प्रभात मिश्र

Romance Tragedy

4.6  

प्रभात मिश्र

Romance Tragedy

स्वप्न भंग

स्वप्न भंग

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वैसे तो दिग्विजय और प्रतिभा एक दूसरे को कई वर्षों से जानते थे, पहला उनका एक दूसरे से परिचय सहपाठियों के रुप में हुआ, कालांतर में दोनों मित्र बने, मित्रता का साहचर्य कब आकर्षण में परिवर्तित हो गया शायद ही दोनों को पता हो, किसने सोचा होगा कि व्यक्तित्व के दो ध्रुवों का प्रतिनिधित्व करने वाले ये दोनों कभी इतने घनिष्ठ मित्र भी हो सकते हैं, परंतु कहते हैं न विपरीत में आकर्षण प्रकृति का अवश्यंभावी नियम हैं, संभवतः वही नियम इनके बीच भी कार्यरत था।

दिग्विजय, जितना बहिर्मुखी, मस्तमौला, बहुआयामी प्रतिभा का धनी, मित्रों के बीच प्रिय, कुशल वक्ता और व्यवहार कुशल था, प्रतिभा उतनी ही शांत, सीमित मित्रों वाली, अल्पभाषी और स्वकेन्द्रित स्वभाव की थी।

विद्यालय समाप्त होने के बाद भी दोनों के बीच संचार उपकरणों के माध्यम से निरंतर बातचीत का सिलसिला चलता ही रहा, यद्यपि दोनों उच्च शिक्षा के लिए अलग अलग शहरों में थे फिर भी शायद ही ऐसा कोई दिन गया होगा जब दोनों की आपस में बात न हुयी हो, प्रतिभा का कोई भी जन्मदिन हो जब दिग्विजय ने सबसे पहले उसे बधाई न दी हो या कोई उपहार या कार्ड न भेजा हो। जब कभी भी दिग्विजय को अवसर मिला वो किसी न किसी बहाने से प्रतिभा के शहर उससे मिलने अवश्य ही जाता था। दोनों कभी दिन भर सड़कों पर घूमते रहते या किसी पौराणिक या पुरातात्विक स्थान की खाक छानते रहते।

संचार क्रांति के बाद से तो दोनों रात दिन एक दूसरे से बात करते रहते, एक तो दोनों घर से दूर तो घरेलू अनुशासन का भी भय नहीं था दूसरे संचार क्रांति के लोक लुभावने अवसर, इसी बातचीत में दोनों कब एक दूसरे के प्रति आकर्षित हो गये, दोनों को ही पता नहीं चला। कहते हैं न दबाव का एक सिद्धांत हैं कि जैसे ही दबाव का कारक हटता हैं दमित वस्तु बहुत तेजी से फैलती हैं, प्रतिभा पहली बार घर के अनुशासन से बाहर निकली थी, छात्रावास का वातावरण और भय मुक्त वातावरण में उसकी इच्छायें पल्लवित होना प्रारंभ कर चुकी थी, यद्यपि वो समझदार थी पर सामाजिक व्यवहारिकता से उतनी परिचित नहीं थी, दिग्विजय समाज के चाल चलन को अच्छे से समझता था, इसलिए जब भी कभी प्रतिभा भविष्य के संदर्भ में बात करने लगती वो उसे व्यवहारिक ज्ञान की घुट्टी पिलाने लगता। इतने समय से एक दूसरे के साथ होने के बाद भी दिग्विजय ने कभी मर्यादा की सीमा के उल्लंघन का प्रयास नहीं किया, वो हमेशा प्रतिभा के सम्मान के प्रति सजग रहता। परंतु नियति बहुत क्रूर होती हैं और विधान करते समय भाजक के विषय में कुछ नहीं सोचती।

जब से दिग्विजय प्रतिभा से अंतिम बार मिलकर लौटा, तब से प्रतिभा उसके फोन का जवाब नहीं दे रही थी, यदि उठा भी लेती तो कोई न कोई बहाना बनाकर टाल देती। प्रतिभा के व्यवहार में आया ये परिवर्तन दिग्विजय की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि जो लड़की उसके एक फोन पर दौड़ी चली आती थी वो अब उससे बात करने से कतरा रही हैं। दिग्विजय सारा दिन बस उसी दिन के बारे में सोचता रहता आखिर क्या गलत कर दिया उसने उस दिन और जवाब न मिलने पर मूर्खों की तरह प्रतिभा से संपर्क करने का प्रयास करने लगता। सदैव मुसकुराने वाले के चेहरे पर भूले से भी हँसी देखने को नहीं मिलती, क्रोध मिश्रित शोक से सूज गयी उसकी आँखें ऐसी प्रतीत होती थी कि मानो समय के ज्वार में स्वप्नों के भग्न अवशेष बह कर दूर चले गये हो, और रह गया हो तो स्वप्न भंग से जागा हुआ व्यक्ति किंकर्त्व्यविमूढ़ विस्मित और अंतर्द्वंद्व में उलझा हुआ


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