रिसते घाव (भाग ५ )
रिसते घाव (भाग ५ )


कमरे से बाहर निकलकर राजीव बाहर वापस कुर्सी पर जाकर बैठ गया। दुख की घड़ियों में अकेले पड़ने पर इन्सान पुरानी यादों का सहारा लेकर सांत्वना लेने का प्रयास करता है। अभी कुछ देर पहले हुई अनचाही घटना से राजीव फिर से यादों के दलदल में धंसने लगा और उसकी आँखों के आगे सुरभि की जिन्दगी के पन्ने फिर से खुलने लगे।
शादी के एक साल बाद अपने संग ख़ुशियों की लहर लेकर मायके आई सुरभि के मन में रहे घावों को या परिवार वाले महसूस न कर सके या फिर यह सुरभि की अपने मन के भावों को किसी के सामने व्यक्त न होने देने की कुशलता थी। ससुराल में कुछ ठीक न होने पर भी सबकुछ ठीक होने का दिखावा कर उसने हर शादीशुदा लड़की की तरह अपने दुखों को छुपाकर मायके वालों को कुछ गलत होने की भनक भी न पड़ने दी । समय बीतने पर श्वेता का जन्म उसके मन के घावों को मलहम की तरह सहलाने लगा लेकिन वापस ससुराल पहुँचकर उसके घाव जैसे फिर से ताजा होने लगे। पति के संग समय समय पर छोटी छोटी बातों को लेकर होते मनमुटाव झगड़े में बदलने लगे तो उसकी जिन्दगी की सच्चाई के पन्ने जैसे उड़कर मायके खबर कर गए एक बेटी के दुखमय संसार की बातों की ।
‘पापा, दीदी के संग इतना सबकुछ हो रहा है और आप अब भी उन्हें समझाकर वापस उस नर्क में जाने को कह रहे है ? दीदी कहीं नहीं जाएगी ।’ दो दिन पहले पति से एक लम्बे झगड़े के बाद सुरभि के अनायस ही मायके आ जाने के बाद जब पापा ने उस रात खाने के बाद बातचीत के दौरान उसे वापस लौटने को कहा तो राजीव बिफर उठा ।
‘हर किसी की शादीशुदा जिन्दगी में उतार चढ़ाव तो आते ही रहते है। इसका मतलब यह नहीं होता कि रिश्ता ही तोड़ दिया जाए। वैसे भी तू बीच में मत बोल, इन सब बातों को समझने के लिए अभी छोटा है ।’
‘पापा, इतना छोटा भी नहीं हूँ कि यह न समझ सकूँ कि पति पत्नी के बीच होते झगड़े की जड़ को न पकड़ पाऊँ। आपने दीदी की बात पूरी सुनी ही नहीं तो आपको पूरी सच्चाई पता ही नहीं।’ पापा की बात सुनकर राजीव जोर से बोल पड़ा ।
‘राजीव, जिन्दगी में हर समस्या का समाधान होता है। तुझ से पहले हम बैठे है अभी कोई भी फैसला लेने को।’ पिता की बात सुनकर राजीव आगे कुछ बोलने ही जा रहा था कि माँ की आँखों का इशारा पाकर वह चुप हो गया ।
‘एक बार सुरभि के मन की भी तो सुन लो कि वह वाकई में क्या चाहती है ? अपना निर्णय उस पर थोपना ठीक भी तो नहीं ।’ राजीव की बात का मर्म समझते हुए मम्मी ने सुरभि की पैरवी करते हुए सलाह दी।
‘ठीक है । तुम सब लोगों को लगता है कि मैं अपना फैसला बिना कुछ जाने थोपता हूँ तो तू ही बोल सुरभि, क्या चाहती है तू ?’ पापा ने अपना रुख नरम करते हुए सुरभि को देखा । सुरभि की आँखों में अनायस ही आँसू टपकने लगे।
‘दीदी, अब तो बोल दो। बता दो पूरी सच्चाई क्या है ?’ राजीव अपनी जगह से खड़ा होकर सुरभि के पास जाकर खड़ा हो गया।
‘पापा, मैं वहाँ वापस नहीं जाना चाहती। मैं नौकरी कर अपनी बेटी के संग जी लूँगी।’ अपनी बात कम शब्दों में कहकर सुरभि चुप हो गई।
‘ये फैसले ऐसे ही नहीं ले लिये जाते बेटी। तेरा मन चाहे तब तक रह यहाँ और जब मन शान्त हो तब सोचकर बताना। जल्दीबाजी में लिए फैसले कई बार गलत साबित हो जाते है।’ सुरभि की बात सुनकर पापा कुछ क्षणों के लिए चेहरे पर अजीब से गंभीरता धारण कर ली फिर कुछ देर चुप रहने के बाद सुरभि को समझाते हुए धीमे स्वर में वें बोले ।
‘जल्दीबाजी में एक फैसला कर उसका परिणाम भुगत रही हूँ पापा। अब फिर से कोई गलती नहीं करना चाहती।’
‘बेटी, सवाल अब तेरी या उनकी पसन्द- नापसन्द का नहीं रहा। अब बच्ची के भविष्य के बारे में भी सोचकर चलना होगा।’ माँ ने सुरभि को समझाया।
‘बात पसन्द-नापसन्द को लेकर ही है मम्मी। मैं उनकी पसन्द कभी रही ही नहीं।’ सुरभि ने धीमे से कहा।
‘तू कहना क्या चाहती है ?’
‘ये शादी उन्होंने सभी के दबाव में आकर मुझसे की है। उनकी चाहत तो कोई और है जिसे वे अपनी जीवनसंगिनी न बना पाएं।’ सुरभि धीरे धीरे अपने मन की परतों को खोलने लगी।
‘साफ साफ कह बात क्या है ? पूरी छानबीन के बाद ही तो रिश्ता सहमति से हुआ था।’ मम्मी की आवाज़ अब कांपने लगी थी ।
‘वे और सोनाली एक दूसरे को पसन्द करते है।’ सुरभि अपनी जिन्दगी की के सच की एक अनचाही परत खोलते हुए बोली और अपने आँखों में छलक आये आंसूओं को पोंछते हुए अन्दर कमरे में चली गई ।
उसके बाद जो कुछ हुआ वह सुरभि की मर्जी के मुताबिक हुआ । सुरभि ने उस घर की दहलीज सदा के लिए छोड़ दी । संबन्धों के दरकने पर कानूनी मोहर लगते ही थोड़ा समय बीतने पर सोनाली ने उस घर को अपना लिया और इसी के साथ ही दो भाइयों के परिवारों के बीच एक अंतहीन खाई बन गई । सुरभि ने अपनी जिन्दगी से समझौता कर श्वेता के संग अकेले ही आगे अपने जीने का उद्देश्य बना लिया ।
तभी अपने कन्धों पर किसी का स्पर्श पाकर राजीव वापस वर्तमान में आ गया ।
‘मामाजी। चलिये, नहा लीजिए ।’ राजीव ने पीछे मुड़कर देखा तो श्वेता पीछे खड़ी थी ।
क्रमश :