Pawan Mishra

Abstract

5.0  

Pawan Mishra

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हकीकत-- एक भूतनी की

हकीकत-- एक भूतनी की

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अरे सुनने में आ रहा है छतरू मड़ैया को किचिन सवार हो गया है, वो किसी को नहीं पहचान रहा है ---रूक रूक कर बोलते जा रहा है हमको जाने दो भाई मत पकड़ो ---गंभीरता के साथ सुरो बनिया अपने दुकान पर आये ग्राहक राजू काका से बोलता है। इ जो पिछले साल पर्बतीया

फसरी लगा के मरी है तभी से इस गाँव में कुछ ना कुछ अनहोनी और विचित्र --विचित्र घटना घटित हो रहा है। अब इ ले लो परसों फगुआ है सब कोई पर्व त्योहार के तैयारी कर रहा है सुरो महाजन, त इसी समय छतरू मड़ैयापर पिचाश सवार हो गया है --भगवान करे सुरो महाजन उसे कुछो हो ना जाय।

ऐ दादा, थोड़ा लाल मिरचा -और दस टका का मरीच जल्दी से दीजिएगा --पापा बोले है पैसा बाद में पहुँचा देंगे --मंगरू मड़ैया हाँफते हुए कहता है। अच्छा मंगरू, छतरू के की हाल हौव --उ सबको पहचान सकता है-? छतरू भैया को चुड़ैल पकड़ लिया है--उ लोग रोज शाम उधर मुरदघट्टी के तरफ जाता था -मंगरू।

मंगरू जल्दी जल्दी लाल मिरचा और मरीच लेकर घर जाता है --उसकी मम्मी गोयठा(सुखे गोबर का जलावन)पर किरासन तेल डालकर जलाती है और लाल मिरचा और मरीच ड़ालकर समूचे घर धुआं करती है। दरअसल मंगरू की मम्मी पिछले महीने पहाड़गंज अपने मौसी घर गयी थी और वहीं इस तरीके को सीख कर आयी थी की, किसी पर भूत अगर सवार हो जाय तो उसे काली मरीच और लाला मिरचा जलाकर सुन्घाने से भूत भाग जाता है।

धुआँ सूंघाने के बाद छतरू की आँखे और लाल लाल हो गयी और विचित्र टाईप की अस्पष्ट आवाज निकालने लगा।

अरे ये तो जख यानि की पुरूष पिचास जैसा लग रहा है दीदी --छतरू की चाची बोल उठती है अपने जेठानी से--मेरे मैके में एक मस्तानी

 मौलाना है उससे बात करके देखिए उ जंतर मंतर झाड़ फूंक से सब नजर विजर ठीक करने में तुफानी सिद्धी हासिल किये है।

तभी छतरू के पापा फोन करते हैं--हैलो मौलाना साहब --

उधर से आवाज आता है --जय मस्ताना --अक्कड़ बक्कड़ त्रिकाल बुझक्कड़-- बोलो भाइ क्या बात है।

तभी छतरू के पिता सारा बात उसे बताते हैं और निवेदन करता है --कुछ उपाय किजिए मस्ताना साहब।

हाँ हम सब यहाँ से देख पा रहे हैं--छतरू को प्रेत छाया जकड़ कर पकड़ी है --गाँव के ही दक्षिण दिशा में बरगद का जो गाछ है वहाँ तीन भूतनी रहती है --उसी का इ खेला है। जान पर जोखिम है। एक भूतनी कभी कभी बोलती है छोड़ देते हैं तो दुसरा बोलती है --नहीँ खुन पियुन्गी ----हा हा हा बड़ा ही करकस और अभद्र ठहाका लगाया मस्ताना ने।

 बड़ी मिन्नत के बाद मस्ताना ने कई करार पर मौखिक सहमति लिया और आने को तैयार हुए।

 एक घंटे बाद मस्ताना अपने चेला के साथ काले गंदे कपड़े और गठ्ठर लिए हाजिर होता है और मोटर सायकल खड़ा करते ही बोलता है ---अक्कड़ बक्कड़ -त्री काल बुझक्कड़ 

मस्तानी मेरी हर पिशाच को काबू कर ककक्कड़।

आइये आइये हैय देखिये ना आज सबेरेये

 से ही छतरूवा को उ परबतीया जिदीया

 के पकड़ ली है --अरे इतने भटकना है तो जाओ अपना भ ईबा पर सवार हो जाउ हमरा उपर काहे लगले हो--- कहते कहते दिल में चल रही सभी संभावनाओं रूपी बात को बोल दिया।

काली पाठी(बकरी) सवा मीटर काली वस्त्र डेढ लीटर दारू और सात सौ रूपैया जल्दी से लाइए, हम वशीकरण तुफानकरणी इसका कर देते हैं --मस्ताना कहता है।

 तभी छतरू के पापा बोल उठते हैं इ ठीक तो हो जायेगा ना -सब समान तो कभिए मंगा दिए हैं--!

