एक अबोली प्रेम कथा

एक अबोली प्रेम कथा

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पति का तबादला मेरे होमटाउन में हुआ तो मैं खुशी से फूली ना समा रही थी। अपनी बेटी के दाखिले के दौरान अचानक चांदनी से मुलाकात हुई। पता लगा शहर के सबसे बड़े स्कूल के एडमिशन इंचार्ज का काम संभाल रही है। अब जब कभी पुरानी यादें ताज़ा कर खुश होने का दिल करता, हम मिलते। एक दिन जब हम दोनों अकेले थे तो उसने कमल के बारे में जानने की उत्सुकता जताई। अन्य मित्रों से पूछने पर पता लगा था कि वह पढ़ाई के बाद अपने पैतृक घर कलकत्ता गया था, फिर उसकी कोई खबर नहीं! उस दिन हमारी ढेरों बातें हुईं।

पीछे मुड़कर देखते ही चलचित्र की तरह सबकुछ आँखों में घूम गया। लगने लगा, मानो कल की बात हो। युनिवर्सिटी के पहले दिन ही चाँदनी ने कमल को सीढ़ियों पर बैठ कहकहे लगाते देखा था। चांदनी कदम जल्दी-जल्दी बढाते हुए क्लास रूम की ओर बढ रही थी कि उसकी नज़रें, उन नज़रों से मिलीं। क्या था उनमें? सोचने लगी। कुछ तो था जो उसका पीछा नहीं छोड़ रही थीं। खैर भाग कर क्लास में पहुंची। पहले ही दिन लेट नहीं होना चाहती थी। 60 स्टूडेंट्स के जगह बस 20 लड़कियाँ ही मौजूद थीं। प्रोफ़ेसर के आने के बाद लड़के आने शुरू हुए तो उन्होंने मज़ाक भी किया। "सभी वीआईपी आ गए हैं तो क्लास शुरू करें?" ठहाके की बारी अब लड़कियों की थी।


पोस्ट ग्रेजुएशन के पहले दिन का पहला क्लास था। प्रोफ़ेसर ने अपना परिचय दिया फिर विद्यार्थियों की बारी आई। कमल और चांदनी क्लासमेट्स ही निकले। उसके बाद तो ये सिलसिला महीनों चला। नज़रें मिलतीं और होंठों पर मुस्कान आ जाती, पर पहल कोई नहीं कर पा रहा था। लड़कियाँ घर हो या बाहर बस नज़रों से ही काम लेती हैं पर यहाँ कमल भी शर्मीला निकला। दोनों को मानो एक -दूसरे की आदत हो गयी थी। एक और फ़र्क़ आया था अब कमल उसे घर तक छोड़ने लगा था पर बिना कुछ कहे। जब खामोशी अपना काम करती है तो अक्सर गहराई तक जाती है।

अपने दिल का हाल बयां करने के लिए कमल ने उसके मकानमालिक के लड़के से दोस्ती कर ली थी। उसने प्यार भरा एक ग्रीटिंग कार्ड चांदनी तक पहुंचाने की जिम्मेदारी उसे देकर खुद छुप गया था। चांदनी ने कार्ड लिया और भेजने वाले का नाम नहीं दिखा तो अन्दर चली गई। ओह ! शिट! ये क्या? उसने नाम तो लिखा ही नहीं था पर चांदनी समझ गई थी। शायद अपने पापा के डर से वह कभी खुलकर इजहार ही नहीं कर पाया। एक किलोमीटर की दूरी पर ही उसका घर है। कहीं चाँदनी के डैडी कार्ड सहित उसके घर आ गये तो दोनों ही पिता मिलकर उसकी बैंड बजा देंगे। 

"कमाल का बन्दा है ये कमल भी। नाम तक तो लिखा नहीं! इतना डरता है, फिर किस भरोसे उसका इंतजार करेगी?" रोमा ने कार्ड देखते ही कहा।

"हाँ डरता है, पर प्यार भी करता है। हर समय प्रेम को आदर्शों की कसौटी पर कसना क्यों जरूरी है?"


