Pawan Mishra

Abstract

5.0  

Pawan Mishra

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प्रेम विवाह

प्रेम विवाह

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जन्म, विवाह और मृत्यु ईश्वर के द्वारा बनाये गये ऐसे निश्चित संयोग हैं, जिसपर किसी भी मानव स्वयं का नियंत्रण ना के बराबर होता है, लेकिन हाँ, कुछ खास किस्म के मानव तो इसे सिर्फ मानवीय प्रयास ही बताते हैं --लेकिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने ऐसे ही अवशयंभावी घटनाक्रम को देखते हुए लिखा है --"होइहें वही जो राम रची राखा" और असली प्रेम तो भगवान स्वयं द्वारा रची हुई एक कृति होती है, उसे भला विश्व की कोई ताकत कैसे अलग कर सकता है --?

अनुराधा और उत्तम दोनों ही आज एक महत्वपूर्ण लङाई में जीत गये थे, जी हाँ न्यायालय ने लम्बे अन्तराल पश्चात दोनों के वैवाहिक विच्छेद हेतु न्यायिक प्रक्रिया पुरी कर फैसला सुना दिया था -- जीत उपरांत जोश और विजय की झलक साफ साफ दिख रही थी दोनों ही परिवारों के सभी रिश्तेदारों पर, सभी शुभचिंतकों पर और फैसला जिस दम्पति के लिए था, यानि अनुराधा और उत्तम दोनों ही बेजान सा होते जा रहे थे, ऐसा मानिए जिन्दगी मरूस्थल में निरुद्देश्य भटक रही हो, कोई ठौर ठिकाना नहीं, कहाँ जाना है--?क्या करना है --? ऐसा लग रहा था मानिए जिन्दगी रूपी नाटक के अंतिम दृश्य का परदा गिरने ही वाला है और चोरी चुपके ही एक दुसरे से आख मिला लेने का कभी कभी हिम्मत कर लिया करते थे।

शादी हुऐ चार साल बीत चुके थे, 23नवम्बर को शादी की पाँचवी साल गिरह की तैयारी बङे धुम धाम से की जा रही थी, दोनों ही परिवारों के सभी नजदीकी रिश्तेदारों के जूटने की पुरी संभावना थी --। आखिर समाज और घर की नाराजगी के बावजूद जो लव मैरिज हुआ था इन दोनों का,  इसके बाद यह पहला मौका था सबको एक साथ एकत्रित कर आशीर्वाद लेने का, सबको खुश करने का,  

अनुराधा भी अपने दोनों जूङवा बच्चों का देखभाल ( जय -विजय का) करते हुए समूचे घर की साफ सफाई, पर्दा, सोफे का कभर सहित अनेकों छोटे छोटे इन्तजमात रसोई से बचाये हुए पैसों के द्वारा बङे कष्ट से कर पा रही रही थी और कम पैसों में बेहतरीन तरीके से घर को सजाने संवारने में तो अनुराधा का कोई जोङ नहीं था। 

बस यही जश्न मनाने के क्रम में ही आफिस के कुछ दोस्तों के साथ चुपके से उत्तम ने शराब पी ली और अनुराधा के साथ बढते बढते बातों में ही उसपर थप्पड़ चला दिया गया था।

जिस अनुराधा को बीते पाँच साल में सिर्फ प्यार मिला और एक घर संवारने का पुरा माहौल, पुरी स्वतंत्रता उसपर अचानक अगर उसका सौहर शराब पीकर थप्पड़ चला दे तो यह बात असहनीय होना ही था, गुस्से से बाहर होना ही था और उसी घटनाक्रम का नतीजा था यह तलाक --तलाक -----और ---तलाक--

