सुंदर कल्पनाएं
सुंदर कल्पनाएं
अपने रिटायरमेंट के बाद, मनोहर जब अपने पारिवारिक दायित्वों से मुक्ति पाया। तब अपने परिवार व समाज को लेकर उसके मन की कुछ सुंदर कल्पनाएं जो शुरू से ही उसके मन में बसी थी। जिन्हें वो लाख कोशिशों के बाद भी यथार्थ में नहीं बदल पाया। तो बुढ़ापे में उसने कैनवस पर कूची से मन की उन सुंदर कल्पनाओं में रंग भरना शुरू किये। अब खाली समय में यह उसका पसंदीदा शौक बन गया। फिर एक दिन जब उसका पोता जब अपने कॉलेज के कुछ दोस्तों के साथ घर आया। और उसने अपने दादाजी की चित्रकारी की प्रशंसा करते हुए वो चित्र अपने दोस्तों को दिखाए। तब घर में लड़की के होने पर उत्सव मनाता परिवार और घर के बुजुर्ग को उसका हाथ थामे मंदिर ले जाते युवा। जैसे अनेक चित्र देख सभी बेहद खुश हुए और मनोहर की चित्रकारी की बहुत तारीफ करते हुए बोले, दादाजी अब आपकी ये सभी उम्दा तस्वीरें हम अपने कॉलेज की वार्षिक प्रदर्शनी में लगाएंगे। तो यह सुन मनोहर की खुशी का ठिकाना न रहा। उसे ऐसा लगा मानो उसके मन की ये सुंदर कल्पनाएं अब यथार्थ रूप ले रही है।
