सफर में धूप तो होगी
सफर में धूप तो होगी
जयदीप की शादी की २५वीं सालगिरह में शामिल होने हेतु पहुंचने में थोड़ी देर हो गयी थी। हमें हैदराबाद से जाना था जबकि दिल्ली वाले दोस्तों ने एक दिन पहले से कैंपिंग कर रखी थी। विशाखापट्नम के समुद्र के किनारे होटल बुक था। आसमान में चाँद और नीचे हसीन जोड़े मानो पूरी प्रकृति पर तरुणाई छायी हो। इस सेलिब्रेशन में वो सब लोग मौजूद थे जिन्होंने इन दोनों की शादी में भी शिरकत की थी। सभी डांस फ्लोर पर थिरक रहे थे। सबके चेहरों का उत्साह था और दुल्हन का लावण्य ऐसा आकर्षण बिखेर रहा मानो स्वयं रति ने उसका श्रृंगार किया हो।
मुझे देख जया बाहर आ गयी और हम समुद्री तट पर टहलने लगे। सबसे पहले देर से आने की क्षमा मांगते हुए, आखिर मैंने पूछ ही लिया "पेरेंट्स को क्यों नहीं बुलाया, आशीर्वाद ही देकर जाते, कितनी बड़ी ख़ुशी का दिन है। "नहीं यार! आज हम साथ हैं तो बस तुम दोस्तों की वजह से! इसलिए हमारा समवेत निर्णय इस खास दिन को दोस्तों के साथ ही बिताना था। " समुद्र की लहरें हमारे पैरों को भिगो गयी और दुल्हन की बातों ने मन को। मैंने झट से उसे गले लगा लिया। फिर तो अतीत की कड़ियाँ जुड़ती गयी। एक -एक कर सबकुछ चलचित्र के समान नज़रों के सामने घूम गया।
जया और जयदीप दोनों कॉलेज फ्रैंड्स थे। छुट्टियों में दोनों साथ ही घर जाते। जयदीप बहुत शर्मीला था। पहले कोई गर्लफ्रैंड जो नहीं रही और जया उतनी ही चंचल। आश्चर्य की बात ये थी कि जयदीप ने चार वर्षों तक उससे औपचारिक बातों के सिवा कुछ ना कहा। बस ट्रेन में चाय पिलाना, उसकी अटैची उठाना और स्टेशन से घर तक छोड़ कर आना ही करता रहा, मानो उसने अपने कर्त्तव्य खुद ही निर्धारित कर लिया हो। ८९ बैच की बात कर रही हूँ, तब प्यार ऐसा ही हुआ करता था। हम दोस्तों को जैसे ही जय की फीलिंग्स का अहसास हुआ, हमने उन्हें जय स्क्वेयर बुलाना शुरू कर दिया और इसमें जय को कोई आपत्ति ना थी। पर जया जरूर टोकती-
"हे! डोंट ऐम्बर्रेस्स हिम !" "ओहो! तुझे बड़ी चिंता है। "हमारा जवाब होता। "क्यों ना होगी ? वोलंटरी बॉडी गार्ड है मेरा। "उसके इस जवाब पर हम सब हँस पड़ते।
ये है कहानी की हीरोइन जो कायस्थ परिवार की तीसरे नंबर की बेटी। बिहार का परिवेश देखें तो कायस्थों ने सबसे ज्यादा उन्नति की। व्यर्थ के जातिवादिता से दूर, और पढ़ने-पढ़ाने में पूर्ण जीवन अर्पित किया। हीरो पटना के जाने -माने ब्राह्मण परिवार का पुत्र ,थोड़ा जयदीप के बारे में बताना चाहूंगी। ६ फीट का हैंडसम जवान और बेहद सभ्य-सुसंस्कृत! अगर वो किसी को प्रोपोज़ करता तो कभी कोई उसे मना ना करती। पर ये शर्मीला जय, जया की बातों का भी बस हाँ-ना में जवाब देता।
फाइनल परीक्षाएं समाप्त हो गयी और सब अपने घर आ गए। जयदीप ने जया को घर छोड़ते हुए कहा-"मैं कल आता हूँ, घर में रहना। "फिर तो जया रात भर सो ना सकी। जया के घर आने की बात बोलकर गया था और आज सुबह-सुबह ही वह आ गया उसके मन में क्या चल रहा था, इन बातों से अनभिज्ञ जया ने उसे अपने माता-पिता से मिला दिया।
