

‘तुम कुछ कहना चाहती थी मुझसे ?’ राजीव ने कमरे में छाये हुए मौन को तोड़ते हुए रागिनी की ओर देखा।

‘हाँ, अब आगे कैसे क्या करना है उसका फैसला लेना होगा न ! मौसी जी और काकी जी दोनों साथ ही है तो सोचा यह बात अभी ही कर ली जाये, इसी से बुलाया था आपको।’ रागिनी ने बारी बारी से रमा काकी और दुलारी मौसी की तरफ देखते हुए राजीव की बात का जवाब दिय।

‘फैसला क्या लेना है अब ? जो कुछ करना है हमें ही करना होगा।’ राजीव ने रागिनी की बात का जवाब दिया और सहसा उसकी नजर सोनाली से मिली।

‘हाँ पर ...सुरभि जीजी सुहागन थी। भले ही ....’

‘देखो रागिनी, तुम क्या कहना चाह रही हो मैं सब समझ गया हूँ। जिस परिवार से उनके जीते जी कोई नाता न रहा तो अब उन्हें उनके आखिरी काम में उन लोगों को शामिल कर मैं सुरभि दीदी का अपमान नहीं करवाना चाहता।’ रागिनी की बात को बीच से ही काटते हुए राजीव बोला और एक बार फिर से उसकी नज़रें सोनाली से जा मिली।

‘बेटा, ये समय बैर भावना रखने का ना है। समझ से ठंडे दिमाग से काम ले।’ तभी रमा काकी ने राजीव को समझाते हुए सलाह दी।

‘माफ करना काकीजी। आप जो चाहती है वह मैं हरगिज न होने दूँगा। मैंने तो उस घर खबर भी न की थी फिर भी जाने कैसे खबर लग गई और लोग झूठा रिश्ता निभाने आ ही पहुँचे।’ कहते हुए राजीव ने सोनाली पर नजर डाली।

‘राजीव, साफ साफ कह दो न कि मेरा यहाँ आना तुम्हें खटक रहा है। मैं रिश्ता निभाने ही आई हूँ लेकिन अपने मायके का। ससुराल की पैरवी करने नहीं आई हूँ यहाँ।’ अब तक चुप बैठी सोनाली की आँखों से आँसू बहने लगे।

‘बात को बढ़ाओं मत मेरे बच्चों। जिसे जाना था वो तो चली गई अब उसके पीछे आपस में लड़कर उसकी आत्मा को तो दुखी मत करों।’ राजीव और सोनाली के बीच दुलारी मौसी ने पड़ते हुए कहा ।

‘मौसी जी, बात तो राजीव बढ़ा रहा है। दूरी तो उसने बनाकर रखी हुई है। भाई होने के नाते कम से कम एक फोन समय पर कर दिया होता आज सुरभि का चेहरा आखरी बार देख तो पाती।’ कहते हुए सोनाली रोने लगी। उसे रोता देख रमा काकी उसकी पीठ सहलाने लगी। तभी आकृति ने आकर उनके हाथ में पानी का गिलास थमा दिया।

‘सोनाली, तेरे और सुरभि के बीच बहन के रिश्ते के अलावा रहे एक और रिश्ते की कड़वाहट से जिन्दगी भर के लिए हाशिये पर धकेल दी गई सुरभि की पीड़ा तू न समझ सकेगी। बेहतर यही होगा कि तू चुप ही रह।’ कहते हुए दुलारी मौसी के चेहरे पर जैसे एक अजीब तरह की कड़वाहट छा गई।

सोनाली और रमा काकी ने तिरछी नजरों से दुलारी काकी को देखा और अपनी जगह से उठ खड़ी हुई।

उन्हें खड़ा होता देख राजीव ने खड़े होकर अपने दोनों हाथ उन्हें देखकर जोड़ दिए। चेहरे पर अपमान सा भाव लेकर दोनों माँ बेटी घर की दहलीज से बाहर निकल गई।

‘राजीव, ये आपने अच्छा न किया। समय की नज़ाकत तो देखी होती।’ सोनाली और रमा काकी के जाते ही रागिनी ने राजीव को उसके व्यवहार के लिए उसे टोका।

‘रागिनी, तुम न समझोगी। वे दीदी की मौत का मातम नहीं जश्न मनाने आई थी। ऐसे रिश्तेदारों से दूर रहना ही बेहतर है। मैं अकेला ही काफी हूँ सबकुछ सँभालने के लिए। प्लीज दीदी के सुहागन होने की बात फिर छेड़कर मेरे मन को खट्टा न करना।’ रागिनी को छुपे शब्दों में एक चेतावनी देकर राजीव कमरे से बाहर निकल गया ।


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