सुनती क्यों नहीं हो मां
सुनती क्यों नहीं हो मां


मानव हैरान, परेशान, मां की ओर देख रहा है, हमेशा तो आप मेरी सुध बिना कुछ कहे भी ले लेती थी, फिर "अब क्या..?बंद भी करो अब... हो गयी ना सजा..!"
लेकिन मां ने उसकी ओर फिर भी नही देखा, वो सूनी आंखो से दूसरी ओर ही देखती रही...!
अब वो झुंझला गया... "आप सुनती क्यों नही हो?"
मां ने फिर भी नही देखा... वो कुछ प्लास्टिक का इधर उधर पड़ा सामान हटाने पर लग गयी... !
मानव अभी भी उनके पीछे आया... "सुन लो ना, मां...!"
मां वहां से बगीचे में आ गयी टूटी फूटी पेड़ों की डालियों को सही करने लगी... कटे हुए पेड़ों को देखकर परेशान होती, बगीचे के अंदर घुस आये, कनसट्रक्शन को देखकर सोचती रही इसको कैसे सही किया जाए..!
मानव फिर झुंझला गया, "मेरी तो आप एक भी नहीं सुन रही हो, और जो खराब हो चुका है ,उसकी ही आपको फिक्र है...!"
"आप ये मैन गेट का लॉक खोल दो अब... मुझे बाहर जाना है... ऐसे कैसे घर में बैठा जा सकता है...? ऐसा भी क्या
खतरा है, बाहर... दिख तो रहा नही, फिर ..क्या कर लेगा?"
अब मां ने ..मानव को घूर कर देखा...!
"वो सहम गया.. "
"अच्छा चलिए मैं अच्छे से अपने आपको लपेटकर जाऊंगा, हाथ मुंह सब कवर करके..!"
"बाहर जाना बहुत जरूरी है, सैर सपाटा भी ,ये जो चारो ओर हाहाकार मचा है, ये झूठ है... ये सब झूठ लगता है तुमको... "
मां ने उसको बहुत तेज डांटा.. अब मां के सब्र का बांध टूट गया था .."
और वो नाराज होकर तेज कदमो से जाने लगी... ""
मानव ने जाती हुई मां का आंचल पकड़ लिया," ऐसे कैसे मुंह फेर रही हो मां... अब आप जो कहोगी, वही करूंगा, लेकिन ये कहर तो खत्म हो जाएगा ना मां... बोलिए ना..""
मां का कलेजा अब पिघलने लगा ,लेकिन फिर भी वो ऊपर से कठोर बनी रही...!
मानव ने छोटे बच्चे की तरह अपनी सारी जिद छोड़कर ,मां की गोद में सर रख लिया और इंतजार करने लगा कि मां कब पहले की तरह उसके बाल सहलायेगी ...!!