गुलाबी कागज

गुलाबी कागज

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"सुनो! तुम मुझसे प्यार नहीं करते!" मैंने वेलेंटाईन्स डे की पूर्व संध्या पर कहा।

"अच्छा! कब पता लगा ?" इन्होंने हँसते हुए पूछा तो मेरे तन-बदन में आग लग गई।

"आजकल तुम्हारे किसी भी हरकत से पता कहाँ चलता है कि प्यार है भी या नहीं ?"

"हम्म ...." कहकर मुँह मोड़ नींद की आगोश में पहुँच गए। ऐसे भी दाल-रोटी के पीछे पूरे दिन मेहनत करने के बाद पत्नी के लिए रूमानी संवाद बोलने की कला बिरले पतियों में ही होती है। मेरे वाले तो और भी मिट्टी के माधव हैं। वेलेंटाईन्स डे के अवसर पर सोचा कि क्यों न इमोशनल कर कुछ लूटा जाए पर यहाँ तो खर्राटों की आवाज ने गुस्से में घी डालने का काम किया। ऐसे भी वीकेंड पर बुके की जगह समोसा लाने वाले से भला क्या उम्मीद की जा सकती है ? बीती रात जब मन विचलित हो गया तो अतीत में विचरने लगी।

हॉस्टल गेट के पास खड़े लड़के-लड़कियों के जोड़ों को देखकर अक्सर यही सोचा करती कि ये रोज़ घंटों क्या बातें करते हैं। संसार में और कितनी ही अच्छी और मस्त चीजें हैं जिन्हें एक्स्प्लोर करना है। सारी मज़ेदार चीज़ें छोड़ कौन ये बेवकूफी कर सकता है। फिर एक ही इंसान से रोज़ मिलना, घंटों आँखो में देख क्यों वक़्त ज़ाया करना जबकि शादी करके एक नमूने को आजीवन झेलना ही है, बस 'तौबा ये इश्क़' ही मेरा नारा था। ऊपर से बचपन से ही अमिताभ की फैन थी तो एक हाई स्टैण्डर्ड ही दिमाग मे सेट था। ऐसे में भला कहाँ, कोई और भाता।

अब मेरा नारा कितना भी बुलंद क्यों ना हो लड़कों की जवानी उनके बस में तो थी नहीं। कितनी जल्दी अच्छी लड़कियों को पटा लिया जाए, इसके लिए होड़ लगी थी। कहीं ऐसा ना हो कि भंवरे ने खिलाया फूल, फूल को ले गया राजकुंवर! 60 के दशक का फिल्मी फॉर्मूला अपनाकर जब किसी ने गाने के दो लाइनें किताब में रख कर मुझे दिया था तो कसम से मेरे अंदर भी कुछ फिल्मी आइडियाज़ ही जागे थे कि क्यों ना जम कर कूट दिया जाए।

फिर सोचा नए-नए ही यूनिवर्सिटी में आये हैं। कहीं दुश्मनी महंगी ना पड़ जाए तो सीधे से समझा कर छोड़ दिया।

"आईन्दा किसी को पटाना हो तो कुछ अपना लिखना फिल्मी नहीं!" ये तो पहले वाले थे जो मायूस से किनारे खड़े दिल पर पत्थर रख हमें किसी और का होता देख रहे थे। दूसरे महाशय जब -तब हॉस्टल पहुंच जाते। जब उनसे बेवजह पहुंचे रहने का कारण पूछा गया तो मासूमियत से कहने लगे,"यहाँ नई हो ना! तुम्हे किसी चीज़ की जरूरत हो तो कहना। हम ला देंगे।" हम भी बड़े प्रैक्टिकल निकले । झट कुछ महंगी किताबों की लिस्ट पकड़ा दी और कहा कि "लेकर ही आना।" वह ठहरे पूरे बनिया ,भला इतना महँगा सौदा कैसे करते। तब के गये हुए आज तक आ ही रहे हैं....................! फिर एक दिन क्लास के बाद साईकिल पार्किंग एरिया में जल्दी पहुंच गई । एक बड़े ही कमजोर हृदय वाले पिलपिले से प्राणी हमारी साईकिल में चिट लगा कर भागते दिखे। हमने एक बार खुद को देखा फिर उनको देखा तो लगा कि एक -आध थप्पड़ में ही ये कहीं टपक ना जायें । मगर समस्या ये थी कि अपने हाथ क्यों मैले करें। ये तो डांट से ही रफ़ा-दफा हो जाएंगे। बस ज़ोर से चिल्लाई ........उन्होंने अपनी पर्ची समेटी और नौ- दो ग्यारह हो गए।

उसके बाद फिर कभी मेरी रेंजर के इर्द -गिर्द ना नज़र आये। अब तक मैं इन लोकल बिलो स्टैण्डर्ड आशिक़ों से परेशान हो चुकी थी तो इस बार शिकायत पिताजी से कर दी। पुलिस महकमें में होने से उनका रुतबा तो था ही और उसका असर कुछ मेरे मिज़ाज़ पर भी था । उन्होंने फिर कभी -कभी अपने पुलिस यूनिफॉर्म वाले बॉडीगार्डस हॉस्टल की बजाय कॉलेज में भेजने शुरू किए । यह उनका मास्टर स्ट्रोक था ।अब सारे चांस पर डांस करने वाले B ग्रेड आशिक़ हट चुके थे। घरवालों ने मेरी शरारतों को देखते हुए भरी जवानी में ही मेरे हाथ पीले कर दिये और मैं वेलेंटाईन्स डे के सारे रोमांच से अछूती रह गई। पतिदेव सीधे- सादे प्राणी निकले । दो जुदा किस्म के प्राणी एक हुए थे। मेरे जैसी रोमांटिक लड़की और मेरे 'ये' जिसे रोमांस का 'र' भी ना पता नहीं था। जाने कितनों का दिल तोड़ कर इनसे नेह लगाया था।

आखिर सबकी बददुआ रंग ला रही थी। अतीत की रूमानियत से बाहर निकल मन मसोसकर उनकी ओर देखा तो नींद में भी वह मुस्कुराते दिखे। हमने भी अपना सूजा चेहरा घुमा कर नाराजगी दिखा दी। सुबह जगी तो अपनी बोरिंग सी जिंदगी और बेहद आम दिनचर्या देख कर मन बौखलाया हुआ था। रोज़ के काम निपटा कर जब बेडरूम में लौटी तो एक खूबसूरत ड्रेस, सैंडल व मैचिंग इयररिंग के साथ रखा देखा। ओह! तो कल लाकर कार में रखा होगा। मेरे लिए एक सरप्राइज था। उससे भी बड़ा सरप्राइज गुलाबी लिफाफे के अंदर की वह पर्ची थी जिनकी दो पंक्तियाँ उनके दिल के राज खोल रहीं थीं।

"वैलेंटाइन डे के बारे में मैं नहीं जानता। जो तुम साथ हो तो मेरे लिए हर दिन प्यार का दिन है, तुम साथ नहीं हो तो सब बेकार के दिन हैं।"

-सिर्फ तुम्हारा 

इससे ज्यादा एक पत्नी को भला क्या चाहिए। वह सामने जो कुछ नहीं कह पाए वह सब गुलाबी कागज पर छपे चंद शब्दों ने कह दिया। उन्होंने मोहब्बत का अनमोल तोहफा दिया। अब मेरी बारी थी, मैंने फटाफट नया ड्रेस पहन सेल्फी भेज दिया तो धड़कता दिल जवाब में आ गया। मेरा वैलेंटाईन डे मस्त बन गया।


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