"अहा! तो आग दोनों ओर बराबर लगी है!" मैंने भी चुटकी ली थी। चांदनी का दिल जानता था। पहली नज़र को पहचानता था। उनमें प्यार की तलाश थी। चांदनी को भी प्यार हुआ था पर जबतक वह अपने दिल की बात सुनती समझती या समझाती, घरवालों ने सगाई कर दी। वह दोनों एक-दूसरे के पहल का इंतज़ार ही करते ही रह गये। कमल दुखी था, जी तो चाहा था, गुस्सा करे, रोए कि नहीं मानता ऐसी सगाई को पर क्या करता खुद का कैरियर तो कुछ भी नहीं था। किस आधार पर और क्या बात करता। घर में प्रवेश करते ही प्यार का बुखार तो उतर ही जाता जब कर्नल पिता से सामना होता। नतीजतन उसने नियती के फैसले को स्वीकार कर लिया। पढ़ाई पूरी होते ही जिंदगी बड़ी बेवजह सी लगने लगी थी। कौन कहता है बेरोजगारों के पास काम नहीं होता। अरे! दोस्तों से मिलकर कहकहे लगाना, नई-पुरानी बातें करना और साथ ही अपने मोहब्बत को याद करना जैसी तमाम गैरजरूरी कामों में कमल इतना खोया रहता कि अपने उद्देश्य तक निर्धारित नहीं कर पा रहा था। ऐसे लक्ष्यहीन बेटे को देख कर कर्नल साहब ने सीधा ऐलान किया कि या तो अपने पैरों पर खड़े होकर दिखलाओ वरना कोर्ट मार्शल के लिए तैयार हो जाओ। मरता क्या ना करता! उनकी झिड़की के आगे तो बड़े- बड़े सूरमा ढेर हुआ करते थे फिर कमल की क्या बिसात थी। सफलता हासिल करना तो चाहता था पर कहीं ना कहीं दिशा में कमी लगती । किसके लिए करूँ? चांदनी तो किसी और की हो गई।


खैर चलती का नाम जिंदगी है। उसे भी अपनी जिम्मदारियों का अहसास था। सबसे पहले उसने शहर छोड़ा। नये लोग और नये माहौल में धीरे-धीरे उसने सब सीख लिया। बहनों का ब्याह करना था। बाद में पूरा परिवार उसके साथ ही रहने आ गया।  युनिवर्सिटी की बातों में हम ऐसे खोए कि वक़्त का पता ही नहीं चला। जाड़़ों की छुट्टियों शुरू होने वाली थीं। हमने तय किया कि साल का आखिरी दिन साथ बिताएंगे ताकि अगले साल भी मिलते रहें। दोस्तों का नेटवर्क कब काम आता। सभी तक खबर पहुँचाया गया कि 31 दिसम्बर को अपने बैच का मीट-अप है फिर दोस्तों ने एक पार्टी की योजना बनाई। शहर के दोस्त तो थे ही, बाहर वाले भी आ गए। कमल एक कामयाब बिजनेसमैन बन चुका था। सारे बिल उसी के नाम पर फाड़े गए। सभी बेहद खुुश थे। चांदनी के आने की बात को कमल से छुपा कर सरप्राइज देने का विचार था। दोस्तों के आते ही मुस्कान हम सभी के चेहरों पर आ गई। हम मौन प्रेमियों को एक साथ देखने के लिए बेताब हो रहे थे। सबसे आखिर में घुंघराले बालों वाली चांदनी मुस्कुराती सामने आई तो अवाक कमल एकटक देखता ही रह गया! "तुम यहाँ? सब ठीक तो है ना?" "कुछ भी ठीक नहीं!" "मतलब?" "मैं झूठ पर अपने रिश्तों की बुनियाद नहीं रखना चाहती थी। रवीश को जब हम दोनों के बारे में बताया तो वो सह नहीं पाए| मुझे मेरी दुनिया में वापस जाने के लिए कहा। जिंदगी से क्यों मुँह मोड़ती। खुद की तलाश करने लगी। बस अपना ही स्कूल है तो मन लगाने के लिए इसे ही ज्वाॅइन कर लिया पर तुम कहाँ गायब थे?" " अपने सपनों का पीछा करते हुए थक गया था। तुम्हारी जगह काम ने ले लिया। बस उसी धुन में जी रहा हूँ।" "घर में सब कैसे हैं.... तुम्हारी पत्नी-बच्चे ?" "मैंने शादी नहीं की।" "क्यों?" "तुम नहीं मिली ना?" "मजाक मत करो।" "बहनों की शादी कराने में देर हो गई पर अब करूँगा।" "इस उम्र में?" "और नहीं तो क्या? किस्मत से मिली हो! बोलो तुम्हारा हाथ माँगने घर कब आऊँ?" "क्या बात है कमल! बहुत खूब!" रोमा उसके आत्मविश्वास से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी। "चांदनी की हाँ चाहिए तेरी नहीं।" मैंने चिढाया। "अगले साल!" चांदनी ने कहा। "कल आता हूँ।" दोनों की आपसी समझ जबरदस्त थी। 2020 अगले ही दिन थी। "आहा! एक और पार्टी....यानी मस्ती अनलिमीटेड.....नए साल की शुभ शुरूआत होने वाली है।" समवेत स्वर हम दोस्तों का था। आज उनकी नज़रें एक-दूजे से हटती ना थीं। मंज़िल जो मिल गयी थी।


एक अबोली प्रेम कथा को अंजाम देने के लिए हम सब कटिबद्ध थे। काश ऐसा ही एक कदम पहले उठाया होता। शायद उन्हें ऐसे ही मिलना था। कहते हैं ना 'जन्म, विवाह और मृत्यु' का समय पूर्वनिश्चित होता है। 



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