हमसफर
हमसफर
संसार में शक्तिशाली से शक्तिशाली व्यक्ति को भी एक न एक दिन किसी सहारे की आवश्यकता पड़ती ही है , वह चाहे किसी भी स्वरुप में हो, शायद इसी विचार को ध्यान में रख कर विवाह नामक एक संस्था का निर्माण हमारे पूर्वजों ने किया होगा | विवाह एक ऐसा संबंध जिसमें दो व्यक्ति एक दूसरे का आयु पर्यंत साथ देने का वचन एक दूसरे को देते हैं, इसीलिए उन्हें हमसफर भी कहाँ जाता हैं | सही ही तो है जीवन के इस अनिश्चित सफर में उतार चढ़ाव में जो आपका साथ दे उसे हमसफर नही कहेंगे तो और क्या कहेंगे ?सुचित एक अंतर्मुखी कोमल हृदय वाला नवयुवक था, दुनियादारी से दूर, सीमित परिचित लोग, अपने काम से काम रखने वाला | उसकी दुनिया उसके परिवार और कार्यालय तक ही सीमित थी मानो कबीर ने उसके लिए ही कहा हो " कबीरा खड़ा बाजार में माँगे सबकी खैर | ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर ||" निर्लिप्त सी उसकी जिंदगी माता पिता की स्नेह छाँव में सरलता पूर्वक व्यतीत हो रही थी | विवाह योग्य सुचित की तटस्थता और सरलता प्रायः उसके माता पिता को चिंतित कर देती थी , वो भली भाँती जानते थे कि वर्तमान संसार में इस सरलता के साथ सुचित को अनेको कष्टों का सामना करना पड़ेगा संभवतः इसीलिए वो उसका विवाह किसी ऐसी लड़की से करवाना चाहते थे जो सुचित के साथ ही साथ उनकी अनुपस्थिति में घर के अंदर और बाहर दोनों की व्यवस्था समान रुप से संभाल सके |
कहते हैं ना जिस वस्तु को आप पूरी तन्मयता से चाहते हैं वह आपको मिल ही जाती हैं | सुचित के माता पिता को भी मित्रा के रुप में सुचित के लिए योग्य सहयोगी मिल ही गया |
, परिवार की विषम परिस्थितियों के कारण जीवन संघर्षों को झेल कर आगे बढ़ी थी वह, इसलिए व्यवहारिकता और संसारिकता की अच्छी समझ थी उसे, अपनी प्रतिभा और मेहनत से शासकीय विद्यालय में शिक्षिका के पद पर कार्यरत होने से आत्मविश्वास से परिपूर्ण मित्रा, सुचित के लिए उसके माता पिता की पहली पसंद बन गयी |
दोनो परिवारों की आपसी सहमति से सुचित और मित्रा विवाह बंधन में बंध गये, परंतु यह इतना सरल नही होने वाला था, दोनो स्वभाव में दो ध्रुवों पर थे | महत्वाकांक्षी मित्रा अपनी नौकरी नही छोड़ना चाहती थी जबकि प्रदेशांतर के कारण उसका स्थानांतरण संभव नही था और सुचित को उसका यू विवाह के बाद घर से दूर रहना नही भाता था अतः दोनों में प्रायः मनमुटाव हो जाया करते थे | यद्यपि सुचित बहुत सुलझा हुआ व्यक्ति था फिर भी इस बात को लेकर वह प्रायः ही मित्रा से नाराज हो जाता , अंतर्मुखी होने के कारण वह इसे प्रकट तो नही करता पर धीरे धीरे वह अवसाद ग्रस्त होता चला गया | हाँलाकि मित्रा ने अपनी तरफ से घर परिवार की जिम्मेदारियाँ उठाने मे कोई कसर नही छोड़ रखी थी , खाना बनाने के लिए बावर्ची से लेकर घर की सारी आवश्यकताओं का वो ध्यान रखती थी, एकाध दिन का अवकाश मिलने पर भी भाग कर घर आ जाती थी, शनिवार रविवार तो जैसे नियत ही थे कि मित्रा घर आयेगी ही परंतु फिर भी बाकी के दिनों में उसकी अनुपस्थिति सुचित को बहुत खलती थी |
