Arya Jha

Abstract

0.5  

Arya Jha

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पड़ोसन की टिफिन

पड़ोसन की टिफिन

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"सुनो ! पड़ोसन ने कढी दी है, चावल बना लूँ ?"

"हाँ-हाँ बिल्कुल!" व्हाट्सएप्प पर पति का जवाबी मैसेज देखते ही निश्चिंत हो गई। ऐसे भी सुबह की बात भूल नहीं पाई थी। जब आलू मटर की सब्जी बनाकर पैक करने लगी तो मना कर दिया।

अच्छा! मेरी बनाई सब्जी नहीं खानी है तो अब बनाउँगी ही नहीं। पूरे दिन ना फोन किया ना मैसेज देखा। ऐसा नहीं था कि शुरू से मैं ऐसी थी बल्कि मेरे परिवार वाले मुझे अच्छा कुक मानते थे। शादी के शुरुआती दिनों में अपने कुकिंग व बेकिंग के जौहर दिखाकर ससुराल वालों को खूब इंप्रेस किया था। कुछ सालों तक सब अच्छा चलता रहा। इधर कुछ दिनों से सजन जी के नखरे बढ गए थे। किसी के घर से दावत खाकर लौटते समय बस एक ही बात रटते रहते।

"खाना बड़ा लाईट था ना! कौन से तेल में बना था? बड़ा अच्छा महसूस हो रहा है। तुम भी क्यों नहीं सीख लेती ?" जैसे मैं तो कुछ जानती नहीं। चिढ़कर बस इतना ही बोली कि, "क्यों पका रहे हो यार! मुझे तो उनके गार्डन से उठने का मन नहीं कर रहा था।"

हम दोनों की रुचियाँ बदल रही थीं। मैं जीने के लिए खा रही थी और वह अच्छे खाने से अच्छे जीवन को जोड़ रहे थे। मेरे दिमाग में अजब सी उथल-पुथल मची थी कि तभी हमारे पड़ोस में बहुत मस्त परिवार रहने के लिए आया। अच्छे व्यक्तितव व बेहद मिलनसार स्वभाव वाले पड़ोसी तो बड़े नसीब से मिलते हैं। मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था। उनके घर से स्वादिष्ट भोजन की आती खुशबुओं ने पूरा वातावरण ही महका दिया था। सोने पर सुहागा तो तब हुआ जब कभी डोनट, कभी ब्राउनी तो कभी-कभी कढी के कटोरे आने लगे।

सच कहूँ तो मैं खुद उनकी बड़ी फैन हो गई थी। हमारी अच्छी दोस्ती हो गई और हम सारे दिन मस्तियाँ करने लगे। शाम को कभी अपनी तो कभी उनकी रेसिपी बनाई जाती। जिस दिन कुछ खास करने का दिल ना करता, अपनी बनाई सब्जी ही पड़ोसन की टिफिन में भरकर रख देती। पतिदेव तारीफों के पुल बांधते हुए खुशी से चटखारे लेकर खाते। "सुनो वो लोग अगले महीने अपने घर में शिफ्ट हो रहे हैं।" "यह तो खुशी की बात है, तुमने मुँह क्यों लटका रखा है ?" "मैं ....."मुँह से आवाज़ नहीं निकली तो उन्होंने हाले दिल भांप लिया।

"ओहो ! मुफ्तखोरी के लिए परेशान हो। बैठे-बिठाए अच्छा खाना कैसे खाओगी।" पतिदेव ने चुटकी ली।

"नहीं मैं तो वो टिफिन...."

"सब पता है जानेमन! पिछले बाईस सालों से तुम्हारे हाथ का खा रहा हूँ। प्रशंसा की चाह में, अपनी बनाई सब्जी पड़ोसन के टिफ़िन में भर कर खिलाती रही। सब समझते हुए भी अनजान बनकर मजे ले रहा था।"

"क्या आप भी....पता था तो पहले क्यों न बताया ?"

"बच्चों सी खुश होकर झूठ बोलती तुम मजेदार लग रही थी।"

मेरी होशियारी पकड़ी गई तो फटाफट अपनी रेसिपी वाली डायरी के साथ पड़ोस में आ गई। कुछ अच्छे पकवान बनाने की विधि लिख लूँ। क्या करती ? अपने पति के पसंद का ख्याल रखना भी जरूरी था।


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