जयदीप ने बताया "वह उनकी पुत्री जया से विवाह करना चाहता है। " ये सब अचानक सुनकर जया बिल्कुल हड़बड़ा गयी जब पिता ने प्रश्न भरी निगाहों से उसकी तरफ देखा तो उसने अनजान चेहरा बना लिया। उसके पिता श्रीवास्तव जी कॉलेज के लेक्चरर थे। गंभीर आवाज़ में बोले "बेटा,अब ये बातें तो बड़े तय करेंगे। " मुझे सोचने का वक़्त दो, अभी तो मैंने बेटी की मर्ज़ी भी नहीं पूछी है।
तभी जयदीप ने, जया से पूछा "मुझसे शादी करोगी। " जया ने हँसते हुए जवाब दिया, "हम तो कब से जय स्क्वेयर हैं। "
जयदीप ने कहा "आप रिश्ता लेकर मेरे घर आइये फिर मैं सब संभाल लूंगा।" इतना कहकर वो चला गया। पर ये सब इतना आसान नहीं था। एक कायस्थ की बेटी,और एक ब्राह्मण का बेटा 1993 में ऐसी शादियाँ कहाँ हुआ करती थीं। मिश्रा जी तो बुरी तरह भड़क गए और फिर दोनों ही परिवार में बोलचाल बंद हो गयी। पर इकलौते बेटे की जिद्द के आगे एक ना चली। बहुत धूमधाम से विवाह संपन्न हुआ। दोस्तों की पूरी टोली मौजूद थी ।
विवाह के उपरांत दोनों ने जॉब ज्वाइन कर ली। जिंदगी बड़ी ही खूबसूरत गुज़र रही थी। पर जब भी ससुराल आती उनकी रोक-टोक से जया परेशान हो जाया करती, वैसे भी मन से उसे किसी ने स्वीकार नहीं किया था। इस बीच एक प्यारे से बेटे को जन्म दिया "रोहन" बिलकुल भोला-भाला अपने पापा के जैसा और ब्रिलियंट मम्मी के जैसा! शुरू के दस साल तो बहुत ही खूबसूरत गुज़रे।
लाइफ सीधी कहाँ जाती है।अचानक ही जया बेहद गंभीर रूप से बीमार पड़ी। पैंक्रिअटिक प्रॉब्लम्स थीं। इनसे उसे जूझते हुए पूरे दो वर्ष निकल गए। उसे कम्पलीट रेस्ट में रहना था। इस बीच का उसे कुछ याद नहीं। कैसे जयदीप ने रोहन को संभाला और साथ ही जया की दिल लगा कर सेवा की। वह दो साल काली रात के समान थे जिनकी चर्चा मात्र से वह गुमसुम हो जाती है। पर एक सीनियर डॉक्टर ने उसे विश्वास दिलाया की वह बहुत जल्द अच्छी हो जाएगी और वाकई उनके विश्वास ने जया पर सकारात्मक असर डाला। वह अब बिस्तर से उठ चुकी थी। अपने सारे काम स्वयं करने लगी। रोहन अपनी माँ को देख कर निहाल था। उसकी माँ फिर से उसकी पढ़ाई में इंट्रेस्ट ले रहीं थीं।
जयदीप भी जया को देख कर बहुत खुश था पर एक दुविधा उसके चेहरे पर थी। पति -पत्नी का रिश्ता ऐसा ही है। जरा सी ऊंच -नीच हो, भनक लग जाती है। जयदीप की ख़ामोशी ने उसे सोचने पर मजबूर कर दिया था कि बीते वर्षों में उसकी जगह कहीं किसी और ने तो नहीं ले ली। जयदीप के प्यार पर उसे पूरा भरोसा था पर पुरुष बिना स्त्री -संपर्क के दो वर्ष बीता सकता है , इस बात पर संदेह था। क्यों जयदीप खामोश था, क्या उसने जया की जगह किसी और को दे दी थी .....??
जयदीप जया के स्वस्थ होने पर एक मिक्स्ड फीलिंग से गुज़र रहा था। अब आगे .......
