बागो में बहार है
बागो में बहार है
आसमान एकदम साफ है.. नीला, नहीं.. हल्का नीला... नहीं आसमानी... वही आसमानी जो चित्रो में ही देखते रहे, पहले हम क्योंकि आसमान में अक्सर धुंध रहा करती थी..!
आसमान साफ है दूर, पूरब दिशा के, उत्तर पूर्व कोने से सूरज अपनी सुनहरी किरणें लिए धीरे धीरे आंखे खोल रहा है, चिड़ियां चहचहा रही हैं, पेड़ पौधो की छटाएं देखते ही बनती हैं.. हरियाली ही हरियाली.. चारो ओर, नयी कोंपलें निकली हैं... फूलों के पौधे कलियों से लदी हैं.. हवाएं मानो गुनगुना रही है...!
ये कौन सा मौसम है...! क्या पहली बार आया है..?
नहीं, मौसम तो हर बरस आता रहा लेकिन इतना नया इस बार ही लगा है क्योंकि लोग सब अपने घरों में है, देश में.. विदेश में लोक डाउन हुआ है, बाहर निकलना खतरा मोल लेना है क्योंकि एक अदृश्य विषाणु आया है... जो मानव से मानव में ट्रांसफ़र हो जाता है, इसलिए तय हुआ है कि एक दूसरे से मिला ना जाए... कामकाज ठप्प है, स्कूल, कालेज, फैक्टरीयां बंद है.. सड़क पर गाड़ियों की
मारामार नहीं है.. !
मानव जाति में हडकंप मचा है, लेकिन प्रकृति को देखो तो लगता है, उत्सव मना रही है, मनाएं भी क्यों ना..?
मनुष्यों ने विकास के नाम पर, मनोरंजन के नाम पर अपनी इच्छाओं को इतना फैलाव दिया कि चारो ओर पोल्यूशन ही पोल्यूशन हो रहा था... हर तरह का पोल्यूशन, हवा से लेकर पानी तक... ध्वनि तक, और मानसिक प्रदूषण जो सबसे खतरनाक...!
ऐसा नहींं कि इन परिस्थितियों से जूझने को प्रयास नहीं हो रहे थे, हो रहे थे.... लेकिन वे सब प्रयास नाकाफी थे, उनकी रफ्तार इतनी धीमी थी कि सुधार दिख ही नहीं रहा था, तो प्रकृति ने अपने सिस्टम को रीबूट करने की जिम्मेदारी खुद ही के हाथो ले ली... और नतीजा सब सामने हैं ...बागो को, खेतो को, निहारिये जरा तो पायेंगें कि गौरैया लौट आयी हैं, कोयले बोल रही हैं, मोर नाच रहे हैं, आम के पेड़ फूलों से बौराये हैं... क्या, महसूस होता है, ये सब देखकर ....यही ना,
""बागो में बहार है...! ""