माता पिता के देहांत के बाद तो जैसे सुचित बिल्कुल अकेला ही पड़ गया था, यदि मित्रा न होती तो शायद उसका अवसाद उसे भी निगल ही गया होता , वह दिन भर घर में पड़ा रहता , न जाने कब उसे सिगरेट पीने की आदत लग गयी थी , बिस्तर पर लेटे लेटे सिगरेट के कश लेता हुआ दिनभर जाने क्या सोचता रहता था | ऐसे समय में मित्रा ने उसे संभाल न लिया होता तो जाने क्या हो जाता | मित्रा उसे लेकर न जाने कितने चिकित्सकों से मिली , कितने उपचार करवाने के बाद तब जाकर वह वापस कार्यालय जाना प्रारंभ कर पाया | अब सुचित के जीवन का एक मात्र अवलंब मित्रा ही थी , मित्रा ही उसकी दोस्त भी थी, पत्नी भी थी और माँ भी थी | जितना ध्यान मित्रा सुचित का रखती थी उतना तो शायद उसने अपने बच्चों पर भी नही दिया था | घर की सारी व्यवस्था मित्रा के कंधे पर थी साथ ही साथ उसका अपना काम और सुचित व बच्चों की जिम्मेदारी भी और वह इसे बखूबी निभा भी रही थी | अक्सर जब कभी भी भागदौड़ वाली अपनी इस जिंदगी में उसे फुर्सत के दो क्षण मिलते वो अक्सर सुचित से भविष्य की योजनाओं की चर्चा किया करती कि काम से अवकाश मिलने के बाद दोनों भारत भ्रमण पर चलेंगे कभी बेटे के पास कभी बेटी के पास दोनों साथ साथ घूमेंगे , सुचित के रिटायरमेंट के बाद वो उसके कार्यस्थल के पास एक घर ले लेंगे और दोनों साथ मे वही पर रहेंगे| सुचित उसकी योजनाओं पर मुस्कुरा कर रह जाता | मित्रा की देख रेख में सभी व्यवस्थायें ठीक चल रही थी समय भी अच्छा कट रहा था |
इस बार जब मित्रा घर आयी तो उसकी तबीयत कुछ ठीक नही थी , वह बहुत थकी हुयी लग रही थी , सुचित को लगा शायद बढ़ती उम्र और यात्रा के कारण वह थक गयी होगी, आराम करने से शायद सुबह तक ठीक हो जायेगी | वैसे भी वो अब अगले महीने रिटायर हो रहा हैं इसके बाद तो वो वही चला जायेगा मित्रा के पास फिर मित्रा को यह हर शनिवार रविवार वाली यात्रा से मुक्ति मिल जायेगी और वह उसके साथ भी रह पायेगा , इन विचारो में लीन वह कब सो गया उसे पता भी नही चला | अगली सुबह भी मित्रा का बुखार उतरने का नाम नही ले रहा था , सुचित की चिंता बढ़ती ही जा रही थी आनन फानन में उसने शहर के सबसे बड़े अस्पताल से एम्बुलेंस बुल वाली थी, मित्रा उसके सामने बेसुध पड़ी हुयी थी , इस अवस्था में वह जैसे तैसे उसे लेकर अस्पताल पहुँचा था , चिकित्सक गहन चिकित्सा कक्ष में मित्रा की जाँच पड़ताल में लगे हुये थे , हर दस पंद्रह मिनट में वो सुचित को दवा आदि की पर्चियाँ पकड़ा देते और वह जब तक उन्हें लेकर आता उसे दूसरे काम बता दिये जाते | तीन दिनों से सुचित गहन चिकित्सा कक्ष के बाहर पड़ा था और मित्रा अंदर बेसुध लेटी हुयी थी , जीवन में ऐसा पहली बार हुआ था जब वह बैठा हो और मित्रा लेटी हो | जबसे वह शादी करके आयी थी सुचित ने कभी एक गिलास पानी भी स्वयं लेकर नही पीया था, हर काम के लिए बस एक ही आवाज बहुत थी "मित्रा" | पर आज वह लेटी हुयी है और कोई सुचित को पानी पूछने वाला भी नही |
तीन दिनों के बाद चिकित्सक ने सुचित को जवाब दे दिया , वह मित्रा जो उसकी एक आवाज पर दौड़ी चली आती थी अब कभी नही आयेगी , जीवन के उस पड़ाव पर अब जब उसे चलने में भी समस्या हो रही हैं , उसे सहारा नही देगी | उसके हमसफर ने सुचित को हमेशा के लिए सफर में अकेला छोड़ दिया जब उसे उसकी सबसे अधिक जरुरत थी |
