सफर की याद
सफर की याद


यात्रा तो यात्रा होता है जिसके साथ खट्टी मिट्ठी घटना होना लाजिमी होता है और फिर वही घटना हमारे बीते वक्त के साथ याद बन कर हमारे ज़िंदगी के सफ़र में किस्सा बन जाते हैं। जैसे हमारे रवि राज.....हर साल की भांति रवि इस साल भी नये साल में अपने परिवार और दोस्तों के साथ यात्रा की तैयारी में लगा हुआ था।उसे यात्रा करना बहुत पसंद है,जब भी बात यात्रा की होती है तो कई किस्से उसके ज़िन्दगी के सफ़र के याद आने लगते हैं। परन्तु एक किस्सा आज भी जब याद आता है तो उसके चेहरे पर मुस्कान खुद ब खुद आ जाता हैं और फिर हो भी क्यों ना आखिर इतना रोमांचक जो था।और इस तरह एक बार फिर रवि अपने अतीत के पन्नों को पलट कर उस यात्रा के बारे में सोचने लगा।
बात उस वक्त की है जब रवि की शादी नई नई ही हुई थी और वो अपनी पत्नी को अपने साथ कहीं घुमाना चाहता था। उसने ये बात अपने दोस्तों से कहा चुंकि सब हम उम्र ही थे तो इसलिए सब की शादी भी आस पास ही हुई थी।तो हुआ यूं कि सबने कहा कि चलो सब साथ में कहीं घूमने चलते हैं,नया साल भी आ रहा है।सबकी हामी तो हो गई पर समस्या यह थी कि आफिस से हमें ज्यादा छुट्टी नहीं मिली थी और ऊपर से उस वक्त हमारी पोस्टींग बिहार के छोटे से डिस्ट्रिक्ट में हुआ था। जहां घूमने का ज्यादा औपसन नहीं था हमारे पास।खैर,जो भी था हमने अगल बगल से पता लगवाया,तो पता चला कि एक भव्य मंदिर है वहीं छोटा पार्क भी बना है लोग वहां पिकनिक मनाने जाते है।बस फिर क्या था, हमसब ने मिलकर प्रोग्राम बनाया कि मंदिर दर्शन भी कर लेंगें और साथ में पिकनिक भी मना लेंगें,३१ दिसंबर का दिन तय हुआ।घर आकर अपनी पत्नी से यात्रा के बारे में जानकारी दिया वो भी बहुत खुश हो गई। कुछ दिन में वो समय भी आ गया हम सब ३१ दिसंबर को सुबह पांच बजे तैयार होकर अपने निर्धारित जगह पर आ गए जहां से बस खुलती और तकरीबन २ घंटे में हमलोग अपने जगह पर होते। चुंकि हमसब को सुबह उठने की आदत नहीं है तो समझिए एसा लग रहा था कि हमलोग आधे नींद में ही है।और हां हमारे समुह में दो लोगों को एक एक बच्चा भी था,मतलब पूरे हमलोग चार कपल थे जिसमें दो बच्चे वाले और दो बिना बच्चे वाले।पर वो बस जो पांच बजे आने वाली थी ओ सात बजे आई। बस का इंतजार करते करते हमारी नींद खत्म हो चुकीं थी।हम सब अपने अपने जगह पर बैठ गए, चुंकि पूजा करनी था इसलिए आज हमसब सच्चा भक्त बन बैठे थे और मन में ये ठाने थे कि पूजा करने के बाद ही खाएंगे।लेट तो हम सब हो ही गए थे पर हां बस पर बचे हुए नींद को पूरा करने का ये मौका बहुत अच्छा मिला था,सो हमसब अपने अपने सीट पर सोने का प्रयास करने लगे।पर ये क्या अभी आंख लगी ही थी कि कुछ शोर सुनाई देने लगी,आंख खोलने पर पता चला कि एक मुसाफिर ने अपने सीट पर
