श्रापित कैमरा
श्रापित कैमरा
रात के दो बज रहे थे। बाहर सन्नाटा ऐसा था जैसे पूरी दुनिया नींद में डूब चुकी हो। अर्जुन ने मोबाइल का स्क्रीन चेक किया बैटरी 18% और एक अनजानी सी बेचैनी उसके सीने में। वह अकेला रहता था। दिल्ली के एक पुराने फ्लैट में, पांचवे माले पर। कमरे में बस एक पंखा था जो हल्की आवाज़ के साथ घूम रहा था। वो आज देर तक जाग रहा था, किसी कारणवश नींद आ नहीं रही थी।
थककर उसने मोबाइल नीचे रखा और आंखें बंद कर लीं। अचानक मोबाइल में "फ्लैश" की हल्की सी चमक हुई।
अर्जुन चौंका। उसने तुरंत मोबाइल उठाया।
Gallery → Recent →
एक ताज़ा खींची गई तस्वीर उसमें थी। उसने उंगली काँपती हुई उस पर टैप की... उसमें वह खुद सोता हुआ दिखाई दे रहा था।
पलंग पर, उसी पोज़िशन में, जिसमें वह अक्सर सोता है। तकिए के बगल में वही तकिया, वही चादर... पर जिस चीज़ ने उसकी रूह कंपा दी वो ये कि ये तस्वीर कोई और ले रहा था।
क्योंकि तस्वीर में कैमरे का ऐंगल ऊपर से था, और उसका चेहरा साफ दिख रहा था।
“ये... ये कैसे हो सकता है?” उसने बुदबुदाते हुए सोचा। “मैं तो अकेला हूँ...”
उसने तुरंत सारे दरवाज़े-खिड़कियाँ चेक कीं सब अंदर से लॉक थे। वो अब कांपने लगा था। मोबाइल दोबारा देखा, तस्वीर खींची गई थी रात 1:47 पर। मतलब सिर्फ 13 मिनट पहले। अर्जुन का दिल ज़ोरों से धड़क रहा था। अचानक, मोबाइल की स्क्रीन फिर से ब्लिंक हुई।
एक और तस्वीर सेव हो गई। इस बार भी वही कमरा, वही दृश्य पर इस बार अर्जुन जाग रहा था। और तस्वीर में पीछे एक परछाई खड़ी थी।
अर्जुन का गला सूख चुका था। वो ज़मीन पर बैठ गया, मोबाइल हाथ से फिसलते-फिसलते बचा।
परछाई। तस्वीर में साफ़ दिखाई दे रही थी मानो कोई औरत थी, उसके ठीक पीछे खड़ी हुई। लंबी काली छाया, उलझे बाल, चेहरे का सिर्फ़ एक हिस्सा रोशनी में, पर आंखें… वो आंखें कैमरे की तरफ नहीं, अर्जुन की ओर देख रही थीं।
वो अब पूरी तरह काँपने लगा। “ये सपना नहीं है… ये सब सच में हो रहा है…”
उसने धीरे-धीरे पीछे मुड़कर देखा, कोई नहीं था। फिर भी… कमरे में एक अजीब सी ठंडक फैल गई थी, जैसे किसी ने दरवाज़ा खोलकर सर्द हवा अंदर छोड़ी हो। पंखा अब तेज़ आवाज़ करने लगा था — “टिक… टिक… ठक… ठक…”
वो भागकर किचन गया, पानी पीने। तभी… दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया। धप्प्!
उसके हाथ से गिलास गिरा, और ज़मीन पर टूट गया। शोर कमरे में गूंजने लगा।
“क-कौन है?” उसने काँपती आवाज़ में पूछा।
कोई जवाब नहीं। सिर्फ़ एक धीमी फुसफुसाहट "तू मेरी तस्वीर में था…"
अर्जुन की आंखें फैल गईं। ये आवाज़ बाहर से नहीं… उसके दिमाग के अंदर गूंजी थी। वो पीछे मुड़ा। अब कमरे की हर दीवार पर वही तस्वीरें थीं जो उसके मोबाइल में थीं। और हर तस्वीर में परछाई और भी करीब आती जा रही थी।
तभी मोबाइल फिर से बजा। "Gallery: 1 New Image"
अर्जुन ने देखा… इस बार की तस्वीर में वह ज़मीन पर पड़ा हुआ था, और परछाई उसकी छाती पर बैठी थी।
"तेरा नंबर आ गया अर्जुन..."
