Pawan Mishra

Inspirational

5.0  

Pawan Mishra

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आदर्श

आदर्श

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यशवंतपुर यश और प्रतिष्ठा की नगरी बन गयी थी ।  अगर सच कहा जाय तो कलयुग में इसे ही 'राम राज्य ' की संज्ञा मिलनी चाहिए ।

आदर्श अपने नाम के अनुकूल समूचे परिवेश में अपने सुंदर व्यवहार रूपी खुशबू चहुँओर बिखेरता रहता आया है और हर पिता की चाहत सी बनती जा रही थी बेटा हो तो आदर्श जैसा ।


 संस्कार भी अपने बङे भाई आदर्श से कहाँ कम था । हर पल उनके व्यवहार में उत्कृष्टता परिलक्षित होती थी --- हर कोई उसमें एक बेहतरीन पुरूष के सभी गुणों को देख सकता था । आज तक शायद ही संस्कार कभी ऊँचे आवाज में किसी से बात किया हो --एक सुन्दर गुणवान पति, होनहार बेटा , प्यारे पापा, हरक्षण उपलब्ध एक सच्चे समाजसेवी , और कार्यालय में सभी के मददगार मृदुभाषी संस्कार सिर्फ एक नाम नहीं अपितु एक अनुकरणीय उदाहरण सा बन गया था यशवंतपुर में ।

समृद्धि तो आखिर समृद्धि ही है , ईश्वर ने उन्हें उनके नाम के अनुकूल धन धान्य से भरपुर वैभवशाली जिन्दगी दिया था । बहुत बङे व्यापार का संचालन करते हुए शायद ही वह कभी ऐसा हुआ हो कि उग्र हो गया है।अपने माता पिता के साथ साथ अपने दोनों बङे भाइयों के साथ हरदम वो खुशमिजाज हो कर बोलते थे और जब भी उनके घर जोर जोर के ठहाके लगते थे तो आस पास सभी को यह स्वभाविक रूप से पता चल जाता था कि समृद्धि अभी घर पर ही है।खूब सुंदर व्यवस्था के तहत इन तीनों भाइयों का परिवार चल रहा था । संपूर्ण यशवंतपुर में इस परिवार की तारीफ ही होती थी और शायद ही ऐसा कोई हो जिन्हें इनसे मदद ना मिला हो।तभी कानों कान एक चर्चा सरेआम हो गया है-- सब के चेहरे पर बस एक ही विषय था, कुछ तो गङबङ है । रश्मि दीदी ने तो यहाँ तक कह दिया कि---"हाँ बङे घर की बङी बातें ।"


तभी बङकी काकी बोल पङी अरे बहना "दूर का ढोल बङा सुहावन होता है --बङी पोतहू समृद्धि का हाथ पकङे गिङगिङा रह थी और कुछ कोर्ट-कचहरी की चर्चा कर रहे थी।"


"धत् इ नहीं हो सकता है ---समूचे गांव का झगङा झंझट तो आदर्श और संस्कार बाबू ही सलटाते रहे हैं--दूध कादूध और पानी का पानी, एकदम सही निर्णय सुनाते रहे हैं----और आज तक का इतिहास है कि उनके निर्णय से उलट कोई काम नहीं करता था --सबके सहमति से सुंदर फैसला देते हैं वो लोग" अजय की मम्मी सबकी बातों को गलत ठहराते हुए बोलती है।


"अरे वही तो बात है सबके घर का झगङा वही लोग सुलझाते थे आज उनके घर की कौन सुलह करायेगा । जरूर कोई गंभीर बात है चार दिन से कोई भाई किसी से नहीं बोल रहा है , समुचा घर मौन धारण किया हुए हैं--कहीं आदर्श की पत्नी और समृद्धि का ---! आदर्श की पत्नी है बङी सुंदर, सुशील ना जाने कब कौन वहाँ फिसल जाये --नैन मटक्का हो जाय और समृद्धि तो है ही हंसोङ--सबको हंसाते हंसाते ना जाने कब किसको नजर में बैठा ले"--- हंसते हंसते रोजा ने भी अपने विचार रख दिये।


 "बहुत पुरानी कहावत है 'त्रिया चरितम् पुरुषस्य भागम् देवो ना जनाती' कहते हुऐ बजरंगबली मंदिर के उस पार की घर वाली नीलिमा बोलती है , ऐसे तो आदर्श भैया की पत्नी दिखती नहीं थी ,लेकिन क्या कहा जाय --जवानी में कौन कब भटक जाय --समृद्धि तो भरपुर पैसों वाला पुरे जवान है --स्मार्ट है --दीदी वो जब बात करते हैं तो देखिऐगा कैसे हंस हंस कर बोलता है --! कुछ भी असंभव नहीं है ।"


तभी कोर्ट से नोटिस इन तीनों भाईयों के नाम निकलने की भी पुरजोर चर्चे में आया । हर ओर यही चर्चा की परसों सशरीर चारों भाइयों को कोर्ट जाना है --"नोटिस आया है।लेकिन तब तो गवाही के लिए भी गाँव वाला ही न जायेगा जी" --रामजीवन चाचा किराना दुकान पर बैठे बिङी पी रहे सुरेश से बोल उठा ।