खुद ना बैठ कर अपने बकरी को बैठा दिया था जिससे दूसरा मुसाफिर परेशान हो रहे थे,और पता है इस बाता बाति में एक फायदा ये हुआ कि कुछ वक्त आसानीे से गुजर गए।
खैर, हमलोग लेट तो पहले से ही हो गए थे पर जो १० बजे पहुंचने का समय था वो वक्त कब का गुजर चुका था और अब १२ बज चुके थे।हालात ये थी कि हम सब भूख से अब बेहाल हो रहे थे, बच्चे परेशान होकर अलग रो रहे थे।इधर हमसब वहां पहुंच कर मंदिर जाने के लिए सवारी को ढूंढने लगे। थोड़ी कोशिश के बाद एक गाड़ी मिली हमसब ने उसे मंदिर जाने को कहा वो तैयार हो गया।हमलोग बिना वक्त गंवाए बैठ गए और जल्दी चलने को कहा।पर ये क्या थोड़ी दूर जाने के बाद ड्राइवर ने गाड़ी रोकी और बाहर जाकर गाड़ी को निहारने लगा,इधर हमलोग भूख से इस कदर बेहाल थे मानो महिनों से खाना नहीं खाया हो। फिर हमने ड्राइवर से पूछा कि क्या हुआ तो उसने कहा कि गाड़ी अब नहीं चलेगी टायर फट गया है आपलोग यहां से दूसरी गाड़ी ले लीजिए।ओह....ये क्या एक आफत से दूसरी एक तो गाड़ी लेट,भूख की पुकार अलग और ऊपर से अब ये........ थोड़ी देर हमने इंतजार भी किया,पर जो भी गाड़ी आ रही थी वो भरी हुई ही थी।थक हार कर हम सब पैदल ही निकलें।सच बताऊं तो हालात ये थे कि हम सब एक दूसरे को देखना भी पसंद नहीं कर रहे थे और फिर हो भी क्यों ना सब के सब परेशान जो थे। सुबह खत्म होकर दिन को आ गई और अंततः हम सब मंदिर आ गए वहीं एक बरगद का पेड़ था हमने औरत मंडली को वहीं बैठने को कहा और खुद हम सब चढ़ावा के लिए प्रसाद लाने गए परन्तु वहां पहुंच कर पता चला कि भगवान के भोग और आराम का वक्त हो आया था सो पट बंद हो चुका है।हमने एक दूसरे को देखा और भारी कदमों से अपनी बीबीयों के पास आए। हमने उन्हें सब बताया सब की बीबी ने ऐसा घूरा अपने अपने पति को कि आज भी याद आता है तो यकिन मानिये रोंगटे खड़े हो जाते हैं।उसके बाद हमने आव देखा ना ताव वहीं बैठ कर सबसे पहले दम भर खाना खाया थोड़ा सुस्ताने के लिए उसी पेड़ के नीचे हम सब लेट गए। यात्रा तो अब तक खराब ही रही पर खाना खाने के बाद हल्की हल्की हवा के साथ बदन की थकावट शायद कम हो रही थी, इसलिए तो हम सब बेहोशी की नींद में सो गए। थोड़ी देर बाद आंख खुली तो वो थोड़ी देर नहीं बल्कि दिन से संध्या होने को आ गई थी।हमसब एक दूसरे को उठाने लगे और वही पास खड़ी गाड़ी से बस स्टैंड पहुंचाने को कहा।और इस तरह हमारा अंतिम साल का अंतिम दिन हमेशा के लिए यादगार बन गए।उस वक्त भले ही हम परेशान, गुस्सा,भूख से बेहाल अपने यात्रा को कोश रहे थे पर अब जब याद आता है तो मन को अच्छा लगता है वो बरगद का पेड़, चारों तरफ शांत वातावरण बस चिड़ियों कि चहकने कि आवाज ,मंद मंद शीतल हवा।आह.....इतना कह कर रवि पेकिंग में लग गया।