तड़पती प्यार
तड़पती प्यार
भैरवपुर शायद मेरे किस्मत में नहीं है, मैं जहाँ भी जाऊँ बस उलाहना और ताने ही मेरे नसीब है , मंदिर हो या हो फिर बगीचे की शैर हर जगह ताने ही ताने आखिर इसमें गलती कहाँ है मेरी, सोचे सोचे चंचला अकेले में ही बैठे रो रही थी तभी उनके खुशमिजाज शौहर का घर में प्रवेश के साथ ही आवाज आता है
अरी ओ चंचला मेरी जाने मन देख मेरा पदोन्नति हो गया है , हमलोग अब भैरवपुर छोङकर चलेंगे नेपाल के काठमांडूमैं अपने आफिस का बास बन गया हूँ । सभी पङोसीयो को ये मिठाईयाँ बाँट दे और उनकी शुभकामनाएं ले ले ,
ताने, लान्छन और उलाहना जिस मुख से चंचला हर रोज सुनती थी , चली उनके आज मुँह मीठा करने ।
दिन महीने बीतते गये और गुजर गये काठमांडू में पचीस साल ।
ठीक पचीस साल बाद प्रकाश अपने मनपसंद लङकी से प्रेम विवाह करने के लिए जिद पर अङा था जबकि चंचला और राजेश अपने मनोनुकूल लङकी से उनकी शादी कराना चाह रहे थे । चंचला सोच रही थी की बुढापे के सहारे के लिए सच्ची गृहणी ही एक आदर्श पोतहू हो सकती है , जबकि प्रकाश आफिस में साथ साथ काम करने वाली रोशनी के साथ हमसफर हमदम बन चुका था ।
'होहियेन्ह वही जो राम रची राखा' गोस्वामी तुलसीदास ने हजारों बर्षों पूर्व लिख दिया है अब यही सोच सोचकर चंचला बीमार सी पङ गयी थी वह सोच रही थी प्यार मेरे किस्मत की चीज नहीं बचपन में मां गुजर गयी ,शराबी पिता से फिर कैसी अपेक्षा,
राजेश अपने आफिस में व्यस्त , सुना सुना घर और फिर घर अगर किसी को लाया भी तो पराया शायद पराया ही होता है, मैं लाख अपना प्यार दूँ, जान लूटा दूँ किसी को आखिर उसका प्यार तो प्रतिक्रिया स्वरूप उसे ही व्यवहार में लाना है मैं शायद प्यार पाने के हकदार नहीं, मैं अभागिन हूँ ।
निरंतर चिंतित रहती चंचला अचानक से एक दिन बाथरूम में बेहोश हो गयी
त्वरित रूप से उसे निकट का चिकित्सालय बाप बेटे ने ले गया और उसे वहाँ से रेफर कर दिया गया "अपोलो सुपर स्पेशीलीटी होस्पीटल" काठमांडूनेपाल।
जन्म और मौत का समय तो भगवान ही तय करता है , मानव हरेक रूप में सिर्फ अपना सर्वाधिक प्रयास ही करता है,
तभी 'आइ सी यू' से एक नर्स आ कर कहती है प्रकाश और राजेश जल्द अंदर आवे दौड़कर दोनों बाप बेटा चंचला चंचला पुकारता है
शायद मैं दुनिया की सबसे अभागिन हूँ प्रकाश बे य टा । मैं ने हरेक को बहुत तकलीफ दिया राजेश मुझे माफ करना । रोशनी को ही पोतहू बनाना ।प्र क अ अ आ श तेरे कमर में एक ता बी ज़ है अं अं अं उसे खोलना एक कागज में कुछ संवाद है उसे पढ लेना मुझे लेने आ गया मैं मैं मैं अं राम राम कहते शाँत हो जाती है।
प्रकाश माथा ठोक लेता है पापा पापा कह के एक दुसरे से चिपक कर रोने लगता है
तभी हास्पीटल में ङेथ बाङी ङिस्चार्ज हेतु औपचारिकताऐ शुरू की जाती है
प्रकाश पिताजी से अलग हो कर थोङा दुर जाकर कमर में धागे से बंधे ताबीज़ को निकालता है उसे दाँत सेखोलता है सचमुच इसमें बहुत पुराने कागज में लिखा कुछ संदेश हैजिसे प्रकाश पढता है।
"नहीं जानता इसे कब और कौन पढेंगा लेकिन जब इस ताबीज़ का धारक बच्चा मुझसे अलग होगा या मुझे नजर अंदाज करेगा तो मैं चाहूंगी कि वह इसे अवश्य पढे
" मैं जब जिन्दगी में बहुत दुखित थी ,हर ओर से मुझे उलाहना , ताने सुनने को मिल रहा था ,मेरा भैरवपुर में रहना दुसवार सा होते जा रहा था तभी मुझे जिन्दगी में दो खुशी मिली
एक मेरे पति परमेश्वर का पदोन्नति होना और हमारा भैरवपुर से रहना काठमांडू निश्चित हो गया अगर ऐसा नही हुआ होता तो शायद मेरे पास आत्महत्या के अलावे कोई उपाय नहीं था , परिवेश का माहोल बेबर्दाश्त हो चुक था और मेरे पतिदेव को नौकरी के अलावे किसी की सुध ना थी ।
दुसरा भैरवपुर छोङने के ही दिन सुबह प्रातःकालीन भ्रमण में मुझे 'हसीना पार्क ' सुजागंज भैरवपुर के एक झाङी में ईश्वर का अदभुत आशीर्वाद मिला और इसी ईश्वर के आशिषके सहारे मैं अपनी जिन्दगी जी रही हूँदुनियाँ के लांछन, ताने ,उलाहने से मेरा छुटकारा मिला और ईश्वर का वो आशिष तुम इस ताबीज़ के धारक हो जिसे मैं झाङीयो से उठा कर अपने सीने से चिपकाया "
प्रकाश इसे पढ़ते-पढ़ते खो गया नेपथ्य में और अपने कर्म और व्यवहार को झाँकने लगा जो अतीत में चंचला के साथ उन्होने किया।