सुबह का आनन्द
सुबह का आनन्द


मै रोज अपने घर में उनका स्वागत करती हूं...
हर सुबह पूरब दिशा में जैसे ही लालिमा छा जाती है...वैसे ही खिडकी से सारे पर्दे हटाकर ...बालकनी का दरवाजा खोल देती हूं...सभी कमरो के दरवाजे खोलकर बच्चो को उठा देती हूं फटाफट....और फिर कुछ ही देर में संतरी रंग के सूरज चाचू दर्शन देते हैं....वाह ...एक मिनट के लिए ठिठक जाती हूं ...अपनी सारी व्यस्ततायें छोडकर....रोज होने वाली एक ही तरह की ये घटना कितनी नयी और अद्भुत लगती हैं....इसकी बयानगी ही नही...मार्निंग ब्लिस अगर कुछ है तो यही है ...मेरे लिए....उसके बाद जब किरण किरण फैलती हैं तो मैं देखती हूं कि घर के किस किस कोने तक आई है.....और कमरों में भी किरणो का आकर पसर जाना बहुत रोमांचित करता हैं... साथ ही बालकनी में चिडिंयो को दाना चुगते देखना इस दृश्य में चार चांद लगा देता है....बच्चो को स्कूल भेजने की आपाधापी के बीच ये मार्निंग ब्लिस मेरे मन को खिला खिला रखता हैं....मैं हर रोज बांहे फैलाकर किरण किरण का स्वागत करती हूं....।
बस इसीलिए ...केवल इसीलिए....मुझे ईस्ट फेसिंग घर बहुत अच्छे लगते हैं..(..शब्दो पर ध्यान दिया जायें ...बहुत अच्छे...क्योंकि मेरा मानना ये भी है कि ...मकान जो अपने भीतर एक परिवार को आश्रय देते हैं...सभी अच्छे होते हैं..क्योंकि रौनके तो परिवारो से ही हैं...लोगो से ही हैं...)
हां तो मैं कहां थी...ईस्ट फेसिंग घर मुझे बचपन से ही बहुत पसंद है ....वास्तुविदो के अनेक कारण है ऐसे घरो को एप्रिसियेट करने के पीछे ....लेकिन मेरा तो एक और एक ही रोमांच है सनराइज देखना....पापा का घर तो ईस्ट फेसिंग ही था...(.अभी भी है...लेकिन सूना पडा है ...अब वहां कोई नही हैं...)अब इस घर ने भी मुझे मेरे मार्निंग ब्लिस से मिलवाया है...इसलिए कृतज्ञ हूं ...प्रकृति के प्रति...ईश्वर के प्रति....।
शायद मैं कुछ और लिखने वाली थी ...लिख कुछ ओर गयी...खैर कोई नही ...विचारो का प्रवाह जैसे भी हो...उसे होने देना चाहिए.....यही तो जीवन है...खुद ब खुद प्रवाहित होता जाता है...।
जीवन कभी भी ठहरता नही है...
आंधी से ...तूफां से ये डरता नही है...
तू ना चलेगा तो चल देंगी राहें ...
तुझको चलना होगा....।।।