अनुराधा के हाथ में था न्यायालय का निर्णय और वह सामनो की लम्बी लिस्ट जिसे ,उत्तम के घर से उसे लेना था और उत्तम के हाथों में था न्यायालय का वह निर्णय जिसपर उसे अमल करना था, यथा-- आभूषणों की लम्बी सूची जो अनुराधा से लेना था तथा मासिक गुजारा भत्ता, एकमुश्त क्षतिपूर्ति भत्ता के रूप में दस लाख छह माह के अन्दर अनुराधा को उत्तम द्वारा दिया जाना था, तथा साथ ही जय विजय दोनों का ही अध्यापन शुल्क आदि।

उत्तम, अनुराधा और अनुराधा की भौजाई तीनों एक ही सवारी से उत्तम के घर पहुँचे। उत्तम ने अपना किराया अलग दिया तथा अनुराधा और उनके भौजाई ने अपना एक साथ। अब न्यायालय के मुताबिक अनुराधा को उनके मैके से मिले सारे समानो का पहचान करते हुए पुनः वापस मैकै ले जाना था।

उत्तम के घर यह आखिरी कदम था अनुराधा का, उस घर को जिसे सजाने संवारने में उत्तम से ज्यादा यतन अनुराधा ने किया था, जय विजय के लिए जो दुध और दवाई के पैसे मिलते थे उसे बचाकर घर को सजाने का संवारने का काम कभी अनुराधा ने किया था और हा उसी घर से अपना सारा समान वह लेकर जा रही थी उस घर को जिसे उत्तम के लिए एक दिन छोङ आयी थी अपना सबकुछ। आखिर वो ममत्व और स्नेह जो उस घर की हरेक दिवार द्वारा चिल्ला चिल्ला कर मानो पूछ रही हो---, की अनुराधा ----तुम मुझे छोङ चली जाओगी----!, उसका क्या क्या होगा-- ? सामनो की गठरी के साथ क्या स्नेह और प्यार भी बाँध ले जा पायेगी अनुराधा --? क्या सब कुछ भुल पायेगी अनुराधा----!

घर में प्रवेश करते ही ऐसा लगा जैसे मानो कोई नेपथ्य से चिल्ला चिल्ला कर कह रहा हो, नहीं यह नहीं हो सकता है सच्चे प्रेम की ङोर टूट नहीं सकती --लेकिन काश् कोई यह सच में भी कहने वाला भी तो होता। सभी रिश्तेदार तो जीत की खुशी में हंसीं के गुलछर्रे उड़ा रहे थे, एक दुसरे को नीचा दिखाने का कोई अवसर नहीं जाने दे रहे थे।घर में प्रवेश करने के साथ ही अनुराधा की सारी यादें ताजा हो गयीं थी और घर विराना सुनसान सा लग रहा था जैसे कोई उपवन बर्षों से खाद पानी के अभाव में माली को याद कर रहा हो --।

कभी यही घर सपनों का घर था उत्तम और अनुराधा दोनों के लिए, कई ख्वाब और सपने अधुरे थे, जो साथ साथ मिलकर देखे गये थे और पुरे होने थे लेकिन शायद अब कभी नहीं हो सकता वह सपना पुरा --।

हाल मे घुसते ही उत्तम बोला ले लो जो भी समान तुझे चाहिए यहाँ से----मेरे काम की सामग्री अब कुछ भी नहीं है इस घर आँगन में -- कहते हुए उत्तम छत के उपर बने कमरे में चला गया जहाँ कभी नौकरानी रह कर इस घर की सेवा करती थी, जय विजय को देखा करती थी --उसी कमरे के मैले और गंदे मकङी जाल लगे हुए बिछावन पर पेट के बल लेट गया उत्तम।  

छत की ओर जाते उत्तम को गौर से देख रही थी अनुराधा नजर छिपा कर अपने भौजाई से और अपने टुट गये रिश्ते के पति से --चंद सालों में कितना बदल गया था उत्तम, हंसता चमकता हुआ चेहरा, हर पल गुदगुदी लगाने वाली बातें करने वाला उत्तम कैसे--अब बेजान, चमकविहीन बेतरतीब बढे हुए उजले सफेद बालों युक्त दाढ़ी वाला यह उत्तम कितना बदल गया है --!

