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Dinesh Divakar

Horror Thriller

4  

Dinesh Divakar

Horror Thriller

मुस्कुराती खामोशी

मुस्कुराती खामोशी

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राजकीय अस्पताल, वार्ड नंबर 9, रात के दो बज रहे थे। बाहर तेज़ बारिश और घना कोहरा फैला था। अस्पताल की पुरानी इमारत की दीवारें सीलन से भरी थीं और हर दरार में कोई न कोई रहस्य छिपा था। डॉ. वैदेही, 38 वर्षीय अनुभवी गायनिकोलॉजिस्ट, अपनी नाइट शिफ्ट पर थीं। उनके साथ थीं नर्स शांति, जो पिछले 15 वर्षों से इसी अस्पताल में काम कर रही थीं।

अचानक अस्पताल के दरवाज़े तेज़ आवाज़ के साथ खुले। एक एंबुलेंस हॉर्न बजाती हुई भीतर घुसी। भीतर से एक महिला को स्ट्रेचर पर उतारा गया। वह खून से लथपथ थी और अजीब-सी बातें कर रही थी: "मत आने देना... वो बाहर नहीं आ सकता... वो मेरा नहीं है..." उसकी चीखों में डर और पागलपन साफ़ झलक रहा था।

"डॉ. वैदेही, ये केस गंभीर लग रहा है," शांति ने कहा। "डायलेशन फुल है, बेबी कभी भी आ सकता है।"

"तुरंत ओटी तैयार करो," वैदेही ने कमान संभाल ली।

महिला को लेबर रूम में लाया गया। ऑपरेशन तेज़ी से शुरू हुआ। बाहर की लाइटें झपक रही थीं। जैसे ही बच्चा पैदा हुआ, कमरे का तापमान अचानक गिर गया।

शांति ने बच्चे को पहली बार देखा... उसके मुँह में 32 पूरी तरह से विकसित दाँत थे। वो बिल्कुल शांत था, रोया तक नहीं। लेकिन उसकी मुस्कान... जैसे किसी शिकारी की हो। उसके आँखों की पुतलियाँ पूरी तरह काली थीं।

"हे भगवान... ये तो..."

"शांति, बच्चे को साफ़ करो और तुरंत न्यूबॉर्न वार्ड में भेजो," वैदेही ने खुद को संभालते हुए कहा, लेकिन उनके हाथ भी काँप रहे थे।

शांति बच्चे को लेकर बाहर निकली, लेकिन जैसे ही वह वार्ड की ओर बढ़ी, बत्तियाँ एक बार फिर गुल हो गईं।

अस्पताल में बच्चे के जन्म के बाद से ही माहौल असामान्य था। नर्सें एक-दूसरे को देखकर फुसफुसा रही थीं, और डॉ. मेहरा, जो वर्षों से प्रसव करवा रही थीं, उस रात पहली बार अपने हाथ काँपते हुए देख रही थीं।

“इतने दाँत… जन्म के साथ… यह सामान्य नहीं है,” उन्होंने धीरे से कहा।

बच्चा अब भी मुस्कुरा रहा था। एक ऐसी मुस्कान, जो मासूम नहीं बल्कि... जानबूझ कर लग रही थी। जैसे किसी ने उसकी आत्मा को पुराने राज़ों से भर दिया हो। उसकी आँखें सीधे लोगों की आत्मा में झाँकती थीं।

रीमा को उस रात नर्सिंग स्टेशन के पास बच्चे की निगरानी करनी थी। बच्चा शांत था, लेकिन रीमा को हर पल ऐसा लगता कि वह उसे घूर रहा है।

“बिल्कुल भी रोता नहीं ये… क्या बात है?” उसने बुदबुदाते हुए बच्चे के पास झाँक कर देखा।

और फिर… बच्चा अचानक “कू…” की आवाज़ निकाल कर सीधा मुस्कराया — नहीं, वह हँसा नहीं, बल्कि उसके चेहरे पर एक "व्यंग्यात्मक मुस्कान" थी। जैसे वह जानता हो कि रीमा डर गई है।

रीमा घबरा गई। उसने पलटकर बाहर निकलने की कोशिश की… लेकिन कमरे का दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया।

टिक… टिक… टिक…

घड़ी की आवाज़ कमरे में गूँज रही थी।

तभी रीमा ने देखा — बच्चे की पालना धीरे-धीरे हिलने लगी, जबकि हवा का कोई नामोनिशान नहीं था।

फिर अचानक, कमरे की बत्ती झपकने लगी। पल भर को अंधेरा हुआ, और जब रोशनी लौटी…

बच्चा गायब था।

अगले दिन सुबह 6 बजे डॉ. मेहरा ने पाया कि नर्स रीमा गायब है। CCTV कैमरे में देखा गया कि वह नर्सिंग रूम में गई, लेकिन फिर बाहर कभी नहीं निकली। और सबसे हैरान करने वाली बात यह थी कि…

