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Dinesh Divakar

Horror Thriller

3  

Dinesh Divakar

Horror Thriller

सव्यसाची भाग-1

सव्यसाची भाग-1

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जैसे ही मेरी आंखें खुली तो मैंने अपने आप को अपने कमरे में नहीं बल्कि एक अलग दुनिया में पाया, वह दुनिया हमारी दुनिया से परे था वह सबसे अलग और बेहद खूबसूरत था ऐसा लग रहा था जैसे मैं स्वर्ग में आ गया हूं।


एक मिनट स्वर्ग, इसका मतलब मैं स्वर्ग में हूं कहीं मेरी मृत्यु तो नहीं हो गया मैं इस डर से वही गिर पड़ा थोड़ी देर बाद जब मुझे होश आया मैं अपने आप को चिकोटी काटा आह मुझे दर्द हुआ, इसका मतलब मैं जिंदा हूं हे भगवान तुम्हारा शुक्रिया लेकिन अगर ये स्वर्ग नहीं है तो ये आखिर है क्या।


मेरी सोचते सोचते आगे बढ़ रहा था उस जगह की सुंदरता मुझे मोहित कर रहा था, बहुत देर यूं ही चलते रहने से भी कुछ पता नहीं चला मैं वहीं थक कर बैठ गया।


तभी कुछ लोगों की आवाजें मेरे कानों पर पड़ा, मैं खुश हो गया चलो कुछ लोग तो है यहां मुझे मदद मिल जाएगा मैं उस तरफ मुड़कर देखने लगा, वहां एक छोटा सा गांव जहां कुछ लोग काम कर रहे थे।


मैं उनके तरफ बढ़ने लगा एक आदमी के पीछे ही पहुंच गया था कि किसी ने मुझे अपनी ओर खींचा जैसे वो मुझे बचा रही हो, उसने मेरा मुंह अपने हाथों से बंद कर दिया।


मैं उसकी तरफ देखा- वाह क्या लड़की है, लड़की नहीं अप्सरा कहना ठीक रहेगा, ऐसा लग रहा है जैसे भगवान ने साल भर की छुट्टी लेकर उसे बनाया हो मैं तो उसकी खूबसूरती पर कायल हो गया।


तभी उस लड़की ने मुझसे कहा- ये क्या कर रहे थे तुम अगर वे लोग तुम्हें देख लेते तो तुम्हारा तो राम नाम सत्य हो जाता।


लेकिन मैं तो उसके रूप पर मोहित था उसकी बात मुझे कहा सुनाई देता वो मुझे घुरकर बोली- क्या हुआ


मैं हड़बड़ा कर बोला- वो बात ऐसी है कि......


हां हां ठीक है लेकिन तुम यहां क्यों आए ये मौत और छलावे की दुनिया है


मैं- मैं नहीं जानता मैं यहां कैसे आया


अच्छा छोड़ो इस बात को मेरा नाम अमृता है


मैं- और मेरा नाम....


वो बीच में बोल पड़ी- पता है तुम्हारा नाम है सव्यसाची


मैं- नहीं मेरा नाम दिवाकर हैं न कि सव्यसाची


अमृता- नहीं तुम सव्यसाची ही हो।


ऐसा कहते ही उसका खूबसूरत चेहरा एकदम से बदल गया अब वो बेहद डरावनी और खतरनाक दिख रही थी मैं उसे देख कर चीख पड़ा और वो हंसते हुए अचानक से मेरे अंदर समा गई।


दिवाकर- नहीं छोड़ो मुझे निकलो मेरे शरीर से


बेटा क्या हो गया तू ये क्या नींद में बड़बड़ा रहा है कोई सपना देखा क्या- दिवाकर की मां जगाते हुए बोली


मुझे शांत होने में थोड़ा समय लगा मां ने फिर से पुछा- क्या हुआ ?


मैं बहाना बनाते हुए बोला- कुछ नहीं मां तेरा बेटा आज बाल बाल बचा है तेरी बहु ने मुझे पकड़ कर झप्पी के साथ दस बारह जोरदार पप्पीयां दे डाली


मां- हट पगले कुछ भी बोलता है


दिवाकर - सच्ची मम्मी


मां- हा हा जैसे मैं तुम्हें जानती ही नहीं।


तभी वहाँ एक लड़की प्रवेश हुई


मां - अरे देख ना अनू ये कैसी बातें कर रहा है


दिवाकर- इस मोटी को हमसे क्या ये तो दिन भर उस प्रतिलिपि पर दिनेश कुमार दिवाकर की रचनाएं पढ़ती रहती है,


अनू - ओय सून, मेरे फेवरेट राइटर के बारे में खबरदार जो कुछ बोला, कभी उनकी रचना पढ़ कर देख तू भी उसका फैन हो जाएगा, अभी एक नया रचना आया है सव्यसाची, हारर सस्पेंस थ्रिलर से भरपूर उसी को पढ़ रहीं हूं।


दिवाकर- अच्छा जरा अपने इस भाई की भी तारीफ कर दिया कर 


अनू - तूने आज तक ऐसा किया ही क्या है जो तेरी तारीफ करूं।


दिवाकर- मां इसे समझा दो पढ़ाई लिखाई पर ध्यान दें।


अनू - डरपोक खुद हार गया तो मां को बोल रहा है


दिवाकर- अच्छा बच्ची रूक तुझे अभी बताता हूं


मां- अरे अरे रूको, इतने बड़े हो गए हो लेकिन हर वक्त एक दूसरे का टांग खिंचते रहते हो, अभी भी बच्चे के बच्चे ही हो।


हैलो दोस्तों मेरा नाम है दिवाकर, अनू यानी अनुष्का मेरी प्यारी बहन, हम दोनों एक दूसरे से जितना झगड़ते हैं उतना ही प्यार भी करते हैं, मां से तो आप लोग मिल ही चुके हो और पापा अभी ऑफिस ग‌ए है


मुझे बचपन से ही साइंस बहुत पसंद हैं मैं हर रोज नए नए रसायन तैयार करता था इसलिए आज मैं एक सैन्टिस्ट हूं , और आज जो कुछ भी मैंने देखा ऐसा लग रहा था जैसे वो सपना नहीं हकीकत था


मां- बेटा जा नहा लें मैंने शावर आन कर दिया है


दिवाकर- ओके मां


मैं नहाने चला गया कपड़े उतार कर देखा तो मेरे हाथों पर चोट लगा था मैं उसे देख कर चौंक गया क्योंकि ये चोट तो जब वो लड़की ने मुझे अपने तरफ खींचा था तब लगा था और वो तो एक सपना था तो ये चोट...... कही इसका मतलब..


तभी मेरे अंदर से आवाज आई - इसका मतलब वो सपना नहीं सच था हां हां हां


क... क.. कौन..????????


कौन है जो दिवाकर के शरीर में है ????

क्या वह किसी बड़ी मुसीबत में पड़ गया है ???

आखिर क्या है सव्यसाची का रहस्य ???

  

क्रमशः


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