परिधान
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अरे ! आसीमा, आज.. निम्मी कहां है..'"
उसको एक शादी में जाना है मैम..वो आज नहीं आयेगी..""
अरे तो कुछ देर आकर अपना काम पूरा कर जाती ..""
क्या ..उसे पता नहीं कि आज कितने ड्रेसज देने हैं, कम्पलीट करके..."परिधान बूटिक '"का नाम उसके काम की वजह से ही है..""
पर तुम लोगो को कभी समझ नहीं आता..""
मैम...कुछ कपड़े कल चले जायेंगे..""
इतना तो चलता है..."
नहीं ...यहां इतना उतना कुछ नहीं चलता..'"
हम पहले ही सोच समझ के टाइम लेते हैं..और उस पर फिर खुद ही डिले करें..।"
और उससे भी बड़ी बात जब कोई आँखो में अपनी नयी ड्रेस का सपना लेके आता है...और वो उसे ना मिले तो उसका सारा क्रेज ही खो जाता है..।"
मुझे हर कम्पलीट ड्रेस के साथ उसे पाने वाले की खुशी देखना बहुत अच्छा लगता है..।"
अरे तुम नहीं समझोगी...।"
चलो तुम काम करो..।""
लगता है आज मशीन पर मुझे ही बैठना होगा..।"
कहते हुए....रौनक ने फटाफट मशीन संभाल ली..।"
और सिलाई में मशगूल हो गयी..।"
जब वो पैरो से सिलाई मशीन चलाती थी, तो उसे लगता जैसे हवा में उड़ रही हो ...यही उसका पैशन था..।"
घूमती मशीन के साथ जाने कब बीस साल पीछे जा खड़ी हुई..। पांच बच्चों में सबसे बड़ी थी वो ..चार बहने फिर एक भाई ..यही कोई 14 बरस की रही होगी सब समझने लगी थी ..माँ बापू ने बेटे के लिए उन चार बहनों को धरती पर उतार दिया था ...ना उन्हे किसी के पढ़ने पढ़ाने से कुछ लेना देना ना किसी और सुविधा से ..। खुद खेतो में मजदूरी करते दोनो ...रात दिन, बस दो वक्त की रोटी का संघर्ष ...कपड़े भी कोई पुराने दे जाता वही पहनती चारों बहने...बस भाई के नखरे उठाये जाते पता नहीं कौन से ताले की चाबी समझ लेते हैं , बेटों को मां बाप..। हम बहनों के जिम्में सारे घर का काम..और गालियां भी पड़ती कभी कभी ..जब मां ज्यादा परेशान होती ..वो भी क्या करती, गरीबी ने उसे, वक्त से पहले बूढ़ा कर दिया था..दिन पर दिन कमजोर होती जाती.. और बिना मजदूरी के गुजारा नहीं ..बस एक बात अच्छी थी उसकी, वो अपनी बेटियों को किसी के खेतों पर नहीं भेजती..बापू भी कहते कि '"इन्हे ले जाया कर '"..काम में तेरा साहरा हो जायेंगी ,लेकिन नहीं ..वो साफ मना कर देती ..शायद वो उन नज़रों को पहचानती थी जो जवान होती बच्चियों के ऊपर लोग रखते हैं..।
पास ही सरकारी स्कूल था..जब टीचर जी, मां के पास आई थी कि बच्चियों को स्कूल भेजो तो उन्होने मना नहीं किया...
बोली ..'"देख ल्यो मैडम" म्हारे पास देणे को तो एक भी रूपा ना पढ़ाई के लिए और घर का रोटी पानी झाडू बुहारी भी इनी को करणा ...
"वो आप चिंता मत कीजिए.."
टीचर जी ने उत्साहित होते हुए कहा था.."
पैसे नहीं लगेंगे ..सरकार देगी कॉपी किताबें और एक वक्त का खाना भी..।"
मां को और क्या चाहिए था..जाने दिया..।
उसकी लगन देख कर टीचर जी उसके पास बैठ जाती ..और पूछती बताओ रौनक क्या करना चाहती हो..।
मैडम जी...क्या गरीबों को चाहते रखनी चाहिए..?"
आप जानती तो हो घर का हाल..।"
अरे हां...क्यूं नहीं रखनी चाहिए...।"
तुम बुनो सपने...
छोटे छोटे ही सही..
फिर उन्हे पूरा करने की कोशिश करो ..मैं मदद करूंगी..।"
उसकी मासूम आंखे चमक उठी ..."
सच .."
हां, सच ..बताओ क्या चाहती हो..।"
मैडम जी मैं ज्यादा तो नहीं जानती...लेकिन मैं इस गरीबी के चक्रव्यूह को तोड़ना चाहती हूं..।
अब मैने पढ़ने की शुरूआत की इस उम्र में..कब मैं पढ़ाई लिखाई पूरी करूंगी ..पता नहीं इस स्कूल से आगे भी जाऊंगी या नहीं ..।
यहां तो आपने मुझे सीधे कक्षा पांच में ले लिया.."
अरे ..ऐसे थोड़े ही ले लिया तुम साल भर तक मेरे पास आके पहले भी पढ़ती रही हो ...तभी तो मैने तुम्हारी मां से बात की...तुम में इतनी लगन है कि ऐसा लगता है ..सब कुछ जल्दी जल्दी सीखना चाहती हो..।
जी मैडम जी...मेरे अंदर छटपटाहट है..मैं इस गरीबी से लड़ना चाहती हूं.. जिसमें दो वक्त की रोटी पाने में ही इंसान मर खप जाता है..।
कह तो तुम सही रही हो..""