"अरे भाई उ लोग का कोनो ठिकाना है , इ सब विषय जहाँ जनानी के चरित्र का बात हो कोई गाँव का गवाही बोलायेगा जी --ढेरी

आदमी है उनलोगों के पास --समृद्धि बाबू जिसको चाहेगा उसी को खरीद लेगा" रामजीवन चाचा जोरदार बीङी का धुंआ उङाते सुरेश बोला"


"धत् इ क्या बोलते हैं जी सुरेश मतलब पैसा है तो क्या घर की भौजाई को ------"


 सभी भाई अपने अपने वाहन से कोर्ट पहुँचते हैं । आदर्श के साथ यशवंतपुर के ही यादव टोली से मंगरू का बङका बङका बेटा जतरू यादव मोटा सा फाईल लिये न्यायालय के अंदर सबसे लेट से पहुँचता है,कोर्ट की कार्यवाही शुरू होने की घोषणा की जाती है,।न्यायधीश महोदय अपने कुर्सी पर बैठने के साथ ही सबकी उपस्थिति पर गौर करते है ।


"श्री  दीनानाथ जी के बड़े बेटे आदर्श आप खङे होकर स्वयं से या वकील से अपना पक्ष रखें"--- न्यायधीश ने सहजता से बात रखा।


" हुजूर मैं पाँव पकङता हूँ-- मेरे माता --पिता ही मेरे ईश्वर हैं--मैं इनके बगैर जिन्दा रह नहीं सकता । मैं बङा बेटा हूँ--मेरा हक है कि मुझे सदैव मा पिता के चरणों का सानिध्य मिलता रहे । मुझसे मेरे ईश्वर को दूर करने का,हुजूर मैं ही असली हकदार हूँ--अपने मा पिता को साथ रखने का ।"


श्री दानीनाथ जी के बेटा श्री संस्कार अब अपना पक्ष रखें----


" हुजूर ये बात सच है कि भैया भाभी अपने से दूर मम्मी पापा को देख नहीं सकते --लेकिन शुरू से उनके साथ रहे तो अब कुछ दिन मुझे उनके सेवा का हक मिलना चाहिए---आज मैं जो कुछ हूँ उनके मेहनत और त्याग का परिणाम हूँ । आदर्श भैया और भाभी सभी की मान सम्मान सभी जगह बहुत अच्छी है यह मम्मी पापा का ही परिणाम है ---क्या इसका फायदा मुझे नहीं मिलना चाहिए---? मैं भी उनका ही बेटा हूँ--अतैव अब मेरा हक बनता है उन्हें अपने पास रखने का । हुजूर फैसला सुनाया जाय की मम्मी पापा अब मेरे साथ रहेंगे ।"


श्री दानीनाथ जी के तीसरे दावेदार और बेटे श्री समृद्धि अपनी बात रखें-----


"हुजूर मम्मी पापा मेरे लिए सबकुछ है ,यही मेरे लिए चारो धाम हैं, मैने कभी ईश्वर या अन्य देवी देवता की आराधना की जरूरत महसूस ही नहीं किया ---बस जब भी परेशानी हुई --मैंने अपने मम्मी और पापा को जोर जोर से हंसाने का काम किया और मेरी चिन्ता दुर होते गया --मेरी हर परेशानी दूर होती गयी।  मैंने मम्मी पापा सहित अपने दोनों भैया और भाभी में ही सभी देवी देवता का वास पाया । मैं मम्मी पापा सहित अपने दोनों भैया और भाभी से अपने को दूर रख ही नहीं सकता --हुजूर मैं जहाँ रहता हूँ--अपना व्यापार चलाता हूँ वहीं मेरे मम्मी पापा सहित दोनों भाभी भैया का साथ मुझे मिलता रहे--उनका सानिध्य ही मेरे लिए स्वर्ग की अनुभूति है-- कृपा कर आदेश दिया जाय की हम सब यशवंतपुर से निकल कर अब पटना के कंकङबाग में ही रहें--और सबकी इच्छा पुरी हो जायेगी---"!


तभी न्यायधीश महोदय बोलते हैं--"मैंने अपने 25साल के कार्य के दौरान ऐसा मामला नहीं देखा-----आप तीनों भाई मानव रूप में रतन हैं, देवता हैं--केस चूँकि एकदम अलग प्रकृति का है इसलिए फैसला भी अलग प्रकृति का होगा--- कल ही ग्राम सभा की बैठक बुलाया जाय और संपूर्ण गाँव को इस मामला से अवगत कराते हुए फैसला सुनाया जायेगा---।"


जीत किसकी --संस्कार की या फिर जीत जायेगा आदर्श---! या फिर समृद्धि को मिलेगा और समृद्धि पाने का आशीर्वाद---!


उपरोक्त फैसला मैं अपने पाठक पर ही छोङना चाहता हूँ--क्या होगा जज साहब का न्याय?



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