अर्जुन ने जैसे-तैसे मोबाइल फेंका और दरवाज़े की ओर भागा लेकिन… दरवाज़ा बाहर से लॉक हो चुका था।
(Flashback - 1 साल पहले)
इस फ़्लैट में एक लड़की रहती थी नैना। बेहद अकेली, डिप्रेशन से जूझती हुई। उसके परिवार ने उसे छोड़ दिया था, और एक रात वही तस्वीर खींचने के बाद वो गायब हो गई थी।
पड़ोसियों ने बताया था कि उसकी बॉडी कभी नहीं मिली। बस उसके कमरे से हर कोने में एक ही तस्वीर मिली "नैना सो रही है, और पीछे कोई खड़ा है।"
Present —
अब अर्जुन की सांसें उखड़ने लगी थीं। दीवार पर एक नई तस्वीर दिखाई दी। उसमें परछाई अब इंसान बन चुकी थी नैना की तरह दिखने वाली कोई स्त्री, लेकिन चेहरा जला हुआ, और होंठों से खून टपकता हुआ।
और अचानक… कमरे की लाइट चली गई। पूरे फ्लैट में घना अंधकार। सिर्फ़ एक आवाज़ गूंज रही थी “अब तू सो जा अर्जुन… और हमेशा के लिए तस्वीर बन जा…”
अब... कमरे में अंधेरा था। चारों ओर सन्नाटा बस अर्जुन की तेज़, डरी हुई साँसों की आवाज़। फर्श ठंडा हो चुका था। मोबाइल अब तक ज़मीन पर पड़ा था, स्क्रीन टूटी हुई, लेकिन उसमें लगातार एक ही नोटिफिकेशन आ रहा था "Gallery Updated: You’re in the Frame now."
"मैं सपना देख रहा हूँ..." अर्जुन ने खुद से कहा, लेकिन उसके दिल ने जवाब दिया "नहीं, अब तू कहानी बन गया है..."
तभी किसी ने पीछे से उसकी गर्दन पर हाथ रखा बर्फ़ से भी ठंडा। वो चीख नहीं पाया। सिर्फ़ ज़मीन पर गिर पड़ा, जैसे किसी अदृश्य ताक़त ने उसे दबोच लिया हो।
उसकी आंखों के सामने एक चेहरा आया अधजला, आँखों से बहता खून, और होंठों पर वो ही मुस्कान जो उसकी मोबाइल तस्वीरों में थी। "मैं नैना हूँ..."
"जिसे किसी ने नहीं देखा, लेकिन हर तस्वीर में कैद कर दिया गया..."
Flashback
नैना एक फोटोग्राफर थी। लेकिन कैमरा उसकी जान ले गया।
उसने एक दिन गलती से एक शापित कैमरा ख़रीद लिया था एक पुराना पोलरॉइड कैमरा, जो हर तस्वीर में किसी "अदृश्य आत्मा" को कैद करता था।
उसने एक बार खुद की तस्वीर ली और उस दिन के बाद, उसका खुद से रिश्ता टूट गया। वो खुद को तस्वीरों में देखती रही, लेकिन असल में वो अब इस दुनिया में नहीं थी। "मैं जिंदा थी, लेकिन दिखती सिर्फ़ कैमरे में थी..."
धीरे-धीरे उसकी आत्मा तस्वीरों में ही बस गई। अब वो हर उस इंसान को ढूंढती है जो अकेला हो… और जिसका मोबाइल उसका अगला फ्रेम बन सके।
Present
अब अर्जुन ज़मीन पर पड़ा था, शरीर सुन्न। नैना उसके पास झुकी, और उसके कान में फुसफुसाई "तेरी लास्ट तस्वीर सेव हो चुकी है..."
और तब… Click!
मोबाइल ने एक और तस्वीर खींची इस बार, अर्जुन की आँखें बंद थीं, और वो मुस्कुरा रहा था… ठीक उसी तरह जैसे नैना मुस्कराया करती थी।
अगली सुबह... अर्जुन के रूम में पुलिस पहुंची। दरवाज़ा अंदर से बंद था। लाइट बंद। ज़मीन पर मोबाइल पड़ा था। उसमें सिर्फ़ एक तस्वीर खुली थी "अर्जुन की बॉडी ज़मीन पर पड़ी हुई, और पीछे खड़ी एक परछाई मुस्कुरा रही है।"
पुलिस ने उस फ्लैट को सील कर दिया। पर मोबाइल... वो तो वहीं छूट गया।
Ending Note:
"अगर तुम्हारे मोबाइल की गैलरी में कभी कोई ऐसी तस्वीर आ जाए, जो तुमने नहीं खींची तो एक बार कमरे के हर कोने में देख लेना… कहीं कोई परछाई तुम्हें अपनी अगली तस्वीर न बना रही हो..."

