भूख
भूख
मोहल्ले में आए खेल तमाशे वालो के परिवार को देख आज तो डुग्गु की खुशी का ठिकाना न था। वो भी सभी बच्चो की तरह अपनी माँ का हाथ थामे उनके करतबो को देख देख कर खुश हो ताली बजा रहा था। उनके बांस व रस्से पर चलने वाले करतब जो देखने मे तो सामान्य से लग रहे थे। पर इसके लिये उन छोटे छोटे बच्चों ने कठोर अभ्यास किया था। इस बात को वहाँ उपस्थित सभी ने स्वतः महसूस किया। फिर अंतिम करतब में एक कम उम्र का बच्चा। लोगो के मनोरंजन लिये अपने ही हाँथ से खुद की खुली पीठ पर बेरहमी से कोड़े बरसाए जा रहा था।
जिससे खुश हो वहां के लोग उसके परिवार को कुछ पैसे और रोटियां दे रहे थे। जिन्हें वो परिवार एक बड़े से झोले में सहेज रहा था। उन्हें रोटी देते कल्पना ने सोचा,की ये भूख भी कितनी भयानक होती है। कि आज पेट का गड्डा भरने के लिये,उस बच्चे की पीठ कोड़ो की मार तक को सहने के लिये चुपचाप खड़ी है।