देखो इससे निकलने का एक ही तरीका है ..सोच समझ कर सुनियोजित तरीके से एक आय बनायी जाये..।"
जी मैडम...जी.."
और हां...सोचने समझने के लिए पढ़ना बहुत जरूरी है..इसलिए पढ़ना कभी मत छोड़ना..."।
जी ..नहीं छोडूंगी.."
जब तक यहां हूं..ये स्कूल तो कैसे भी पूरा करूंगी.."।
शाबास!
अच्छा बताओ ,सिलाई कढ़ाई जानती हो कुछ..।
जी जानती हूं...मां ने सिखाया ..थोड़ा बहुत खुद भी कर लेती हूं..।
घर में मशीन नहीं हैं सूई धागा ही चलाना जानूं अभी तो..।
चलो कोई नी..."
कल से तुम स्कूल के बाद आंगन बाड़ी जाना सिलाई कढ़ाई सीखने...'"
तब कुछ ओर सोचेंगे आगे.."
जी मैडम जी..."
उस दिन पहली बार उसकी मायूस आँखो में चमक आई थी..
उसे लगा था कि वो अब शायद कुछ कर पायेगी.."
टीचर जी की तरह ही उसने आंगन बाड़ी की बहनजी का भी दिल जीत लिया था.. और उन्होने खुश होकर उसे सरकार से ही एक सिलाई मशीन दिलवा दी थी.."
फिर क्या था...'"
फिर तो उसने अपनी पूरी ऊर्जा ..तन...मन उसी में लगा दिया ..बहुत जल्दी कपड़ों की सिलाई करनी शुरू कर दी ,और बाहर से भी लोग कपड़े सिलवाने आने लगे ...बहनों को भी उसी काम में लगा लिया...हालांकि बहने जी चुराती लेकिन दो पैसे आते किसको अच्छे नहीं लगते ..जिंदगी तो सभी की बेहतर हो रही थी ..इसलिए लगी रहती साथ...।"
और साथ ही गांव के स्कूल से दसवीं की परीक्षा भी पास कर ली ...।।
और एक दिन टीचर जी ने ऐसी खबर सुनाई कि उसके सपनों को पंख मिल गये...""
रौनक ...अब तुम अठारह साल से ऊपर हो गयी हो..।
हाई स्कूल की परीक्षा भी पास कर चुकी हो..।
अब तुम किसी भी बैंक से स्वरोजगार के लिए लोन लेकर ..अपना बूटिक खोलो..।
क्या ये संभव है... मैडम जी..।
हां ,संभव है...कल चलना मेरे साथ बैंक में..।
और फिर सामने आया ये *..परिधान*
"परिधान."..मेरी जान बसती है इसमें..ये लड़कियाँ नहीं समझती.."
मां बापू तो कब के मर गये ...गरीबी और बीमारी लील गयी उन्हे तो ...,
बहनों की उसने शादियाँ करा दी ...वे अपने अपने घरों में ईश्वर की दुआ से खुश हैं..।
और भाई...कुछ नहीं कर पाया ..नशे की लत का शिकार है ..अभी भी नहीं सुनता...कभी किसी बहन से कभी किसी बहन से पैसे मांगता रहता है...मन बहुत वितृष्णा से भर जाता है कभी कभी ...क्यूं एक बेटे के लिए लोग इतनी बेटियों की बलि चढ़ा देते है ..चाहे पैदा करके उन्हे गरीबी का दंश झेलने को छोड दें या गर्भ में ही मरवा दें ...है तो बलि ही..।
और फिर ये बेटे किसका उद्धार करते हैं...ना इनसे मां बाप के लिए कुछ होता...ना अपने खुद के लिए..।"
मैडम...मैडम..
आसीमा आवाज़ दे रही थी..
मिसेज कपूर आई है...अपनी ड्रेसेज लेने.."
अरे हां...बिठाओ उन्हे...'"
वो जैसे लम्बे सपने से जगी थी...अपनी पूरी जिंदगी को ही दोहरा लिया ..आज उसने..।
नमस्ते, मिसेज कपूर...ये लीजिए...आपकी ड्रैसेज तैयार हैं..।"
रौनक तुम्हारा यही अंदाज़ मुझे बहुत पसंद है.."
जब कहती हो...तभी तैयार मिलती हैं ड्रैसेज ..."।
लीजिए...ट्राई तो कीजिए..."
घर जाकर ही कर लूंगी...तुमने बनाया है तो कमीं होगी ही नही.."
जी...आपका प्यार है बस..'"
अच्छा चलती हूं....रौनक.."
जी आईयेगा फिर..."
हां..परिधान के सिवाय कहां जाऊंगी.."
मुस्कुराते हुए...मिसेज कपूर चली गयी .."
और रौनक फिर भावुक हो गयी..."
परिधान...एक दिन की बात है ही नहीं ..."
ये मेरी जिंदगी की अग्निपरीक्षा हैं.."'मेरे हौसलों की उड़ान..""
आज आँखो में नमीं है लेकिन होठों पर मुस्कान हैं..।"