सूखे गुलाब
सूखे गुलाब
घर के ड्राइंग रूम में चाय का कप मेरे हाँथ में थमा मुस्कुराते हुए सरला मुझसे बोली," अजी सुनते हो एक बड़ी ही सुंदर व सुयोग्य लड़की है,अपने प्रतीक के लिए "। उसके ही कॉलेज में पढ़ती है,और दोनों एक दूसरे को बेहद पसंद भी करते हैं।
"सुंदर व सुयोग्य तुमने तो कभी उसे देखा ही नही फिर भी उसकी इतनी तारीफ" मैंने सरला की ओर नजर घुमाते हुए उससे प्रश्न किया।
तब मेरी बात को लगभग अनसुना करते वो मुझसे बोली," देखो जी हमारी तुम्हारी बात और थी,अब मॉर्डन जमाना है ।बच्चे ने हमे खुलकर अपने मन की बात बताई यही काफी है।अब हमें भी बिना किसी ना नुकुर के उसकी पसंद को स्वीकृति दे देनी चाहिए।" सरला की बात सुन आज मेरा मन भी अपने जवानी के दिनों में कहीं खो गया। जब मैं भी कालेज में एक लड़की को अपना दिल दे बैठा था।पर उसके लाख मनाने पर भी माता पिता से कभी मन की बात करने की हिम्मत ही न जुटा सका।
और फिर हमारे दिलो की वो कोमल भावनाए कुछ ही महीनों बाद किसी सूखे गुलाब की पंखुड़ियों की तरह टूट कर बिखर गई।