अनुराधा और भावुक होते गयी तथा अंदर ही अंदर रो रही थी और भगवान से बोल रही थी भगवान तुझे ही एक मात्र साक्षी मान कर सब को छोङकर उत्तम को अपनाया था क्या वही उत्तम इसे फिर नहीं बना सकते --?

भंडार गृह, शयन कक्ष सब जगह से एक एक समान वो एकत्रित कर रही थी अपने भौजाई के साथ और उनकी भौजाई बार बार फोन पर समझा रही थी किसी कीमत पर कोई समान नहीं छोङना है यहाँ, इसका जो भी समान है वह सारा आज और अभी जायेगा आप एक समान ढोने वाला गाङी भेजें--!

सारा समान दोनों ननद और भौजाई ने मिलकर सभी कमरों से इकट्ठा कर ली थी, एक भी समान उत्तम का उसने नहीं लिया, न्यायालय के लिस्ट से मिलान पुरी कर ली गयी।

तभी गहनों जैवरातो से भरे हुए बैग उत्तम के बगल में बिछावन पर फेंकती हुइ अनुराधा कहती है इसे मिलान कर लिया जाय, यह लिस्ट के अनुसार है, और इस कागजात पर अपनी दस्तखत करें, मै भी दस्तखत कर देती हूँ।

सोने--हीरे जैसे कीमती जैवरो की खरीद मूल्य ही उस समय सात लाख के आसपास थी जो उत्तम ने कर्ज के पैसों से खरीदे थे, जी हाँ समूचे शहर में विभिन्न दुकानों से खोज खोज कर एक एक ङिजाइन वाला चुना गया था दोनों के सहमति से, जो आज भी काफी मूल्यवान है, कर्ज के कुछ पैसे आज भी तनख्वाह के पैसे से महिना महिना निरंतर कट रहा था, लेकिन उत्तम के लिए तो यह निरर्थक हो चुका था।

करीब चार पाँच मिनट हो गये कोई प्रतिक्रिया न मिलने पर, पुनः बोल उठी अनुराधा, इसे मिलान कर लें, तथा यहाँ दस्तखत ---!

इसे तुम ही रख लो - जिन्दगी बहुत लम्बी है, आफत विपत कभी काम आवे, जय विजय का ख्याल रखना कहते कहते उत्तम उठ खङा हो गया, दीवाल की तरफ चेहरा कर लिया शायद इससे आगे और कूछ बोलने की हिम्मत ना थी -- उसे, एक औरत के सामने रोने और आँसू निकालने का शायद पुरूषवादी मानसिकता इजाजत नहीं दे रहा था ---।

तभी अनुराधा की भौजाई भी उपर आ गयी और चिलालाते हुए दुत्कार भरे आवाज में बोल पङी क्या इस शराबी से आप मुँह लगा रही हो, चलो गाङी आ गयी है, लगभग सारा समान लाद दिया गया है, चलिए देख लेते हैं, कुछ छूट तो नहीं रहा।

शराबी शब्द अपने उत्तम के लिए बोला जाना अनुराधा को बहुत खराब महसूस हुआ और बोल पङी आप नीचे रहिए मैं आ रही हूँ।

कहाँ दस्तखत करने हैं --? उत्तम पूछता है, और फिर अनुराधा द्बारा बताये हुए सभी जगह पर दस्तखत कर देता है। ----

चलो बहुत अच्छा हुआ एक शराबी, अवारा, मवाली, दहेजलोभी , अवगुणो से सुशोभित उत्तम अपने भूतकाल के पति से तुम अलग हो गयी। बधाई हो, कल पार्टी मनाना, जश्न मनाना, ----कहते कहते दिल की सारी बातें उत्तम ने अनुराधा से बोल दिया ---।

आपको भी तो एक वेश्या से छुटकारा मिला, एक कुलकक्षिणी से आप अलग हो पाने में सफल हो गये, न्यायालय में तो आपके वकील ने मुझे वेश्या भी कहा---!