कैमरे में बच्चे की पालना कभी हिली ही नहीं। 

अस्पताल में अफरा-तफरी मच गई थी। नर्स रीमा की रहस्यमयी ग़ायबशुदगी ने सबको बेचैन कर दिया था। CCTV में कुछ नज़र नहीं आ रहा था, और सबसे अजीब बात ये थी — वो बच्चा... अब फिर से अपनी पालना में मुस्कुरा रहा था। जैसे कुछ हुआ ही न हो।

डॉ. मेहरा ने बच्चा उठाया। वह उसे ध्यान से देखने लगीं। उसकी आँखों की पुतलियाँ असामान्य थीं — जैसे किसी बड़े व्यक्ति की आँखें हों। और उसके मसूड़ों में दाँत इतने तेज़ थे कि अगर वह काटता, तो मांस फाड़ सकता था।

“ये कोई सामान्य बच्चा नहीं है,” उन्होंने धीमे से कहा, और लैब में उसका डीएनए टेस्ट भेजने का निर्णय लिया।

पर जब वह लैब पहुँचीं, वहाँ मौजूद टेक्नीशियन रक्तजमा आँखों के साथ बेहोश पड़ा था — और रिपोर्ट की फाइल... जली हुई थी।

नर्सिंग विंग की एक और स्टाफ नर्स, प्रिया, अचानक ग़ायब हो गई। कोई शोर नहीं, कोई चीख नहीं — बस हवा में एक अजीब सी ठंडक और दीवारों पर खरोंच के निशान।

"ये सब उस बच्चे के आने के बाद हो रहा है," एक वार्ड बॉय ने डरते हुए कहा।

अस्पताल के कर्मचारियों ने फैसला लिया कि बच्चे को एकांत में रखा जाए — उसे एक आइसोलेशन रूम में बंद कर दिया गया, चारों ओर कैमरे और सिक्योरिटी लगाई गई।

पर…

रात 12 बजें CCTV पर देखा गया कि बच्चा धीरे-धीरे उठकर बैठ गया। फिर उसने सीधे कैमरे की तरफ देखा। नहीं.. घूरा।

कैमरा ब्लिंक करने लगा। और फिर ब्लैक। सिर्फ एक पल बाद, सिक्योरिटी रूम की लाइट्स बंद हो गईं।

और किसी ने दीवार पर खून से लिखा “वो मुस्कान मासूम नहीं थी।”

पूरे अस्पताल में घना अंधेरा छा गया। जनरेटर चालू करने की कोशिश की गई, लेकिन किसी ने उसके वायर काट दिए थे। चारों ओर सिर्फ सन्नाटा और दूर से आती एक हल्की-सी... हँसी की गूंज।

वही हँसी जो बच्चे के होंठों पर हमेशा टिकी रहती थी वो मुस्कान जो अब डरावनी लगने लगी थी।

डॉ. मेहरा और वार्ड बॉय अर्जुन, टॉर्च लेकर आइसोलेशन रूम की ओर बढ़े। कमरा खोलते ही उन्हें झटका लगा। बच्चा पालने में नहीं था।

लेकिन... कमरा अंदर से बंद था।

दिवारों पर छोटे-छोटे पंजों के खून से बने निशान थे, जैसे कोई... रेंगता हुआ ऊपर छत तक गया हो।

और तब... छत से टपकती लार ने उन्हें ऊपर देखने पर मजबूर किया।

वह बच्चा अब छत से उल्टा लटक रहा था। उसकी मुस्कान और फैल चुकी थी, दाँत लंबे और धारदार और आँखें… इंसानों जैसी नहीं थीं।

अर्जुन चीखा, लेकिन बच्चे ने झपट्टा मारा। अर्जुन ज़मीन पर गिरा, गले से खून बह रहा था। डॉ. मेहरा भागी, लेकिन बच्चा धीरे-धीरे ज़मीन पर उतरा और उनके पीछे चलने लगा — उसकी चाल अमानवीय थी।

डॉ. मेहरा ने खुद को ऑपरेशन थिएटर में बंद कर लिया। अंदर कंप्यूटर से उन्होंने डीएनए रिपोर्ट का बैकअप खोजा। रिपोर्ट ने बताया वो इंसानी बच्चा नहीं था।

उसका जेनेटिक कोड एक दांतीय पिशाच प्रजाति (Tooth Fiend) से मिलता था, जो सदियों पहले मरे बच्चों की आत्माओं से बना था। वो हँसता था ताकि शिकार को सुरक्षित महसूस करवा सके।

फिर, धीरे से… दरवाज़े पर दस्तक हुई।

ठक… ठक… ठक…

और फिर सुबह 6 बजे एक नई नर्स अस्पताल में आई। सारा अस्पताल खाली था। कोई स्टाफ नहीं। एक अजीब-सी सड़ांध फैली हुई थी।

फिर उसे एक कमरा दिखा ऑपरेशन थिएटर। दरवाज़ा धीरे से खुला... अंदर पालने में एक मासूम सा बच्चा मुस्कुरा रहा था।

नर्स ने उसे गोद में लिया, और उसकी उँगलियाँ धीरे-धीरे उसके चेहरे की ओर बढ़ीं... अंत या शायद... एक नई शुरुआत?


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