हिसाब
हिसाब
"अरे बेटा जरा कुछ पैसे तो दे,मेरे सारे पैसे खर्च हो गए हैं " माँ ने घर मे प्रवेश हुए अपने बेटे से कहा।
"पर माँ अभी कुछ दिनों पहले ही तो आपको दो हजार रुपये दिये थे।"बेटे ने आश्चर्य के साथ माँ से पूछा।वो बोली "बेटा उसमे से आधे से ज्यादा तो मेरी दवाईयों पर खर्च हो गए।और फिर कुछ पैसा त्यौहार पर नेग देने में जाता रहा।और हाँ अब इस उम्र में कमजोर यादाश्त के चलते कुछ खर्चे तो मेरे लिये याद रख पाना भी मुश्किल है।"
माँ की बात सुन बेटा उसके हाँथ में पांच सौ का एक नोट रख झल्लाते हुए बोला,"इसीलिये तो कहता हूँ कि अपने दैनिक खर्चो को तुरंत लिख लिया करो।ताकी पूछने पर सही सही हिसाब बता सको।पर आपको मेरी कोई बात समझ ही कहाँ आती है।" अपने बेटे की बात सुन माँ सोचने लगी कि जीवन भर जिस बेटे पर अपने अगाध स्नेह को वो बिना किसी हिसाब किताब के ही लुटाती रही।वही बेटा इस बुढ़ापे में अब उससे हर खर्च के हिसाब की आपेक्षा रखता है।