अब अनुराधा की बारी है दस्तखत करने की लेकिन --

उत्तम बोल पङता है इसकी मुझे कोई आवश्यकता नहीं है, नहीं चाहिए आपके हस्ताक्षर मुझे,  

मैं आज भी सिर्फ ईश्वर को साक्षी मानता हूँ और वहाँ कोई कागज की आवश्यकता नही होती है। मैं न्यायालय में यह कभी नहीं कहूँगा कि तुमने जेवर वापस नहीं किये, कोई शिकायत लेकर नहीं जाउँ गा वहाँ, और अगर हो सके तो बङी कृपा होगी इस बार न्यायालय से मेरे लिए फाँसी की सजा मांगना----!आजीवन कारावास मांगना---!

मैं अब वहीँ खुश रहूँगा, सारे घर परिवार मा बाप भाई बहन सब को छोङकर तुझे अपनाया था, उसकी सजा मुझे मिलनी ही चाहिए, 

पश्चाताप का सबसे बढिया जगह जेल ही होगा मेरे लिए ----

अनुराधा झट से दौङ कर बाथरूम चली गयी। एकान्त, कुछ सोचना चाह रही थी, अपने आप से कुछ बोलना चाह रही थी ---! और उत्तम के सामने अपने आप को रोने से, कमजोर दिखाने से रोकने का यही एक तरीका बचा था।

बाथरूम से चेहरा पर पानी लेते हुए अनुराधा बाहर आई, घर आँगन ऐसा लग रहा था मानो कह रहा हो मत जाओ मुझे छोङकर, घर की तुलसी जिसे बङी कायदे से और श्रद्धा से पूजती थी सदैव अनुराधा, बिना जल ङाले भोजन कभी नहीं की थी जब से तुलसी और अनुराधा दोनों इस आँगन में थी आज सुख चुकी थी तुलसी, मानो आँगन की तुलसी कह रही हो --मुझे प्यासा छोङकर कहाँ जाओगी --? मत जाओ अनुराधा, लौट आओ ----! तभी भोजन कक्ष के दिवारों पर लटक रही अनुराधा और उत्तम के फ्रेम युक्त फोटो जिसपर सुंदर अक्षरों से लिखा था -- "यहीं स्वर्ग है " धुल के परत पङ जाने के बावजूद अपनी चमक दिखला रही थी।

तभी उत्तम भी छत से नीचे आ चुक था और अपने शहरज यानी अनुराधा की भाभी से बोल रहा था, बहुत बङी गलती हो गयी, --मैं रहूँ ना रहूँ यह घर अनुराधा का ही है उसी ने इसे घर के रूप मे सजाया था ---।

भोजन कक्ष के दिवारों पर टंगे फोटो को देखकर अनुराधा अपने आप को रोक ना पायी--लम्बे कदमों के साथ आगे बढी, सरपट गिर पङी उत्तम के पैरों पर----,

बोल पङी मुझे एक बार माफ कर दो---- उत्तम, बहुत हो गया। मैं ना कुछ बोलना चाहती, न सुनना चाहती, मैं यहीं रहना चाहती --।

यही वो शब्द थे जो एक दुसरे का मन और कान सुनने को बेताब था--।

तभी भौजाई बोल पङी, अब समय निकल चुका है, और न्यायालय के इस फैसले का क्या होगा --?

उत्तम ने अनुराधा को उठा सिने से चिपका लिया और कोर्ट के आदेश को अपने हाथों फाङ दिया। 

यह घर है, यहीं स्वर्ग है, न्यायालय का यहाँ कोई स्थान नहीं।

सच कहते हैं असली प्रेम की ङोर कभी नहीं टूटती है --।


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