 इससे बड़का बड़का जिद्दी पिचाश को कितना बार बस किये हैं जी -'अक्खड़ बक्कड़ त्री काल बुझक्कड़ '

 ढेर सारे पैतरा और रहस्यवादी अनुष्ठान किया गया --लाल और काला चिन्ह भयावह रूप से दिखने वाला सृजित किया गया। एक बोतल में काला रंग और पानी ड़ालकर उसे छतरू के शरीर और काली बकरी पर बार बार स्पर्श कराया गया --और अक्कड़ बक्कड़ त्री काल बुझक्कड़ सब पिचाशी को बसकरे करकक्कड़।

ये देखिए अब यहाँ का काम खत्म हो गया है अब कब्रिस्तान में जाकर इस बोतल के पिचाश के प्यास को खुन से बुझा देगें,छतरू पहले जैसा ठीक हो जायेगा -- और सारा समान बाँध कर अक्कड़ बक्कड़ बोलते सात सौ रूपये पाकेट में ठूसते हुए चल दिये।

तभी पड़ोस के प्रकाश सर जो एक साइकोलोजीस्ट थे अभी होली में अपने माता पिता के घर आये थे उनके कान तक ये बात पहुँची।

प्रकाश जी छतरू को देखने आये। गाँव में अभी भी मानवता जिन्दा है अगर आपको समस्याएं आती हैं तो सहयोग और सहानुभूति के लिए कई कदम स्वतः आपकी ओर बढेंगे।

प्रकाश जी ने देखा छतरू को एक अंधेरे और बंद कोठरी में रखा गया था जहाँ अभी भी मस्ताना के करतूत और घरेलू टोटके के वजह से दुर्गंध और धुआं धुआं सा महक रहा था।

छतरू के खाट को खुले हवा में मंगाया गया। तभी कुछ ग्रामीणों ने चर्चा किया की लो अब देख लो पढे लिखे आदमी का दिमाग--छतरू के जिन्दा रहते ही उसे खाट पर लेटाया घर से बाहर आँगन में कर दिया गया( ऐसा आम तौर पर आदमी मर जाता है तब किया जाता है)

-------प्रकाश जी ने छतरू को गौर कर देखा। उसके आँखो के पलकों को उठा कर देखा। पेट और पीठ को दबाकर देखा --इसके बाद बोलता है एक जेनरल फीजिशयन को बुलाइये।

 प्रकाश जी ने उसके पेट को कस कर दबाया ---छतरू जोर से उल्टी करता है ऐसे आवाजों के साथ मानिए कुछ अनहोनी,विचित्र और अनसुलझा सा मामला हो।

 फिर पीठ को दबाया गया और छतरू लगातार उल्टी तीन चार बार करता है --दुर्गंध करता हुआ गंदगी लगभग समूचे आँगन में फैल जाता है।

 अभी कैसा लग रहा है छतरू---प्रकाश जी पूछते है।

अभी त बहु ते आराम लगा रहा है। 

प्रकाश जी ने सबको उस जगह से दूर हठने को कहा --दरअसल वह छतरू से अकेले में कुछ बात करना चाहते थे।

सभी के दुर हट जाने के बाद स्नेह पूर्वक प्रकाश जी पूछते है----

सबेरे से क्या खाये है --काफी कायदे से पूछने के बाद पता चला की छतरू सबेरे से खाली पेट में ही मुरारी चौंका पर गंजा पि लिया था अपने दोस्तों के साथ, गाजा पिने के बाद - जब घर आ रहा था तो होली छुट्टी में आये अपने सहपाठी दोस्त मणिलाल जो बी एस एफ में कास्टेबल था उनके घर बैठकर अँग्रेजी शराब भी पी लिया था ---दस बजे के आस पास कूछ दोस्तों के साथ होली की तैयारी करने के लिए भाँग भी कम मात्रा में खा लिया था।

छतरू के पिताजी को प्रकाश जी ने बतलाया कोई भूत बेताल नहीं होता है यह हमारे आपके कमजोर मानसिकता की अपनी सोच है --छतरू का नशा उतर चूका है -लेकिन उसको काफी कमजोरी लगता होगा। चिकित्सक से उसे दवा दिलवाइये --जो भी परेशानी होगी ठीक हो जायेगा।


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