अफवाह
अफवाह


हे भगवान सुबह से काम में लगे लगे दिन के दो बज गये। सुबह से आराम ही नहीं मिला.. सबके घर पर रहने से कुछ वक्त तो हंसी मजाक में जाया हो जाता है.. और पहले से दुगना टाइम किचन में। इस लोकडाउन में बस आराम में ही थोड़ा खलल पड़ा है, बाकी तो अपना क्या वही पहले सी दिनचर्या। !
चलो एक घंटा आराम कर लूं ..नहीं तो फिर कहीं से कोई आवाज़ आ जायेगी, चाय दे दो, कुछ खाने को दे दो।
बस जरा लेटी ही थी कि फोन की घंटी बजी, स्करीन पर नाम देखा, मालती। (मेरी मेड)
"हैलो.। "
"नमस्ते दीदी..."
नमस्ते.. कैसी है तू.?
" क्या हाल तेरे गाँव का, जो तुझे समझा कर भेजा था, सबको समझाया ना।"
जी दीदी, सब समझाया, लेकिन यहां कुछ अलग ही चलता,
"क्या.. लोग बाहर तो नहीं निकल रहे.. "
"नहीं दीदी, बाहर तो नहीं निकल रहे, लेकिन रोज नयी नयी बात निकल रही है.."
जैसे.. कल सब बोले घर के बाहर हल्दी के छापे लगाओ हाथ के तो कोरोना नी आयेगा.. "
अरे, वो वैसे भी नहीं आयेगा जब तक घर पर बैठोगे, बाहर जाकर ही लगने के चांस हैं.. ये सब अफवाहें है.. "
हां दीदी.. समझती मैं, लेकिन बाकी लोग नहीं समझते। "
और ये तो फिर भी ठीक था,
आज तो सब बोल रे कि जो आज रात सोयेगा, वो पत्थर का हो जाएगा, इसलिए सब रात भर जागने की बात कर रहे.. ""
अरे ये तो बहुत अजीब अफवाह है..."
आराम से पूरी नींद सोओ कुछ नहीं होगा.. "
मैं तो डर ही गयी थी, इसलिए आपको फोन किया.. "
अरे नहीं होगा.. कुछ, मैं कह रही हूं ना.. "
टी वी तो देखते हो.. क्या टी वी में ऐसा कुछ सुना.. "
जी नहीं दीदी.. "
तो फिर.. "
बीमारी है.. वायरस से फैलती है और वायरस एक आदमी से दूसरे आदमी में, इसलिए बोल रहे कि दूर दूर रहो.. घर से बाहर मत निकलो ...बस इतना ही ख्याल रखना। ""
बाकी सब अफवाहें है..ध्यान मत दो.. "
अफवाहों के कोई पैर नहीं होते, वे ऐसे ही चली आती हैं.. "
आराम से सोना.. जो कोई ना माने, मेरी बात कराना उससे। बस बाहर मत जाना और साफ सफाई का ध्यान रखना.. "
जी दीदी.. "
ठीक है.. मालती.. "
कोई जरूरत हो तो फोन से कहना.. "
हम पूरी मदद करेंगें.. "
जी दीदी.. रखती हूं फोन.. " नमस्ते.. ""
(कहानी काल्पनिक है लेकिन इस तरह की अफवाहें हाल ही में, ग्रामीण इलाकों में फैली हैं..)