वैलेंटाइन डे हर साल दोनों ख़ुशी-ख़ुशी मनाते थे और अब जया बाहर जा सकती थी। उसने सुबह से ही जयदीप की फेवरेट पिंक शिफॉन की साड़ी और वाइट गोल्ड विद् रूबी एंड डायमंड सेट पहनने का इरादा किया था। पर ऑफ़िस से बार-बार फ़ोन आ रहा था।
"आज छुट्टी ले लो।" जया ने आग्रह किया पर जयदीप सुनने के लिए तैयार ही नहीं था। जया की बात आसानी से मान लेने वाले जय के ऑफ़िस जाने की जिद्द ने ,जया के विश्वास को और गहरा किया। उसने बेटे को अपनी फ्रैंड के घर पर छोड़ा और जयदीप के साथ उसके ऑफ़िस आ गयी। उसका चैम्बर बहुत सुन्दर सजा था तभी उसकी नज़र उसपर पड़ी जिसने उसकी बीमारी का फायदा उठाकर उसके अखंड सौभाग्य पर डाका डाला था। हूबहू पिंक शिफॉन की साड़ी और उस जैसी हेयरस्टाइल में काफी हद तक जया की प्रतिलिपि दिख रही थी।
हम्म ,तो ये है जयदीप की परेशानी की वजह !अब उसके सामने सबकुछ साफ़ हो गया था। अपने हालात से परेशान होकर उसने बाहर ख़ुशी की तलाश की थी। रीमा एक प्रोफेशनल लड़की थी उसे अपने करियर ग्रोथ के लिए, जयदीप का सान्निध्य गवारा था। उसने काफी कुछ सीखा और तरक्की करती गयी।
मन ही मन आहत जया, कुछ बोल ना पायी। बोलती भी तो क्या बोलती ? स्त्री और पुरुष की जरूरतें अलग हैं, स्त्रियां मन से मज़बूत, पर पुरुष कमजोर होते हैं। उसे दुःख महसूस हो रहा था। बस जयदीप से इतना ही कहा "वापस आ जाओ। " जयदीप ने भी हामी भरी और कहा " जानेमन एक वीक का टाइम दे दो। "दोनों की केमिस्ट्री गज़ब थी, और प्यार भी !
अभी चार दिन भी नहीं बीते और जयदीप बहुत परेशान घर आया। जया के पूछने पर उसने बताया की रीमा को कैंसर है। ओह ! ये तो बहुत बुरा हुआ। जया स्तब्ध थी। उसे अपना पति वापस चाहिए था पर किसी के जीवन के मूल्य पर नहीं। जया में इतनी भलमनसाहत ज़रूर थी लाख बुरा लगने के बावजूद उसने जयदीप को, रीमा को रोगमुक्त करने और आर्थिक मदद करने से नहीं रोका। रीमा का इलाज, मुंबई के एक हॉस्पिटल में कराया गया।
रीमा ठीक हो गयी और तबादला कराकर अपने होमटाउन में शिफ्ट हो गयी। बाद में पता लगा कि उसकी शादी भी हो गयी थी। पर जयदीप की वापसी ने अनेकों सवाल खड़े कर दिए थे। वह स्वयं को खो चुका था। शायद मन ही मन अपराधबोध उसे खा रहा था। जिससे भी प्यार किया वो गंभीर बीमारी का शिकार हुआ। दिन रात गुमसुम बैठा रहता तब जया को दोस्तों का ध्यान आया। वो लोग जयदीप को इस कठिन स्थिति से बाहर निकाल लाएंगे।
खबर मिलते ही सब दोस्त जुट गए। जयदीप और जया से सभी बहुत प्यार करते थे। २ महीनों तक घूमते -फिरते वक़्त निकला। आज भी जब सब इकट्ठे होते हैं और गुज़रे पलों को याद करते हैं तब एक बार ये चर्चा ज़रूर होती है कि जयदीप जैसा स्ट्रांग कैरेक्टर का इंसान लड़की के चक्कर में नहीं पड़ सकता। दोस्तों ने जिस तरह उसका साथ देकर उस गहरे अवसाद से बाहर निकाला वह बेमिसाल है। तभी तो जया का मानना है कि "फ्रेंड्स आर लाइफ सेवर्स!" हर रिश्ते से ऊपर उसने दोस्ती का रिश्ता माना।
हर युगल की कोई न कोई कहानी होती है। हम साथ चलते हुए ,कभी ठहरते, तो कभी भटकते हैं पर जोड़े ऊपर से बनकर आते हैं। ये बंधन तोड़े से नहीं टूटते! यही सोचती हुई मैं गुमसुम थी। तभी जया मुझे खींच कर डांस फ्लोर पर ले गयी और कहा ....."प्रेजेंट में रहो यार ! ये पल बहुत खूबसूरत है, इसे और हसीन बनाते हैं !"सही भी है। "बीत गयी वो बात गयी। "फिर मैंने भी सबके साथ खूब ठहाके लगाए !